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भारत में होमियोपैथी की गरिमा और आज का परिदृश्य

 आज सन् 2021 की 10 वीं मार्च । अगले माह 10 अप्रील को महात्मा हैनिमैन का जन्म दिन महोत्सव होमियोपैथी के आविष्कर्ता के रुप मनाया जायेगा । भारत में होमियोपैथी का पदार्पण अपना गौरवमय इतिहास सजा पाया है । पंजाब केशरी राजा रणजीत सिंह के पैर का घाव डा ० होनिंगवर्जर द्वारा होमियोपैथी से छुड़ाया जाना , भारत में ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार के साथ होमियोपैथिक चिकित्सा सुविधा दिया जाना एवं कानकनाडी मंगलूर ( आन्ध्र प्रदेश ) में पूअर होमियोपैथिक डिस्पेंसरी की स्थापना भी स्मरणीय रही ।

 अपने देश को होमियोपैथी का लाभ मिला । प्रचार – प्रसार हुआ । बड़े – बड़े एलोपैथिक चिकित्सक अपनी उपाधि लौटाकर होमियोपैथ बने , जैसा हैनिमैन महोदय के समकालीन चिकित्सकों ने होमियोपैथी अपनाई थी । एक उत्साह जगा । सस्ती पद्धति विकसित हुयी । गरीबों का कल्याण हुआ । एक शीघ्र लाभकारी , सस्ती , सुगम , सुलभ , स्थायी आरोग्य दिलाने वाली पद्धति एक नया युग स्थापित कर पायी । चिकित्सा जगत में होमियोपैथिक संगठन बने । 1953 में भारत सरकार ने अधिनियम पास कर होमियोपैथी को अपनायी , कॉलेज खुले , संस्थान , विधान , प्रावधान , सहयोग के साथ आज नियोजन तक मिल पाया ।

 स्वतंत्रता प्राप्ति काल में भारत में अपने देश को महान होमियो चिकित्सकों का साथ – सान्निध्य और नेतृत्व से 1976 में होमियोपैथिक चिकित्सकों का राष्ट्रीय मंच तैयार हुआ जिसका प्रथम अधिवेशन भारत की तकनिकी स्टील सिटी जमशेदपुर में हुयी । हम अपने देशवासी होमियोपैथों के बीच उन शीर्ष होमियोपैथों में से जिनके ऋणी रहे , उनके क्रमशः डा ० दिवान जयचन्द्र , राजेन्द्रनाथ दत्त , महेन्द्र लाल सरकार , यदुवीर सिंह के ० पी ० मजुमदार डा ० जयसुरिंभा बी ० के ० वसु , दफ्तरी आदि नाम देवीप्रामान प्रकाश स्तम्भ है । उनके सन्देशों को गति देनों वालों में डा ० दिवान हरिश्चन्द्र डा ० युगलकिशोर डा ० डी ० पी ० रस्तोगी , डा ० एस ० आर ० वाडिया , डा ० पी ० संकरण , सी ० वी ० एस ० कोरिमा एम ० पी ० आर्या ० आर ० के ० देसाई , एस ० पी ० कौपिकर , डा ० एस ० पी ० चट्टर्जी आदि जिसमें होमियोपैथी को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ाने का संकल्प रहा , करीब ऐसे तीस होमियोपैथ एच ० एम ० ए ० आई के बैनर के नीचे अपनी क्षमता और सेवा से होमियोपैथी को विकास का सम्बल प्रदान किया । मुझमें इस गतिविधि से जुड़ने का दृढ़ लग्न था , अवसर भी मिला और गतिविधि भी लाई । 1977 में मैं दो अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना महत्त्वपूर्ण एवं अनोखे वैज्ञानिक लेखों के साथ उतर पाया । यह प्रवृत्ति मेरी तदनुरुप अबतक चली आई । इसके साथ मुझे देश एवं विदेश में क्रमागत रुप से होमियोपैथी के क्षेत्र में कार्य कलापों और विकास की रुप रेखा को भी ठीक से समझने का मौका मिलता रहा । विदेशों के संबंध में तो मैं साफ – साफ बता नहीं सकता । पाँच विश्व सम्मेलनों में अपनी सहभागिता निभाते हुए जो पाया अबतक प्रारंभिक क्रियाशीलता कायम रही होती , तो होमियोपैथी में विचलन को जो बल मिला वह सिद्धान्त से हटकर गतिविधियाँ अपनाये जाने और मंच पर हनिमैन के मूल सिद्धान्तों पर व्याख्यान का आलाप वाली द्विविधा लक्षित हुयी ।

