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कोरोना के घातक परिणाम का निदान होमेयोपैथी में _ _ _
 – डा . जी . भक्त ( होमेयो० )
 होमेयोपैथिक सिद्धांत के अनुसार रोग का नामकरण चिकित्सकीय महत्व नहीं रखता , उसके संक्रमण से उत्पन्न लक्षण जो शरीर के तंत्रों एवम् उनके अंगों में विकार दर्शाते तथा उनकी स्वाभाविक क्रिया की समरसता भंग कर जीवनी शक्ति को समाप्त कर मृत्यु लाते हैं , वे अपना महत्व रखते हैं । होमेयोपैथिक औषधियाँ भी परीक्षण काल में स्वस्थ मनुष्यों में जिन लक्षणों एवम् विकृतियों को उत्पन्न कर कृत्रिम रोग का रूप देती हैं , उनकी रोग से तुलना करने पर रोगी के समस्त लक्षणों की समता बैठने पर ही वह आरोग्यकारी साबित होता है । यही है समलक्षण संपन्न चिकित्सा प्रणाली होमेयोपैथी , जो आसानी से , कम समय में , पूर्णता के साथ स्वाभाविक अवस्था में लौटा पाती है । इसे हम आरोग्य ( total cure ) कहते हैं ।
 रोगों का स्थाई निराकरण ( permanent restoration ) का अर्थ है पूर्णता के साथ रोग लक्षणों की समाप्ति ( total amihilation of observable symptoms ) शारीरिक क्रिया में आई अस्वाभाविकता ( abnormalities ) का पूर्ण निराकरण ( eradication of disease ) तथा रोग चिन्हों , उनके स्थूल विकारों को मिटा देना ( oblitiration of signs ) , ताकि दुबारा उसका आक्रमण न हो एवम् पूर्ण स्वस्थता का बहाल हो जाना आसानी से समझा जाए , मानसिक और शारीरिक रूपों में वह रोगी को अपने समक्ष पाए ।
 अस्वस्थता ( रुग्णता ) के क्षेत्र में चिकित्सक का कर्तव्य है शरीर और मन की स्वाभाविक अवस्था में ला देना साथ ही सूक्ष्म रूप से स्वास्थ्य की देखभाल ( minute observation ) करना , तथा स्वास्थ्य का संरक्षण ( preservation of health as it is known ) करना जैसा वह था , जिससे वह जीवन के उच्चताम लक्ष्यों की प्राप्ति करे | ( for higher purposes of human existance ) ऐसा नहीं की वह जिंदा रहकर भी विकलांग या बेकार की तरह शेष जीवन व्यतीत न करे | आजीवन रोगी न बना न दवा का गुलाम ( drug dependant ) ही रहे ।
आज की तथाकथित मेडिकल साइन्स में ज्यादातर ऐसा ही होता देखा जा रहा है । दवा आरोग्यकारी साबित नहीं हो पा रही | रोग शरीर में दबा रहता है , दवाएँ भी दूरगामी दुष्प्रभाव छोड़ जाती हैं |
 हम आप सबने सुना – कोरोना वाइरस फैला है । उसके प्रकोप से लोग मार रहे है | यह छुत की बीमारी है | मानव जो इससे संक्रमित होता है , उसके संपर्क से दूसरे भी बीमार हो जाते हैं | इसकी अबतक कोई दवा नहीं बताई गयी है । इसके रोक थाम की भी कोई चिकित्सकीय व्यवस्था कारगर रूप से नहीं मिल रही है । उसके लक्षण की जानकारी प्रकाश में नहीं आए थे । इससे पूरे विश्व के लोग चपेट में आए | प्रवासियों का अपने – अपने देश में पलायन से रोग सर्वत्र फैलने लगा | सुनी सुनाई बात से दुनिया भयभीत हो चली | 20 मार्च को मोदी जी द्वारा देश के नाम संदेश में भी यहीं बतलाया गया की इस रोग की कोई दवा अबतक नहीं बताई जा रही |
 विडंबना है की रोग लक्षणों को बिना जाने कोई क्या सोच पाए | आज के विकसित युग में चिकित्सा पद्धतियाँ बहतेरी हैं | दवाएँ अनंत है । रोग भी अनंत है | भूल यह हो रही है की लोग पुस्तकों में कोरोना का नाम दूँट रहे हैं । रोग लक्षणों पर विचार करें तो शरीर के हर यंत्र में होने वाले विकारों की चिकित्सा सुझाई गयी है | प्रचलित रही है|
 अगर कोई रोग अपनी नूतनता के साथ समाज को प्रभावित करता हो | वह छत का रोग हो या सामान्य उसका कुछ नामकरण दिया गया हो तो नाम पर दवा का उल्लेख पहले से प्राप्त कैसे होगा ? किंतु लक्षण अगर सामने आए तो पूर्व के अनुभवों या उसका वर्णन पुस्तकों में प्राप्त हो तो उसपर उसके निदान हेतु विचारा जा सकता है | हम अतीत से नये भविष्य के निर्माण का निर्देशन सीखते हैं ।
