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आध्यात्म बोध -3

सृष्टि विधान के विविध आयाम

डा० जी० भक्त

योगाभ्यास की दृढ़भूमि पर स्थिरमति साधक अपनी देह को नौका मान ले , ज्ञान का सम्वल पाकर धैर्य से बढ़ना ही उसे अंतिम लक्ष्य की ओर ले जायेगा ।

धर्म की धूरी पर जीवन की गाड़ी अनवरत आगे बढ़ती जाये , निष्कामभाव से अपने लक्ष्य की ओर तत्पर हो , जीवन की कमाई कल्याबार्थ देह और आत्मा को पोषण करते विश्वास्मा को समर्पित कर दे तो जो शान्ति की अनुभूति मिलेगी उससे सन्तुष्टि ही मोक्ष दिला पायेगी । यही है सच्चे अर्थ में जीवन का अभिप्रेत भाव ।

यह भी एक प्रकार से विश्व युद्ध ही लड़ने के समान है , लेकिन इसमें स्वार्थी महत्वाकांक्षा काम करती है लोभ , मोह , ममता , परिग्रहादि । वर्तमान भौतिकवादी उपभोक्तावाद का युग बोध अपनाना आन नूतन चिन्तन की अपेक्षा रखता है सादा जीवन उच्च विचार की साधना आवश्यक हो जाय सामाजिक सरोकारों को बल प्रदान किया जाय विश्व प्रेम का प्याला तैयार कर दुनियाँ से हाथ मिलाना और समष्टि के दुखों को अपने सिर पर धारण करना । कर्म को धर्म मानना और जीवन में शुचिता का कदाचित न मूल पाना ।

सत्य और अहिंसा का ही पाठ पढ़ना मनन करना । यही है वह मार्ग जो अमरता की ओर ले जायेगा ।

हम अपने अतीत को व्यतीत मानकर भूले नहीं , उससे प्रेरणा ग्रहण करें । मार्ग दर्शन पायें । उर्जा के रुप में धारण करें , वही हमारी संस्कृति की नींव है और ज्ञान वैभव का अक्षय भंडार ।

आधुनिक युग के वैज्ञानिक संसाधन धरती पर कचरे डाल रहे हैं । हमें उन्हें सीमित कर धरती को बचाना हैं । ज्ञान जब हमारा रक्षक है तो विज्ञान हमारा भक्षक क्यों ? यह हो हमारा नारा हर जीव में कण – कण में भगवान विराजते है तो उनका वध वर्जित होना चाहिए । अपराधी पापी नही अज्ञानी हैं । उन्हें ज्ञान की दिशा में प्रेरित कर भी हम मुक्ति के अधिकारी बन सकते हैं ।

यही हमारा नूतन युग बोध बनेगा । हम निवृति मार्ग का पोषक बने , प्रवृत्तियों का निरोध हो ।

आज दुनियाँ त्याग की तरणि पर सवार नही होती वह हेलीकोप्टर से अनुदान और राहत दान देकर वोट वसूलती है । विध्वंश के लिए वम बनाती हैं । आज की विकसित व्यवस्था में दुनियाँ संकट ही खरीद रही हैं ।

चारित्रिक बल और नैतिक जीवन ही अमरता दिला पायेगी । धैर्य रखिए ।

कोरोना से बचना बड़ी बात नहीं , वैक्सिन के बदले औषधि प्रसंसकरण पर उतरें ।

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