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 पी ० एम ० मोदी महोदय की दृष्टि में कोरोना के प्रति जारी हो सिविल वार

 डा ० जी ० भक्त 

 गहन चिन्तन से यह विषय आवश्यक ही नहीं , शत प्रतिशत से भी अधिक उपयोगी समझ में आ रहा है । अगर यह प्रयोग वे बुनियाद साबित न हो पाया तो देश एक बार फिर गाँधी जी के बुनियादी कार्यक्रम का कामयाब मानक माना जा सकेगा । फिर अस्पताल , विभाग और सरकार का पच्चर तो न रहेगा । इसमें स्वतंत्रता , समानता और भाईचारा तो बना रहेगा ।

 उनका मार्मिक कथन है कि ” जहाँ बोमार वहीं उपचार । ” कितना सुन्दर विचार है । जब अस्पतालों में सुविधाएँ कमजोर पड़ी तो निवास को प्रवास मानकर चलिए । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमने गाँवों पर इतना ध्यान दिया कि अब गाँवों की झलक देख शहर वाले भी ललक रहे । गाँवों की भूमि बिक रही । जन संख्या का भार और जंगलों , वनस्पतियों की कभी , यातायात और उद्योगों धूम्र निःसरण से दम फूल रहे । कहाँ जाइएगा अस्पतालों की भीड़ और छोटे कमरों में खचाखच जन जमाव कम से कम खुली हवा तो मिलेगी । भर पेट साँस लीजिए । तुलसी , गुलफ्शा गिलोय का रसपान तो सर्व सुलभ समाधान होगा , लाकडाउन के विधान का पूर्ण परिपालन होगा । हमारे कोरोना कमाण्डर और सेवक सैनिक अपनी दैनिक अनवरत सेवा संग्राम से विराम तो पायेंगे । जब परदेश से पलायन कर स्वदेश लौट , जीविका प्राप्ति पर विपति आयी तो घर वालों की फटकार से सोसल डिस्टेंसिंग को बल मिला । बहुतेरो विविधताओं में मन को बहलाया ।

 आज हम विकास की परतंत्रता , उपभोक्तावादी दवंगता वैश्वीकरण और उदारीकरण के छिछलापन को झेलकर फिर गाँव पर लौटे तो शहरों का भार घटा और अपनी संस्कृति याद आयी । हम जब अतीत में समय व्यतीत करेंगे तो प्रदूषण , पलायन , सुरक्षा , प्रतीक्षा और व्यवस्था की समरसता में गणतंत्र स्वतंत्रता की सांस तो ले सकेगी । चौदह शदियों की लगातार गुलामी दो सौ वर्षों के स्वतंत्रता संग्राम से परेशान जनता को सन सैतालिस से देश के विकास में जुड़ना आज कोरोना की भार सहनी रही । हमारी नयी सरकार को अर्थ व्यवस्था की भार इतना सता रही कि शादी – विवाह दफन और संस्कार को भी त्यागना पड़ रहा । इससे अच्छा है कि हम क्यों न प्राकृतिक जीवन अपनाएँ , और आयुष के चिकित्सकों का भी सहारा लें । होमियोपैथी के रैपिड नेन्टिल एण्ड परमानेंट क्योर जो पूर्णतः निरापद है उसकी लगभग 30 दवाएँ ऐसी है जो कोरोना के हर लक्षण और गम्भीरता की स्थिति के लिए आरोग्यकारी है ।

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