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 चुनावी दंगल में राजनीति का पंगुपन

डॉ . जी . भक्ता

 जनतंत्र की नगरी वैशाली और सांस्कृतिक आदर्शों का पालक देश भारत की राजनीति में कतिपय जनतांत्रिक मानकों का पलायन सिद्ध करता है । जब शिक्षा और संस्कृति का उन्नायक देश भारत से मूल्य परक शिक्षण का अवसान हो चला , अनुशासन नैतिकता और सामाजिक सरोकार की विदाई ही माने , कर्तव्य बोध पर तो विचारना ही नहीं , तो आप ही बताएं कि राज्य कहाँ और राजनीति कहाँ ।

 चुनाव का आलम ही देखने से लगता है कि आदर्श आचार संहिता का पालन कैसे होता है । जनतांत्रिक विधान , आदर्श नागरिक चरित्र , निष्पक्ष चुनाव के मानक , प्रचार कार्य की सूची तथा उम्मीदवारों की योग्यता कीर्तिमाता के व्यावहारिक प्रमाण और सफल भूमिका , प्रत्यक्ष स्वरूप पर चुनाव अधिकारी का समुचित ध्यान दिया जाना तो आवश्यक है ही चुनावी खर्च सहित उनकी आय का हिसाब भी देखना जरूरी है । खासकर ग्राम पंचायत , नगर पंचायत एवं व्यापार मंडल के चुनाव अगर साफ – सुथरे तौर पर कराये ना गये तो ग्राम स्वराज्य की कल्पना को भूल विजेताओं द्वारा जश्न मनाए जाने पर ध्यान दें तो लगेगा कि यह ग्रामीण परिवेश को पार कर विधाय संसदीय चुनाव को झूठा दर्शा रहा है । इससे राजनीति का पंगुपन नहीं तो क्या कहा जाए । “

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