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सदाशयता में अतिशयता का संदेश
 डा ० जी ० भक्त

 5 वीं जुलाई 2020 ई ० मेरी जन्म तिथि रेकर्डेड है । भारत के इतिहास में यह तिथि 1943 की 5 जुलाई नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा आजाद हिन्द फौज की स्थापना के लिए जानी जाती है । यह तिथि वर्तमान वैश्विक संकट के साथ विश्व में फैल रही साम्राज्य वादी महत्त्वाकांक्षा के छिनौने परिदृश्य में राष्टों के ध्रुवीकरण की उठती आवाज प्रासंगित प्रतीत हो रही है ।
आज दृश्य अव्य मिडिया के माध्यम से प्राप्त खबरों से अवगत होकर जिस घटना चक्र का आभास हो रहा है इस विश्व में फैली कोरोना कालीन विभीषिका की पराकाष्ठा के बीच उभरना मानवता पर घोर आधात है । बड़े एवं शक्तिशाली राष्ट्रों के टकड़ाव का तय संकट जोर पकड़ रहा जब विश्व की जनता को कोरोना के कष्टों के निवारण में सहयोग करना आवश्यक था । प्राण रक्षा की घड़ी में विश्व युद्ध का आह्वान रक्तदान की जगह रक्तपात का परिदृश्य पैदा कर रहा है ।
जब दुनियाँ एक दिन दो – दो विश्व युद्ध का नजारा देख दहसत से दहल गयी । दुसह वेदना से संवेदित राष्ट्रों की दूरगामी सोच ने विश्व शान्ति और सुरक्षा के विधान सोच कर संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद का जन्म दिया । पचशील की नीति बनी । उन्हीं अग्रणी राष्ट्रों और संस्थाओं के बीच जो तनाव आज जारी है और संकट सम्भावित है वह आज क्या संदेश दे रहा । हम ने क्या सीख ग्रहण की । आज भारत और पाकिस्तान तथा चीन और भारत के बीच वार्ताओं , विवादों , विश्वासों और कारनामों के प्रदर्शन हो रहे उसका असर वैश्विक सम्बन्धों , हितों और शान्ति के प्रयत्नों पर कैसा पडेगा ?
जहाँ तक वैश्विक नेतृत्व के साथ , अमन , व्यापार , विकास , शिक्षा , तकनीक , उद्योग , पर्यटन शान्ति और सुरक्षा , सैन्य सन्तुलन , मानवधिकार तथा आतंकवाद पर नियंत्रण के साथ अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के निवटारे का प्रश्न एक मानवीय विषय बनकर उतरना चाहिए . वहाँ पारस्परिक या आन्तरिक सामन्जस्य का टूटना कभी विश्व को एक धरातल पर संतुलित नही पा सकता फिर वह बिखरते परिवार की तरह एक वृहत्तर संकट का बीज वपन ही मानना उचित होगा जो कदाचित मान्य नही हो सकता । हम मानव हैं और मानव के अस्तित्व से खेल रहे , यह मानवता का कैसा पक्ष हैं ? उचित है कि हम अपने को दूसरे के हृदय में स्थान पाने और अन्य को अपने हृदय में बसाने का कार्य करें । ऐसा व्याग से सम्भव होगा , स्वार्थ से नहीं ।
स्वार्थी महत्वाकांक्षा भले ही हिटलर बनादे , किन्तु जनमंगल की भावना ही बुद्ध बनाती हैं ।
” अथ बुद्धं शरणं गच्छामि । “

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