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 स्वास्थ्य और परिवार कल्याण का निहितार्थ

 सृष्टि में मानव जाति का स्थान हर प्रकार से महत्त्वपूर्ण है । जैव जीवन में इसकी भूमिका का सबसे बड़ा कारण इसकी विकसित चेतना , वाणी , भाषा और कौशल है । इसके ही श्रेय से मानव सभ्यता और संस्कृति विकसित हुयी । नारी – पुरुष का साथ जीवन के उत्कर्ष में प्रजनन मात्र ही नही , पारिवारिक जीवन को आदर्श रुप में खड़ा करन से लेकर शिक्षण , सेवा , प्रेम और सद्भाव का समुद्गम स्थल साबित हुआ , मातृ रुपा नारी के बहुविधि अनेक स्वरुप निखरे । हास , रुदन एवं स्नेह का स्पन्दन मानवता के साथ कलात्मकता और जीवन्तता का प्रवाह इसे सदा सींचता रहा । माँ , जिसके आँचल के नीचे मानवता पलती है तथा जिसकी गोद में सभ्यताएँ खेलती है , सदा समादर पाती रही है , देवी के रुप में पूज्य है । जननी और जन्म भूमि तो स्वर्ग से भी ऊची गरिमा पायी । …. किन्तु आज मानव जीवन का चक्र बदल रहा । इस बदलाव के आलोक में हमारी मान्यताएँ विखर रही है जो मानवता पर एक प्रकार से आधात भी है , जबकि सैद्धान्तिक , आर्थिक एवं सांवैधानिक रुप से सशक्तिकरण के पथ पर है । यहाँ पर एक सांवेदनिक सोंच की आवश्यकता प्रतीत हो रही है ।

 ऐसी समस्यायें जीवन के हर कदम पर रोड़े अटका रही है । अनैतिक व्यवहार और व्यापार अपराध का रुप ले रहा है । इससे हमारी संस्कृति ही रुग्न होती जा रही और सचमुच मानव , मानवता और मानवीय परिदृश्य को अस्वस्थ स्वरुप दे रहा है । अपौष्टिक खाद्य , अनीति पूर्ण विचार एवं गुणवत्ता रहित शिक्षा हमारे कर्म को खोखला बना सकता है । यही कारण है कि विशिष्ट व्यवस्था भी निकृष्ट परिदृश्य उत्पन्न करती है , आखिर नियत , नीति और नियंत्रण का खोटापन शुचिता आने नही देती । प्रेम की जगह विभेद ही पनपेगा तो न्याय , निदान और समाधान की सम्भावना जाती रहेगी ।

 भारत जब स्वतंत्र हुआ था , उस समय इसकी आवादी 33 करोड़ ही थी संयुक्त भारत की । 1962 ई ० में विभाजित भारत की आवादी 44 करोड़ थी , तब जनसंख्या नियंत्रण की बात उठी थी । नाम पड़ा था जन्म निरोध ( Birth Control ) | यह मात्र सिद्धान्त बनकर रह गया । सन् 1966 में यह परिवार नियोजन कहलाया । नियोजन का निहितार्थ जानिये तो भला , क्या अबतक नियोजित परिवार का स्वरुप सामने आ पाया ? यहाँ तक कि उसे सफल कार्य रुप देने में विफल सरकार ने गर्भस्त्रांव को कानूनी दायरा में लाकर सहयोगी विधान किया गया । तब नामकरण हुआ परिवार कल्याण । नियोजन से सुन्दर रहा कल्याण शब्द जो हमें आज डेढ़ अरब क समीप पहुचा दिया , तब हम जनसंख्या नीति पर एक ओर शख्त होने जा रहे तो दूसरी और लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कम हात जाने को लेकर नारी भ्रण को समाप्त करने को गैर कानूनी जामा भी पहनाया गया और लड़कियों के प्रजन पर अनुदान और पुरस्कार भी ।

  परिवार नियोजन का निहितार्थ था देश की पूरी आवादी क रोजगार का अवसर क साथ आर्थिक विकास का लक्ष्य पूरा करना । अब परिवार कल्याण पर हम विचारें । परिवार का स्वरुप परिभाषित किया जाना पहली नीति होनी चाहिए । विषय आया छोटा परिवार सुखी परिवार । छोटा परिवार के स्वरुप पर विचार आया – ” दो या तीन बच्चे , सबसे अच्छे ” । फिर आया- ” लड़का हो या लड़की दो हीं । ” वैचारिक प्रगति तो हम पाये , लेकिन स्वरुप ? होना यह चाहिए कि ” हम दो , हमारे दो ” की स्वस्थता और दीर्घ जीवन की प्रत्याशा को पंख लगे । शिक्षा और कौशल , आचरण और व्यवहार , पेशा और अवसर का वातावरण भी प्राप्त हो । इस तरह हमारी अवधारणा के दोनों ही आयाम परिवार नियोजन और परिवार कल्याण का लक्ष्य पूरा हो पाये । ज्ञातव्य है कि तात्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी महोदया ने मेरे विचार को ” परिवार नियोजन पर नई दृष्टि ” बतालाते हुए सराहना का पत्र दी थी , किन्तु भावना की भीख तो दश की न मिटी और आज हम चल जनसंख्या नीति पर सोचने ! एक सतक और तो पूरा होने दीजिए . तब तक तीन अरब पर ही सबक सीखें । परिवार कल्याण लक्ष्य का निहितार्थ यह होना चाहिए कि हर इकाई परिवार की गोद में:-

 ( 1 ) एक बच्चा और एक बच्ची हो ।

 ( 2 ) किसी के परिवार में केवल लड़कियाँ जीवित रहे , लड़के जन्म लेकर मृत्यु पाये अथवा जन्म ही न ले , ऐसा न हो ।

 ( 3 ) किसी को अगर एक ही संतान हो तो वही दीघायु हो ।

 ( 4 ) कोई विकलांग न हो ।

 ( 5 ) कोई अल्पायु न हो । कोई निःसंतान महिला विधवा न हो ।

 ( 6 ) कोई निःसंतान न हो ।

 चूँकि विभाग का नामकरण दिया गया है स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय , तो मंत्रीजी विचारें कि उनकी विभागीय शब्दावलि में इस नामकरण का निहितार्थ क्या है और कब यह पूरा होगा ।

 आज विश्व की सरकारों के समक्ष कोरोना एक गम्भीर समस्या बनकर खड़ी है । विभाग मूक बना है , सरकार योद्धा बनी फुत्कार रही है लेकिन गरल निष्प्रभावी निकला । शब्दालंकार में अर्थवत्ता के साथ गुणवत्ता एवं उपलब्धता का मानदंड खड़ा उतरे , तब जनतंत्र मजबूत होगी । यह विचारणीय नहीं कि अपार धन हो , किन्तु आवादी उतनी कम हो कि धनवानों की थाली में भोजनोपरानत थाली खाली न हो पाये । और यह भी नही कि शोषण स धन जमा हो । हमारे चिन्तन का लक्ष्य व्यापक होना चाहिए , सकीर्ण नहीं ।

 आदिकाल में मनीषियों के चिंतन में उस युग में कितनो व्यापक शक्ति एवं व्यापक शब्द उनके मानस में उदित हुआ ” ब्रह्मचर्य पालन ” । उसका अक्षरसः अथ होता है सृष्टि को बचाना । इसी में सन्निहित है हमारे परिवार कल्याण का निहितार्थ ।

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