Fri. Apr 19th, 2024

पेट पर लात

डा० जी० भक्त

कितनी बुरी बात मानव मानव पर घात लगाये बैठा है। थाने के सिपाही रोड पर खड़े होकर अहले सुबह (हात प्राप्त) ट्रक वाले को दबोचा। दो सज्जन बाईक लगाकर एकान्त में छिपे लूट की योजना बनाते पकड़े गये डा लूट, बैंक लूट दूकानों में दिन दहाड़े लूट शोषण, उत्पीडन, उपेक्षा ठगी कमीशन चूस, रंगदारी.. अब नये-नये टेकनिकल शब्दावली, नामकरण प्रयोग में आ रहे हैं। कल राहुल गाँधी के एकाउण्ट के सारे रकम हैक हो गये। यह सभ्य समाज में ही लागू है।

किसी के पेट पर लात मारना जीवन जीविका से जुड़ा सवाल है कोई मिहनत करता है। पूंजी लगाता है। पढ़ाई में खर्च करता है। नौकरी करता व्यवसाय करके अर्जन करता है। समाज विरोधी तत्व उसे रूप लेते है जान ले लेते, लाश छोड़कर चल बनते है हमारा सुरक्षा तंत्र पर है नियंत्रण ही वातावरण है न्याय प्रक्रिया भी परेशान करने वाली है। वेतन से पेट नहीं भरता आतंक फैलाना किसी को राटी छिनना क्या है? पेट पर लात मारना समृद्ध, शिक्षित और सुयवस्थित समाज में फैला यह आतंक असुरक्षा, और जीवन से भी खिलवार तबाही और चिन्ता तो इस बात की है कि हमारे प्रहरी, कर्मचारी सेवक, शासक, व्यापारी किसान मजदूर न्यायकर्त्ता सभी कर रहे है। जो चाहे कर लें छूट है लूट की चिन्ता है केवल वोट की सबको जरूरत है नोट की देख रहे है न? नोट जमा करना भी खतरा नोट निकालना भी खतरा समाज सुधार में भी नया चकल्लस देश में सुधार के कदम उठ रहे आतंकियों के पास नोट छप रहे कल पाकिस्तान से समझौता वाली होने वाली है। रात के उबजे एल. ओ. सी. के पास भारत के चार जवान शहीद । हम कहाँ है किस पैगाम पर चले है? लोग भरते है। यह सब कैसे थमेगा ?

जरूरत थी रोजगार को नियोजन की स्वावलम्वन का शिक्षा, स्वास्थ्य जनवितरण और न्याय व्यवस्था को दुरुस्त करने की भारत सरचना साधन जन क्षमता से भरने की विद्यालयों में शिक्षक नहीं, स्वास्थ्य केन्द्रो अस्पताली में डक्टर नहीं है, लेकिन कहीं प्रैक्टिस कर रहे है नियोजन के अभाव में जगह खाली पड़ी है। ठेक पर काम करने वले बैठाये गये है। अवकाशप्राप्त वृद्ध जनो को पुनर्नियोजन दिया जा रहा है। यह है देश को सशक्त और चुस्त-दुरस्त व्यवस्था देना शिक्षा में सुधार पढ़ाई से नहीं होगी किताब नहीं चाहिए। वर्षो से छात्र को पुस्तकों की आपूर्ति में कमी देखी जा रही शिक्षक जनगणना चुनाव और मिड-डे-मिल में व्यस्त पढाई निरस्त शिक्षा व्यवस्था परत ।

