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भाग-2 मनुष्य का सामाजिक जीवनादर्श

 35. अगर ठीक से हम सभी अपनी संस्कृति के रक्षा करें , उस सांस्कृतिक घरोहर को समझे तो हम भी कुरुक्षेत्र को जीत सकते हैं ।

 36. अंग्रेजों द्वारा स्थापित संसद भवन उनके कब्जे में शताब्दी का स्कोर हासिल करने वाला था । कांग्रेस भी चाहती है ।

 70 वर्षों तक लगभग तो वह बैटिंग कर पायी । शेष में ” आप ” अडंगा लगा रहे हैं । अपनों से दुश्मनी क्यों मोल ले रहे है ? अब नेहरु जी ने पंचशील और विश्व शान्ति का नारा दिया तो राहुल में क्या कभी पा रहे है ?

 37. हमारे कपिल सिब्तल जी , दिग्विजय बाबू कम मजे – मंजाये राजनीति के पितामह है ?

 38 , न हो तो प्राइमरी विद्यालय में नाम लिखायें , फिर से शिक्षा पाकर ही गणतंत्र में हाथ बटायें ।

 39. वहाँ की शिक्षा बिना रासायनिक खाद – पानी और , दवा का बिल्कुल प्रदूषण मुक्त है । उस शिक्षा में कहीं कोई दोष नहीं । पढ़ाई मुफ्त , पोशाक मुफ्त , पठन – पाठन में बोझ नही , शिक्षक भी कम और जो हैं , सभी परिश्रमी । उस पर भी विश्व बैंक और शिक्षा परियोजना का प्रसाद | पढ़ाई भी ठीक , पेपर भी ठीक ।

 40. इससे भी बढ़कर वहाँ खिचड़ी का जायकेदार लजीज स्वाद ! पौष्टिक भी । कभी – कभी ज्यादा बन जाने और खाने से विषक्त होने का भ्रम फैलता है । निराधार समाचार होने से व्यवस्था पर कोई आँच नहीं । सरकार तो सजग है ।

 41. ये समस्यायें भू – मंडल के उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक कुछ – न – कुछ देखी जा सकती है । यह हुआ हमारे समाज का अत्याधुनिक राजनैतिक परिदृश्य ।

 42. मनुष्य का सामाजिक जीवन प्रेम , सद्भाव और सहकार का संगठन है । इतना अवश्य ध्यान देना होग कि जहाँ बर्तनों का देर होगा वहाँ टकराव स्वाभाविक है और सुधार भी ।

 43. उस जीवन को सुखमय इसलिए स्वीकारा जाता है कि सहयोग से सबका हित सधता है । सुख – दुख का साथी समाज ही है ।

 44. समाज विविधताओं का सम्मिश्रण है । जैसे खिचड़ी का स्वाद चावल – दाल से अधिक रुचिकर होता है वैसे ही समाज हमें बखस लुभाता है।

 45. भले ही समाज में कुछ लोग , कुछ विचार , कुछ व्यवहार परस्पर विरोधी ही क्यों न हो , हम उसकी चर्चा करके भी आनन्द लेते हैं । उसी क्रम में कुछ सुधार भी हो जाता है । चिंतन में चातुर्य भी एक कला है ।

 46. मानव अधिकतर छिद्रान्वेशीहोता है । मैंने भी तो समाज की कितनी आलोचनाएँ कर दी । इस आलोचनाओं से कुछ बिगड़ने वाला नहीं । यह मानव का स्वभाव है ।

 47. देश के संबंध में भी आलोचक जी भर कर कह लेते हैं , लेकिन सब अपने आप में ठीक ही चलरहा होता हैं । हमें अपने स्तर से भले ही बुरा लगे ।

 48. ट्रेने दौड़ रही हैं । वायुमान उड़ ही रहा है । यातायात के सभी साधन अपनी रफ्तार तेज किये आगे जा रहे हैं इसी बीच खतरा हो जाता है । फिर उसके चलते क्या – क्या न होता रहता है ।