 माना की कोरोना के संक्रमण के बाद उस व्यक्ति को उँचा ज्वर , सर्दी , और खाँसी एक साथ शुरू होती है | होमेयोपैथी में एकोनाइट नैप , बेलाडोना , ब्रयोनिय , आर्सेनिक , एलियम सीपा , यूक्रेलिया , अरसे – इयड , नेताम म्यूर काली इयड आदि दवाएँ अपने – अपने लक्षण विशेष के अनुसार रोगी को लाभ पहुँचाते है | ये प्राकृत गण औषधीय पदार्थों के है जो प्रकृति उनमें पाल रखी है | वे ऐसे पदार्थ हैं जो स्वस्थ शरीर में ये लक्षण उत्पन्न करती तथा वैसे ही लक्षण जब रोगी में पाए जाते हैं तो शक्तिकृत औषधि के रूप में उनकी सूक्ष्म खुराक रोग को मिटाकर स्वस्थता प्रदान करती है । हमें इतना देखना है की रोगी के संपूर्ण लक्षणों से यह पता चले की उस रोगी विशेष में क्या आरोग्य करने लायक स्वाभाविकता है ( what is curable in the patient ? ) तथा हमारी मेटेरिया मेडिका में प्रस्तुत दवा में से कौन सी दवा उसे स्वस्थता दिलाने वाली है ( what is curative in the medicals ) | इन्हीं की तुलना हमारी चिकित्सा प्रणाली का रहस्य है | इसी दिव्य सिद्धांत पर होमेयोपैथिक चिकित्सक रोगों का समूल निवारण करते हैं | जब अपने जाना की कोरोना से मरने वाले रोगी के पोस्ट मार्टम में पाया गया की उसकी वायु नली जिससे श्वास से ली गयी हवा का ऑक्सिजन रोगी के फेफड़े में पहुँचता है वह पूर्णत : बंद था | वैसे रोगी को वेंटिलेटर पर रखकर ऑक्सिजन पहुँचाकर जान बचाई गयी | अब इस कार्य को आवश्यक जानकर अस्पतालों , चिकित्सा शिविरों में उसे बड़ी तादाद में रखे जाने की स्थिति आई ।
 होमेयोपैथी की एंटिम टार्ट दवा इस अवस्था में खिलाकर कै ( vomitting ) द्वारा बलगम बाहर किया जाता है और उससे जान बच जाती है | अत : वैसी घड़ी में क्यों न होमेयोपैथी की सेवा से लाभ लिया जाए |
 एक बात और विचारणीय है जिसका जनता सहित सरकारी व्यवस्था को भी बोध कराना आवश्यक है | तकनीकी क्षेत्र में विज्ञान बढ़ा है | सिक्षा की गुणवत्ता घटी है उसका प्रभाव मानव के नैतिक जीवन पर उल्टा पड़ा है | कौशल का क्षेत्र कमजोर हुआ है | आपने ठीक से शायद ध्यान नहीं दिया | होमेयोपैथी की दुनिया में द्वितीय स्थान ( 200 देशों के करीब में ) रखती है | आपने उसे आयुष ग्रुप में रखा है | जिसमे आयुर्वेद , योग , यूनानी , सिद्ध और होमेयोपैथी को साथ में रखा है ।
 सबकी अपनी अपनी क्षमता , गुणवत्ता और निजत्व है | सबों को अपनी सेवा का लाभ पहुँचने का अवसर मिलना चाहिए | ताकि उनकी विशिष्टता बनी रहे और उसे विकास का अवसर मिले | यह सामान्य सिक्षा जैसी नहीं है की पद के अनुसार कार्य मिले | यह वोकेशनल या तकनीकी या वैज्ञानिक गरिमा रखने वाली है | उनकी सेवा उनके ही विशिष्ट ज्ञान के क्षेत्र में लेने की आवश्यकता है | इस हेतु उनकी सेवा उनकी अपनी मर्यादा रखती है । देश उसकी माँग करे और सरकार इन रूपों में उनसे अपेक्षा रखे ।
अबतक देखा गया है की चिकित्सा क्षेत्र में दिनान्दिन बढ़ते आयाम दवा के क्षेत्र में आरोग्यता बढ़ने के क्षेत्र में नही सर्जरी क्षेत्र में एवम् निदान क्षेत्र में सहायक बना है | यह चिकित्सा कम आर्थिक व्यवसाय ज्यादा है अगर सर्जरी को छोड़कर विचार करें तो एलोपैथी औषधीय आरोग्य के क्षेत्र में होमेयोपैथी की तुलना में आगे नहीं है | अगर इसे पूरा अवसर और संसाधन दिया जाए तो देश का आर्थिक शोषण घटेगा और आरोग्य के साथ जीवन के उच्चतर आदर्शों की उपलब्धि होगी | मानव का अस्तित्व एक महान गौरव वाला युग निर्माण करेगा । हमें अपने देश में होमेयोपैथी को हैनिमैन महोदय की कल्पना साकार करने की दिशा में बढ़ाना हैं।

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