अब कानून गढ़ने से व्यवस्था नहीं सुधर सकती। शिक्षा के जरिये अनुशासन नैतिकता और कर्तव्य बोध को पुनर्स्थापित कर मानवीय मुल्यों से नागरिको में सदाचार लाने की जरूरत है आचरणवन शिक्षक तैयार करना चाहिए। आचार तो आज विशेषण ग्रहण कर अत्याचार और भ्रष्टाचार बन गया। यहां से उसे लौटाकर सदाचार से सुसज्जित करने वाली मूल्य परक शिक्षा चाहिए। लोग अब नवाचार पर शोध कर रहे हैं। अब विद्यालयों को कम्प्यूटर से करना है। इससे हम पढ़ाई से मुक्त हो जायेंगे। विभाग को भरपूर कमीशन और कमाई के आयाम प्राप्त होंगे। छात्रों को परीक्षा में अंक नहीं ग्रेड दिये जायेंगे जिससे उनकी शैक्षिक उपलब्धि का आकलन होगा। लड़के फेल नहीं होंगे वेतन भागा परीक्षक जब फेल नहीं सूचित करेंगे तो ग्रेड कमजोर क्यों देंगे कमजोर ग्रेड देने पर उनसे कैफियत पूछा जायेगा।

जब इंटर कॉलेज (वित्तरहित) में वेतन हेतु आर्थिक अनुदान का आधार छात्रों का परीक्षा फल माना गया तो परीक्षक व्याख्याताओं ने इसे घाटाला का रूप देरखा (वर्तमान (शिक्षामंत्री जी के शब्दों में) शिक्षा को मजबूत बनाने का नवाचार देखिये शैक्षिक परिवेश और शिक्षा विभाग व्यवसाय का केन्द्र बन गया है तो माननीय मूल्य की स्थापना काफी महंगा पड़ेगा। उससे आचारथान की जगह भ्रष्टाचरण का प्रतिफलन होगा। इस हेतु शिक्षाविदों ने पाठ्यक्रम में भारतीय संस्कृति को आधार माना है।

आज मानव मानव को नहीं पहचान रहा। वृद्ध माता-पिता की पहचान धूमिल हो गयी विकास की प्रक्रिया में श्रम साम्य सहयोगी किसान और मजदूरों शिल्पकारों की उपेक्षाकर उद्योग पर आधारित उपभोक्तावादी बाजार (मील संस्कृति) तो कमजोर और छोटे व्यवसायबालों के पेट पर लात मारने का नया स्वरूप खड़ा कर रखा है। आज की राजनैतिक व्यवस्था उसी का पक्षधर है क्योकि सत्ता उन्ही के सहयोग और पोषण के उपर आवाद है। यह कैसा मजाक है मानवता के मूल्यों के साथ ?

यह व्यवस्था विरोधाभाषी है कहा नहीं जा सकता कि विकास का कौन-सा हिस्सा गरीबों का मिल रहा है। इसका गणित कौन तैयार करेगा। सरकारी स्तर पर जो विकास की घोषणा होती है उसको वितरण की पारदर्शिता जनता की नजर में कैसे आयगी घोषित और आभाषी आकड़ो का साभा शायद ही सामने दिख पाये अगर ऐसा नही तो उनके सम्बन्ध में हुए घोटालों अनियमितताओं की बातें कहा से छपती है और समाज में अघोषित या छिपे धन के स्रोत कहाँ से गढ़े जाते है जरूर ही किसी प्रकार से किसी का हक छीना जाता है। यह एक अपराध मात्र नहीं हिंसा है।

मजाक किये जाने का उद्देश्य क्या है सत्य को उल्टी भाषा में प्रस्तुत करना । सत्य सकारात्मक होता है जिसे व्याकरण में निश्चय गायक कहते है। जब प्रश्न वाचक नकारात्मक कथन सकारात्मक माना जाता है। तो एक अटूट सत्य सा लगता है (साहित्य में कथन की प्रस्तुति में व्यंजना कहते है।

पेट पर लात मारना सभ्य समाज के लिए शोभनीय नहीं। वस्तुतः यह हिंसा है।

“धनानि जीवित चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजत समझदार लोग धन और जीवन दूसरे के कल्याणार्थ दान करते है।

सन्निमित्र र त्यो विनशे नियतेति अच्छे उद्देश्य के लिये व्याग श्रेष्ठ है क्योंकि शरीर का नाश निश्चित है।

By admin

3 thoughts on “पेट पर लात”
  1. May I simply say what a comfort to discover somebody who genuinely knows what they are talking about over the internet. You actually understand how to bring a problem to light and make it important. More people ought to check this out and understand this side of the story. I cant believe you arent more popular because you surely possess the gift.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *