Thu. Apr 18th, 2024

भाग-3 मनुष्य का सामाजिक जीवनादर्श

57. कहाँ तक गिनाएँ , समाज को आर्थिक रुप से उत्क्रमित करने का कार्य अपने देश में जी तोड़ चल रहा है । लीची के पेड़ की डाली रोप कर तस्वीर खिंचवा लीजिए , सबसिडी उठा लीजिए । बकड़ी – भेंड – सुअर खरीद लीजिए । मरने का रिपोर्ट कर बीमा का लाभ और योजना की सबसिडी एक ही साथ लीजिए । एक तीर में दो शिकार ।

 58. उद्योग में पूँजी निवेश हो , एफ ० डी ० आई हो या खाद्य सुरक्षा योजना , आँगनवाड़ी हो या मिड्डे – मील बस , ख्याल रहे- जागरुक हैं तो सब ठीक – ठाक नही तो इमानदार बनिये , अवसर हाथ से गया । भाई , ये योजनाएँ हमें विकसित सोच सिखाने के लिए भेजी जाती हैं।

 59 भ्रष्टाचार मिटाने में हमारे प्रधानमंत्री पीछे पड़ गये लेकिन बिहार तो सुधार की आँधी उखाड़ दिया । लोग कहते हैं कि इस सुधरे हुए भ्रष्टाचार में घूसखोरी चरम सीमा पर बढ़ी जो अबतक भी सिर उठाना नहीं छोड़ी । ये जनता क्या समझेगी विकास की बात ? तेज प्रवाह में जड़ धराशायी होकर गिर जाये तो उसमें कौन – सा लाभ होगा ? बकड़ी का चारा होगा या सूखने पर जलावन । इससे कितना धनी हो जायेगा ?

 60. मैं भी तो बार – बार शिकायती तेवर ही बनाये हुए हूँ । यह भी मेरी गलती कहें या लेखक की रचना धर्मिता ।

 61. लेखक को आप समाज का दुश्मन मत मानें । निंदक नियरे रखिये ।

 62. यूरोप में भी ऐसा सुना गया कि एक दिन मशहूर साहित्यिक शेक्सपियर को ब्रूटस से बकझक हो गया । उसने कहा – आप लेखक हैं , सो ठीक है किन्तु मुझसे क्या दुश्मनी कि एक ड्रामा लिखकर मुझे विश्व के पटल पर बदनाम किया ?

 63. भाई , मुझ पर भी तो एक दिन एफ ० आई ० आर ० होने ही वाला है । सामाजिक गिले – शिकवे को पटल पर लाने का लांछन तो लगना ही है । आखिर निषेधाज्ञा क्या है , जनता सत्ता के बीच टकराव । लेकिन उस दिन को क्यों भूलते जिस दिन जनता ने ” आप ” को सत्ता की सीट पर बैठाया निषेधाज्ञा मुख्य मंत्री पर लागू हो जो राष्ट्रहित पर पूर्ण सजग है , जिसकी सुप्रीम कोर्ट भी अनदेखी और संविधान के निहितार्थ पर पर्दा डालने का प्रयास कर रहा है । संशोधन क्यों नहीं ? वह भी तो किसी – न – किसी रुप में कठघरे में खड़ा है ।

 64. न मेरा दोष है न मेरी समाज से कोई दुश्मनी । न मेरी कलम दोषी है न स्याही ही । हाँ , आप कह सकते है कि मेरी भाषा शैली कुछ ऐसी है जो मैंने अपनी रचना को लालित्य देने हेतु अपनाया है । अगर आपको इसमें भी कोई ज्यादाती लगती है तो भाषा के साहित्य में अतिशयोक्ति भी अलंकार है जो सर्वमान्य है ।

 65. कार्टून , व्यंग , हास्य में लाक्षणिक शब्दों का प्रयोग ही उसकी आत्मा है और समाज का साहित्य से अविच्छिन्न संबंध इसलिए है कि वह साहित्य समाज का प्रतिनिधित्त्व लेने के कारण दर्पण कहलाता है ।