इतना ही नही सरकारी सम्बल मिलने से एक कमजोर परिदृश्य का उदय हुआ । चिकित्सा विज्ञान के इस पवित्र ओर आरोग्यकारी प्रणाली को राजनीति के चक्र में फँसने से रोजगार पाने मात्र ही पर रुक जाना पड़ा । शेष का तो परिदृश्य ही बतला रहा कि होमियोपैथी कहाँ जा रही और कहाँ किनारे लगेगी । कोरोना काल में तो मैं जैसा देख रहा हूँ , इसकी भूमिका को पटल पर उतर कर अपना कीर्तिमान स्थापित करते नहीं सुन , नही पा रहा हूँ । तथापि मेरे विचार में ऐसा है कि इन जड़ता की स्थितियों से होमियोपैथी का कुछ नहीं जा रहा है , विज्ञान – विज्ञान है , हनिमैन महोदय ने अपने प्रतिदूंदी की शिकायत पर कहा था ” अगर होमियोपैथी मूर्दा है तो इसे गहराई मे दफन कर डालो । अगर जिन्दा साबित हुआ , तो उस कब्र पर उगी घास आकाश को छूयेगी ।

 आज शीर्ष पर जमे हुए जो महान होमियोपैथ है , वे चुप है । जैसे उनके समक्ष कोरोना कुछ है ही नहीं । उन्होंने भी लॉकडाउन में भूमिगत होना स्वीकार कर लिया है । उन्हें तो 10 अप्रील को सामने आकर अपने होमियोपैथी के प्रवर्तक महात्मा हैनिमैन की श्रद्धांजलि देने आना चाहिए । नहीं तो वेविनार ही सही , लेकिन HMAI , LHMI , CCH , CCRH सह AYUSH को भी कुछ तो कर दिखाना चाहिए । मात्र 30 दिनों की प्रतीक्षा है ।

 होमियोपैथों से आशा की जाती है कि वे निरपेक्ष भाव से निभ्र बिन्दुओं पर अपना विचार विश्व के पटल पर रखते हुए अविकर्ता के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धांजली अर्पित करें जो उत्साह बर्द्धक सहित प्रेरक एवं संरक्षक सिद्ध हो ।

 1. होमियोपैथी के सिद्धान्त का व्यावहारिक संरक्षण ।

 2. होमियोपैथिक चिकित्सा के नियम ( रोगलक्ष्ण सदृश ) दवा , एक ही दवा का एक समय प्रयोग एवं अल्पतम खुराक का ही सदा ख्याल रहे ।

 3. समयानुसार तद्रूप विधान दिया जाय ।

 4. पेटेंट दवा चलाकर होमियोपैथी की मर्यादा पर कलंक न लगाया जाय । अपवादों को सीमा में बरता जाय ।

 5. नवीन , युगीन एवं विशिष्ट क्षेत्रों में शीघ्र , निर्माण , परीक्षण और प्रयोग की उपलब्धियों को मूल ज्ञान संग्रह में जोडा , जाय ( Documentation , verification , orientation and reproving )

 6. नवाचारी विधान का रेमेडियल रिओरियेन्टेशन या थेराप्युटीकली भेरीफायड कर रिर्पोटरी में जोड़ा जाए ।

 7. सेमिनारों में प्रस्तुत किये गये तथ्यों का Authentication के बाद मूल पुस्तक में Addition किया जाए अथवा Appendix के रुप में प्रकाशित किया जाए । सम्भव हो तो इसके लिए एक सेल स्थापित कर इस कार्य को आवश्यकीय रुप दिया जाए ।

 ( Dr. G. Bhakta )

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