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अपनी भूलों के प्रति असावधानी हमारी अपसंस्कृति लाती है |

 डा . जी . भक्त
 ऐसा होता क्यों है ? भूल होते समय हमारी चेतना कहाँ चली जाती है ? जब हम चेतनाप्राणी हैं और शिक्षण हमारी चेतना में सतत् शुचिता जोड़ने का काम करता है तो हमसे भूल क्यों और कैसे होती है ? हम अपनी भूलों के प्रति सचेत कब होंगे ? अथवा हम अपनी ज़िम्मेदारी कब निभाना चाहेंगे ?
 इतना छोटा वाइरस , इतनी छोटी आयु की वह तीन फीट की दूरी गमन करके ही समाप्त हो जाती है या दूसरे शरीर में अपना जीवन चक्र चलाने लगती है । उसका प्रभाव प्रकट होने लगता है । उसकी इतनी बड़ी भयंकरता जो जीवन ही समाप्त कर डाले | उसके प्रति इतनी सतर्कता की विश्व परेशान है | जीवन की आशा खो देता है । भय व्याप्त है | सरकारें व्यवस्था में जुटी है । स्वास्थ्य विभाग अपनी शक्ति लगा रखा है | लोग घरों में बंद रहकर , एक दूसरे से दूरी बनाकर रोगियों को पृथक स्थान पर पूरी निगरानी में रखा जा रहा है | अपना जीवन खतरे में डालकर उनकी सेवा की जा रही है ।
 फिर भी कुछ लोग इसकी परवाह बिना किए सारे नियमों , सावधानियों , संकल्पों , प्रतिबंधों , कानूनों के भय को भला कर अपने मन के मुताबिक चलकर कठिनाइयाँ मोल ले रहे हैं । इससे भी बढ़कर तो उस परिस्थिति पर विचारना है । जहाँ लोग इस विपदा में अपना भोग भुनाने में लगे हैं | नियमों का पालन नहीं कर रहे | ज़िम्मेदारी नहीं समझ रहे दूसरे के हितों में बाधक बन रहे हैं । सारे अभियान पर पानी फेर रहे हैं | लोगों का विश्वास उनकी सेवा से टूट रहा है | रहट की सामग्री लूटने में लगे हैं | जमाखोरी , मुनाफ़ाखोरी में पिले स्वयं पल रहे हैं | रोगियों की जाँच में भूल हो रही है । विभाग पर काला धब्बा लग रहा है । सरकार की बदनामी हो रही है | क्या यहीं कलियुग है | सृष्टि का अंत होने वाला है | ऐसे में भ्रांतियाँ फैल रही है , गलत विश्वास दिशा पकड़ रहा है | इसके सब प्रकार से सबके जीवन पर ख़तरा दिखाई पद रहा है ।
 हमने जो संस्कृति पाल रखी थी , जिसे ऋषि – मनीषीयों , समाज के शुभाषियों , वैज्ञानिकों , विचारकों ने बनाया था जिस संस्कृति के बल पर हम अपने भविष्य की इमारत खड़ी कर पाए थे वह अपसंस्कृति बन रही है ? बताइए हम कहाँ जा रहे है ?
 गंभीरता से इस समस्या पर विचारें | हम कभी ऐसा न करें की हमारी गरिमा , शुचिता और सभ्यता पर से दुनिया को विश्वास खोना पड़े , तो ऐसी अनिश्चितता में मानव क्या सृष्टि भी समाप्त हो सकती है | इससे जहाँ हम भयार्त हैं , उस जगह बौखलाहट बढ़ सकती है | विनाश की लपटें उठ सकती है । हमारी शक्ति , शोध , सोच , ऊर्जा और सारी समधि तब नाश हो जाएगी |
 ऐसे तो विश्व अभी आसान 29 एप्रिल को स्टेरॉइड के धरती से टकराने की बात लेकर भय व्याप्त है , यह भी एक प्रकार से विनाश का ही संदेश दे रहा है | धरती पर नहीं तो ब्रह्मांड में कहीं भी कुछ होना संभव माना जा सकता है ।
 हम चिंता त्याग दें और कल्याणकारी बातों पर ही विचरें तत्परता बरतें | धीरज , साहस और सुविचार से हम निजात पा सकते हैं ।

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