भोग भावना, महत्त्वाकांक्षा एवं सत्ता सामर्थ्य के बीच कल्याण कामना
भोग भावना, महत्त्वाकांक्षा एवं सत्ता सामर्थ्य के बीच कल्याण कामना डा० जी० भक्त अगर हम सृष्टि के समस्त भौतिक स्वरूपों पर विचार करें तो सारे कल्याण कारी ही दृष्टि गोचर…
भोग भावना, महत्त्वाकांक्षा एवं सत्ता सामर्थ्य के बीच कल्याण कामना डा० जी० भक्त अगर हम सृष्टि के समस्त भौतिक स्वरूपों पर विचार करें तो सारे कल्याण कारी ही दृष्टि गोचर…
जीते तो सभी हैं किन्तु मृत्यु को गले लगाते है कोई-कोई डा० जी० भक्त जो भली प्रकार से जान गये है कि मृत्यु निश्चित है, व जीवन के क्षण को…
समलैंगिकता की अवधारणा मानव की कुर्तसित संस्कृति है। डा० जी० भक्त प्रकृत्या सृष्टि में पुरुष और नारी जाति जीवों में स्पष्ट दृष्टिभोवर है जिनके दैहिक सम्बन्ध से सृष्टि चलती आ…
संस्कृति में परम्पराओं का पालन जरूरी किन्तु विचारणीय डा० जी० भक्त सभ्यताओं के सृजन में काल और परिस्थिति की भूमिका का समावेश किंचित अभाव या अतिरेक हो जाना सम्भव है…
विचारों की प्रखरता से सुदूर यात्रा की तैयारी डा० जी० भक्त विचारों में चेतना का प्रवाह एवं उसके प्रति जागरूक और पोषक ज्ञान श्रृंखला पर मंथन अगर अपने लक्ष्य पर…
गरीब और गरीबी की संतोष ही मात्र दवा है। डा. जी. भक्त रोग तो अपना है, लेकिन उसकी दवा सदा पराये के हाथो में हैं। हमें उसे प्राप्त करना होता…
प्रभाग-37 श्री रामचन्द्र जी से गुरु वशिष्ठ मुनि की विनती, रामचरितमानस शिवजी का वचन है कि हे पार्वती! जहाँ के राजा श्रीरामचन्द्र जी ब्रह्म रूप सच्चिदानन्द ही हैं, उस अयोध्या…