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 सकारात्मक विचारधारा को अवश्य अपनाएँ

 ” Prove all hold fast that is good ” or True .

 Father of Homoeopathy

 बहुतेरे शुभेक्षुगण एवं चिकित्सक भी मुझसे पूछने आये कि आपने कोरोना के बचाव के लिए कुछ विचारा है । मेरा उत्तर था कि अबतक कोरोना के संबंध पुष्ट जानकारी नही प्राप्त हुयी है कि उसके मुख्य लक्षण कौन से है । होमियोपैथी लक्षणों पर आधारित चिकित्सा विज्ञान है । इसके अभाव में उसके बचाव और उपचार पर कुछ भी सुझाव सम्भव नहीं ।

 इतना सुन चुका है कि कोरोना का श्वसन संस्थान को ही संक्रमित करता है । सर्दी – जुकाम , छीक , इसके साथ ज्वर सिर दर्द , दम फूलना , खाँसी गले और नाक के छिद्र में टांसिल या पोलिपस बनना , नीचे उतर कर वायुनली , फिर फेफड़े तक कोरोना वाइरस क प्रवेश और रोग का प्रसार नकसीर ( नाक ) से रक्त स्राव , सूजन , श्लैष्मिक मिली का प्रदाह वायुनली का संकोचन से फेफड़ा में पर्याप्त ऑक्सीजन न पहुँच पाने से जीवन पर खतरा वायुनलियों में श्लेष्मा का जमना , नली अवरुद्ध होना , श्लैष्मिक झिल्ली के बर्वाद होने पर रक्त की कोशिकाओं से रक्त स्त्राव होकर रक्त के छक्के से श्वास – प्रश्वास क रुकने का खतरा होतो है । रोग का प्रसार तेजी से होने के कारण खतर की सम्भावना अधिक और घातक होता है । यह कोरोना संक्रमित रोगियों के साथ रहने से उसकी छींक , खखार की बूंदें , उच्छवास की हवा , संस्पर्श और हाथ नाक का बार – बार संसपर्श रोग के प्रसार मे तेजी लाता है । महामारी विशेषज्ञों के अनुसार जितनी सावधानियाँ निर्देशित होती है उनमें आइसोलेशन , डिस्टेसिंग और सम्पर्क से दूरी बनाये रखने से बचाव सम्भव है । किन्तु सभा , समारोह , जन समुदाय का जमाव , वाहन में यात्रा , मनोरंजन गृह , हाट , बाजार , कार्यालय विद्यालय का नियमित रहना , अब यहाँ तक कि वायु से भी प्रभावित होने की बात आयी है । पूर्व काल में भी हैजा प्लेग और टी ० वी ० के संक्रमण में अधिक सावधानी की जरुरत पड़ी ।

 यहा तो पूर्व में ही स्वास्थ्य विभाग एवं W.H.O. की सफाई रही कि इसके बचाव और दवा द्वारा इलाज असम्भव है जो दवाएँ चलाई जाती है वह कारगर न होकर हानि भी पहुँचाती है तथापि उसी का प्रयोग प्रचलित है ।

 बचाव प्रक्रिया पर औषधीय सलाह का सब से सही प्रक्रिया जेनियस एपिडेकिमस सुनिश्चित कर ( सही – सही ) लक्षणो की जानकारी हो जाने पर उससे तुलना रखने वाली दवा जो अधिकतर समता रखते है , प्रयोग रुप में प्रथम अवस्था में ही निर्धारित कर अस्पतालों में उसकी सफलता का प्रमाण प्राप्त कर जो दवा उपयुक्त साबित हो उसी का बचाव और चिकित्सा दोनों कार्यों में रोगी की अवस्थानुसार शुरुआत होनी चाहिए । जब तक संक्रमण क्षेत्र में नही पहुँचा हो वैसी स्थिति में स्वस्थ व्यक्तियों में बच्चों और वृद्धों के लिए ( कोरोना में ) एन्टी सोरिक दवा की 200 शक्ति की एक खुराक खिला दी जाय । इस रोग की प्रकृति टयूवर क्युलर होती है तथा श्वांस – संस्थान पर एन्टी टयूबर क्यूलर , एन्टी सिफिलिटिक , एन्टी सायकोरिक एवं त्रिदोश नाशक दवाओं के प्रयोग का क्षेत्र है । चूंकि अबतक की अपुष्ट मान्यता में ही कोरोना -19 को चमगादर चिड़िया होने से और मानव जाति को संक्रमित करने से दूध पिलाने वाली जाती का होस्ट ( फेषिता ) पर विचारने से वैसिलिनम , एविटारी तथा सल्फर आयोड का प्रयोग बचाव के लिए उचित होगा । अगर सक्रमण से बचाव चाहने वाला व्यक्ति दमा , या दाद जैसे दोष से युक्त हो तो वैसिलिनम टी ० वी ० का इतिहास या प्रभाव हो तो सल्फर नही सल्फर आयोड दिया जाय , सामान्य तथा एवियारि दिया जाय । संक्रमण प्रभावी क्षेत्रों में जेन्यिस एपिडेमिकस दवा ही प्रयोग मे लायी जाय ।

 चिकित्सा सूत्र के रुप में इसके पहले का सुझाव जो प्रकाशित हो चुका है उसका निर्देश करें । रोग परिवर्तित स्वरुप में प्रकट हो तो उसकी भी दवा उपलब्ध है जो रोगी संक्रमण में ( + ) ve पाये गये । चिकित्सा में ( – ) ve होकर बाहर आये पुनः वे ब्लैक फगस जैसे सिक्वेंस झेल रहे है । उनकी आँखों मे काले दाग पड़ रहे जिसका उन्होंने आपरेशन अनिवार्य बताया है अन्यथा मरने का खतरा निश्चित है । यह पूर्व घोषणा के सत्य को साबित करता है कि जो दवाएँ कोरोना के इलाज में चालू है वह हानि कर प्रभाव लाने वाला है । तब ऐसी परिस्थिति हम कोरोना का क्रमिक प्रत्यावर्तन माने या प्रयुक्त दवा का दुष्प्रभाव । ऐसे प्रश्नों पर होमियोपैथी के प्रवर्तक डा ० हैनिमैन महोदय ने स्पष्ट निदान दर्शाया है ।

 एक Opthalmologist ( एलोपैथ ) की लिखी पुस्तक Essentials of The Eyes में होमियोपैथिक दवा का भी Eye surgeon ने प्रयोग किया है तथा उसकी प्रसंशा की है । बतलाया है कि सिनसाइटिश में जब पोलिपॉएड से विकार बाहर आने में रुकावट होने से वह लक्रिमलडक्ट के द्वारा अश्रुग्रथि के मार्ग से आख के तन्तुओं को बुरी तरह प्रभावित कर काला ( गैंग्रीनस ) बनकर प्राण धातक हो जाता है । ऐसा कहा जाता है कि ऐसे रोगी ज्यादातर मधुमेह से प्रभावित या मधुमेह रोगी की सन्ताने होती है कोरोना से निकलने वाले मधुमेह के रोगियों को होमियोपैथिक दवा खिला कर ब्लैक फंगस से बचाया जा सकता है ।

 कोरोना काल में कोरोना के परवर्ती क्रम मे होने वाले आक्रमण भी विवाद के घेरे में आ सकते है इनकी अनवरतता जो सम्भावित बतलाया जा सकता है , उनकी दवा ( होमियोपैथिक ) खिलाकर रोकी जा सकती है इस पर कार्यक्रम को विस्तार से विचारा और चलाया जा सकता है ।

 डा ० जी ० भक्त

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