 66. जिस प्रकार आप कहते है कि “ कुछ बात हैं कि हस्ती मिटती नही हमार ” , उसी तरह अभिव्यक्ति की विधाओं में अविधा , लक्षणा और व्यंजना का प्रयोग उचित है । भला ये राजनीतिज्ञ जो हर बात में राजनैतिक दृष्टि रखने की ही है नियत रखने वाले हैं वे साहित्य से स्वींझ उठते और उसके रस से अपरिचित ही रहते है ।

 67. अगर हम इतिहास के पन्नों में झाँके तो सही – सही समझ सकते हैं कि भारत के इतिहास में कला और साहित्य की समृद्धि वाला युग ही आज भारतीय संस्कृति और ज्ञान गरिमा का स्वर्ण युग माना जाता है ।

 68. आज दुर्भाग्य है कि हमारे बीच सामाजिक परिदृश्य से शिक्षा का गिरता मूल्य सामाजिक और राष्ट्रीय मर्यादा का क्षरण सिद्ध कर रहा है । शिक्षा में सकारात्मक सुधार की आवश्यकता अपेक्षित मानी जा रही है । नागरिकों में मानवीय मूल्यों की पुनस्थापना होनी चाहिए । नैतिकता और अनुशासन का अभाव ही शीर्षस्थ नेतृत्त्व को भी अमर्यादित किया है । लेकिन उन्हें कौन समझायें , वे सर्वोच्च हैं ।

 69. समाज एक सशक्त संगठन है भले ही साम्वैधानिक नहीं , किन्तु उसका एक पारंपरिक संविधान है , मान्यता है , निर्णय है , प्रचलन है , अनुशासन और कार्य प्रणाली भी । उसकी अनसुनी संविधान भी नहीं करता ।

 70. राष्ट्र की राजनीति में उसके सामाजिक जीवन की पार दर्शिता को अहम माना जाता है । राजनीति हमेशा समाज से प्रेरित होती है , राजनीति से समाज नहीं । ऐसा तब सम्भव होगा जब राजनीति में सामाजिक पुनर्रचना के कार्यान्वयन का कीर्तिमान प्रत्यक्ष पाया जाय ।

 71. आज हम अपने समाज को भी विखरते देखकर चिन्तित हैं किन्तु हमारे महाप्रभु इसे साम्वैधानिक चलनी के छिद्रों से झांक कर वैसे देख रहे है जैसे सतैसा में शिशु का भाग्य देखा जाता है । कृप्या चश्मा लगाइए ।

 72. जब यह बताया गया कि भारत का एक भी विश्व विद्यालय विश्व के चयनित 200 विश्व विद्यालयों में अपनी प्रविष्टि नहीं पा सका तो देश के प्रधान मंत्री चिन्ता निमग्न हो गये । राष्ट्रपति जी भी ।

 73. ऐसा ही भाव उपराष्ट्रपति जी एवं लोक सभाध्यक्षा का था । उन्होंने कहा कि हमने जो शिक्षा के द्वारा जनतंत्र की मजबूती की उम्मीद की थी वह पूरी नहीं हो सकी उन्होंने मानवाधिकार के क्षेत्र में देश का लक्ष्य पूरा न होने की बात भी कही ।

 74. त्याग से विकास होगा , भोग लिप्सा से नहीं ।

 75. आपने शिक्षा को कोसा , कभी शिक्षितों को सम्मान दिया ? घूस और कदाचार पर नियोजन किया । क्यों न भ्रष्टाचार फैले । दायित्व की बात सोचते है तो शिक्षा से उन दुर्गुणों को भगाइए ।

 76. समाज के मेघावी छात्र मेडिकल मंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी में प्रवेश लेंगे । उद्योगपति पूँजीपति ?

 77. बाहुबली देश के नेता बनेंगे , मंत्री बनेंगे । छात्रों में कम राष्ट्रभक्ति नही है । आज जितने बेरोजगार है सब पर देश सेवा की धुन सवार है । उन्होंने 1970 से 2020 तक नौकरी की तलाश में अपने सिर का बाल सफेद कर लिया लेकिन कुदाल नहीं पकड़ा । सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *