अस्मिता की आग में जलने वाले को जल की बूदों की तरस
बात 2011 की है दिल्ली के खेल गाँव स्थित सिटी फोर्ट स्टेडियम में अन्तर्राष्ट्रीय होमियोपैथिक मेडिकल महासम्मेलन में ” होमियोपैथी इन वेटेरीनरी मेडिसीन ” पर वैज्ञानिक विमर्श चल रहा है । वहाँ पर विश्व स्तर के शीर्षस्य वेटरीनरी पदाधिकारी उपस्थित थे । उस समेलन सत्र में मैं भी भाग ले रहा था । होमियोपैथिक दवाओं की प्रशंसा करते हुए उन्होंने एक बड़े महत्त्व की बात कही । डा ० खरे महोदय ने अपनी अदम्य भावना को व्यक्त करते हुए कहा कि होमियोपैथी को पशु चिकित्सा के क्षेत्र में व्यापक स्थान मिले , इसके लिए डिग्री स्तरीय कॉलेज खोलना जरुरी है क्योंकि एलोपैथिक दवाओं से हम सभी एलोपैथिक पशु चिकित्सक लाभ उठाते और आरोग्य दिलाते है जबकि उनकी अपनी दवाएँ न उतनी कारगर है न निरापद ही ।
इतना ही नहीं हम चिकित्सा पद्धति को अलग – अलग नाम और स्वरुप में परिभाषित करते है , तथा एक दूसरे के क्षेत्र में दखल देने में बाध्यता मानते रहे है । विधान भी नहीं है फिर भी उनमें से होमियोपैथ को एलोपैथिक दवा चलाने या पशु रोग में होमियोपैथिक दवा के प्रयोग की भी मान्यता नहीं है फिर भी एलोपैथ उसे चलाते और उसकी प्रशंसा कर जन – कल्याण कर रहे हैं । इससे होमियोपैथी को आगे बढ़ने का मार्ग खुल रहा है ।
मैं अपने प्रैक्टिस मे मानव और पशु दोनों क्षेत्र में होमियोपैथी का प्रयोग करता रहा हूँ । मैंने सर्वप्रथम होमियोपैथी की पशु चिकित्सा के क्षेत्र में मान्यता दिलाने और पशु चिकित्सा की पढ़ाई चालू करने का प्रयास 1976 से करता रहा और सेन्ट्रल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा इसकी प्रामाणिकता के प्रमाण मिलने पर मुझे 2013 में सेन्ट्रल काउन्सिल ऑफ होमियोपैथी नई दिल्ली द्वारा डिग्री स्तर की होमियोपैथिक चिकित्सा के पाठ्यक्रम चालू करने संबंधी मान्यता मिल गयी । इस कार्यन्वित करने हेतु CCH ने VCI नई दिल्ली को इसकी जानकारी दे दी है ।
इस सन्दर्भ को साझा करते हुए मेरा आग्रह है कि पूरे विश्व को खुले मन से होमियोपैथी द्वारा कोरोना की चिकित्सा के लिए अवसर दिया जाय ताकि आयुष का एक सशक्त घटक के रुप में आरोग्यकारी एवं निरापद चिकित्सा पद्धति के रुप में भारत सरकार ने मान्यता दे रखी है । विशेषकर भारत सरकार के आयुष मंत्रालय को तो आगे बढ़कर अपनी ओर से मदद करनी चाहिए ।