 49. लोगों की प्रतिक्रिया है कि जन संख्या बढ़ने से ज्यदा खतरा बढ़ा है । धक्का – मुक्की का युग है । धक्का करना हमारा कर्तव्य है । धक्का खाना भी हमारा धर्म है । धर्म – कर्म के खेल में आपसी मेल पर खतरा है । स्टेशन पर , डाक घरों में , जन वितरण की दुकानों पर अस्पताल और दवा दुकानों पर , कॉलेज में नामांकन के समय धक्का का सिलसिला दर्शनीय है ।

 50. मैंने कहा- इस धक्का – मुक्की के बारे में पहले नहीं सोचा गया । परिवार नियोजन में हम पिछड़ गये । एक महानुभाव बोले – पहले मृत्यु दर भी तो अधिक थी । इसलिए सरप्लस सन्तानोत्पत्ति हमारी मजबूरी रही । मरते – मरते कुछ तो जरुर बच जाते ।

 51. बिना धक्का लगाये कोई काम सम्भव नहीं । प्रतिस्पर्धा और अवसर वादिता चरम की ओर है । धन में , बल में , पैरवी में , परीक्षा में , नौकरी में सर्वत्र बल प्रयोग चाहिए । सरकार भी जनमत चाहती है । जनमत का अपना गणित और अपना समीकरण होता है । परिवार नियोजन भले ही समाज के लिए आवश्यक है किन्तु सत्ता के लिए धातक है तब तो सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से गरीबी घटाये या नहीं किन्तु गरीबों की अपार संख्या पर उदार अवश्य है । उसके विकास की सूई , गरीबों , अल्पसंख्यकों पर कभी गरजती तो कभी बरस भी जाती है ।

 52. और एक यह भी तर्कपूर्ण है कि परिवार नियोजन एक गलत शब्द है । नारे तो बहुतेरे है । परिवार नियोजन निरर्थक है । परिवार कल्याण भी ढोंग है । कम परिवार सुखी परिवार । दो या तीन बच्चों , सबसे अच्छे । हम दो , हमारे दो । बच्ची हो या बच्चे , दो ही अच्छे । लेकिन दो भी क्या , एक की भी गारंटी दी स्वास्थ्य विभाग ने ? सरकार कभी सोची इस मुद्दे पर समाज ने कभी मुँह खोला इस प्रश्न पर ?

 53. कभी इसका नाम जन्म निरोध रखा गया , फिर परिवार नियोजन , परिवार कल्याण । अब तक नियोजन पर ध्यान ही नही दिया गया । 1970 से अबतक नियोजन पर ध्यान ही नही दिया गया और तब तक हम 30 करोड़ से 130 करोड़ की ओर बढ़ रहे हैं ।

 54. परिवार कल्याण का पहलू है गोद में बेटा – बेटी दोनों खेले । दोनों दीर्घायु हो । लिंग अनुपात समान रहे । कोई विकलांग न हो । सभी निरोग , कुशल और मानसिक रुप से संतुलित हों । हर घर में स्वावलंवन हो । सुखद वातावरण हो , कोई बाँझ न हो , कोई अकाल मृत्यु या वैधव्य न देख । तब हम चिकित्सा विज्ञान को पोजिटिव साईंस के रुप में सम्मान दे पायेंगे ।

 55. यहाँ तो कोई निःसन्तान है तो किसी की सन्तान मर जाया करती है । किसी को केवल पुत्रियाँ ही जन्म लेती है तो किसी को केवल पुत्र । किसी की पुत्रियाँ जन्म लेती और सभी जीवित पायी जाती है लेकिन जो पुत्र जन्म लेते हैं वे मर जाते हैं । किसी को केवल एक ही पुत्र या पुत्री जन्म लेकर अगला गर्भ नही पलता ।

 56. परिवार कल्याण तो दिमाग चाट गया । अब सरकार जन्म पर सबसिडी चालू कर दी है । गर्भवती होते ही अनुदान । क्या उत्तम सोच है सरकार की । बुद्धि लगाइए तो इसमें भी लाभ है । इसी लाभ के व्यवसाय में लाभुक जेल गये और बाबू सस्पेण्ड ।

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