Sat. Dec 7th, 2024

कोरोना के बदलते तेवर

 दुनिया में जड़ – चेतन सत्ता की अपनी – अपनी गरिमा है | जड़ में निजी स्पंदन नहीं होता | वह चेतन सत्ता द्वारा आरोपित उर्जा के बल पर प्रभावित होती है | प्रकृति में सजीव और निर्जीव का नामकरण इसी कारण हुआ | मानव द्वारा सृजित वास्तु मूल पदार्थों पर आरोपित विगान का प्रतिफल है | कोरोना की अवधारणा से लेकर से लेकर आजतक उसके घातक परिणामों तक की खबर सत्यता की सीमा पार करती हुई विरोधाभासों की शृंखला तैयार कर रखी | इससे साबित होता है की इसके नेपथ्य में मानव कृत दुर्दम्य कल्पना अपनी दुष्ट मानसिकता का परिचय दे रही , अथवा राजनीति की विनाशकारी महत्वाकांक्षी की लूका – छिपी चल रही | यह जीव – विज्ञान की ही प्रतिस्पर्धा है जिस पर केंद्रित विश्व की राजनैतिक सता का अपना दाव पेच आजमा रहा है | कोरोना की घातक प्रवृत्ति अपनी दिशा बदलनी शुरू कर दी है , जो एक बड़ी चुनौती बन रही है । इस पर विश्व शक्ति को अपनी प्रभुता से पछाड़ना होगा अन्यथा इस विभीषिका पर विजय पाना कठिन होगा ।
 इस अवधारणा पर विश्व चिंतित है और इसकी सच्चाई बड़े – बड़े विचारक का ध्यान जा रहा है । अगर सत्य माने तो विज्ञान को कभी भी विघटनकारी सोच पर कम करना मानवता के साथ दुश्मनी माननी पड़ेगी । आदी काल से युद्ध और शांति के बीच लड़ाई लड़ी जा रही है । प्राकृतिक रूप से शरीर के रोग उत्पन्न होते और उससे मृत्यु होती है । प्राकृतिक आपदाए आती है । दुर्घटनाए होती है । विनाशकारी परिणाम आते हैं । किंतु छदम रूप से मानवता के प्रति अकल्याण की योजना न उचित है न क्षम्य ही । अबतक विरोध का लक्ष्य आततईयो की समाप्ति कर विश्व को भावी विनाश से बचाने का सफल पहल होना चाहिए । पहले भी संत महात्मा ( मानवता वादी विचारक ) युद्ध का समर्थन नही करते देखे गये | गाँधीजी का विरोध प्रदर्शन सत्य और अहिंसा से जुड़ा था | उसमे अर्थव्यस्था पर  न आघात था न प्रकृति की न सृष्टि की ही समाप्ति की योजना थी न किसी को कष्ट देने की|
 खेद है कि सभ्यता और संस्कृति की इस उँचाई पर पहुंच कर भी हम अपनी अर्जित सम्रिधि का नाश करना चाह रहे । ऐसी दुर्घटना का बीज बोना , जिसका निवारण संभव न हो ?

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