आँसू
संवेदनाओं की झोली में एक अनुत्तरित प्रश्न-3
आँसू एक परिचयात्मक पाणि – पल्लव
हम आँसू के मनोविज्ञान पर एक चिन्तन कर रहे है । उससे एक विचार धारा को बल मिलेगा वह विचार धारा होगी स्वस्थ और सुखद जीवन का वातावरण तैयार किये जाने की । वैसे ही हम क्रोध , लोभ , मोह , मत्सर , हिंसक आयाम या वृत्ति , वासना , सौहार्द भाव निर्भीकता , धीरता आदि की अवस्था का मनोविज्ञान या मनोदशा में शारीरिक मानसिक गतिविधियों मुखाकृति आदि के प्रत्यक्षीकरण से अवगत होने का प्रामाणिक आधार निरूपित कर सकेंगे । शकुन , घटना आदि का ज्ञान , भविष्यवाणी , किसी के मनोभाव को परखना वैसे ही विषय है जिनका अपना मनोविज्ञान है या शारीरिक लक्षण । प्रश्न कर्ता के इर्द – गिर्द का दृश्य , घटना , उसकी दिशा , उसकी शुभता , अशुभता , दूरी – निकटता आदि के आधार पर शगुन किया जाता है । सगुन शास्त्र , रमल शास्त्र या टेलिपैथी जो कहा जाय , अलग – अलग काल खण्डों में ये विधाये विकास पायी तथा प्रचलन में आये , आज भी उनका प्रचलन है ही । ऐसी लोक मान्यता है ।
अगर इनकी सत्यता के प्रमाण है तो समाज को उसका लाभ अवश्य मिलता होगा । ऐसी सम्भावनाओं की पृष्टभूमि में विचारे तो स्वप्न , आशीर्वाद , अभिशाप टोना – जादू जैसा वाम मार्गी विधाओं , ( षट्कर्म ) शान्ति करण , मारण , मोहन वशीकरण , विद्वेषण एवं उच्चाटनादि में भी विश्वास करने वाले लोग है । उनका भी प्रचलन है इनमें भावनाओं को दिशा देना एवं उसके लिए त्रिगुणात्मक काया के विशिष्ट भावोन्मेष को आरोपित कर तत्तत प्रभाव उत्पन्न करने में पदार्थ के गुणों को ही आधार रुप में स्वीकारा जाता है । अगर उन भावों की वैज्ञानिकता स्वीकारी जाय तो उसके परिणाम मान्य हो सकते है । ऐसी मान्यता वालों का आज भी कुछ प्रतिशत है ही । ऐसा भी कहा जा सकता है कि आयुर्वेद के क्षेत्र में प्रयुक्त बहुतेरे पदार्थ है जिन्हें धारण करना वैसा ही महत्त्व रखते हैं जैसा रत्न धारण करना ।
समाज के समक्ष आपतित घटनाएँ तो घटती ही है । उनका सीधा अर्थ होता है । जैसे वातावरण में गर्मी आना , हवा का बंद होना , आकाश में बादल दिखना , आकाश लाल होना । कभी पूर्वा हवा बहना तो कभी पछुआ , सुबह में कुहासा छाना । प्रातः काल सूर्योदय बादल से छिपा होना । शाम को गोधूलि में आकाश लाल दिखाई पड़ना कभी विशेष अर्थ रखते है उनसे भावी घटनाओं की सम्भावना सूचित होती है । लगातार दो या तीन दिनों तक अचानक गर्मी का प्रकोप दिखे तो नजदीक में वर्षा का होना अनुमान किया जाता है ।
रात निबदर दिन में छाया ,
कहे घाघ कि वर्षा गया ।
मौसम का सही आकलन करने वाले भारतीय मौसम के प्रखर पारखी पंडित घाघ दास का कहना कि रात्रि में आकाश से बादल गायब रहे और दिन में छाया रहे तो वर्षा की सम्भावना नहीं बनती ।
पूर्व का मेघ पश्चिम को चले ।
पनघट पर रमनी हँस कर बतकही करे ।।
यह बरसे सोचेगभिसार ।
घाघक मन यह करै विचार ।।
जब प्रातः काल महिलाये पनघट पर हँस – हँस कर बातें करे तो उसका भाव पति के संबंध में मिलने का भाव जाहिर होता है तथा बादल के बरसने की उम्मीद की जाती है ऐसा घाघ दास के मन में विचार उठता है । प्रकृति और पुरुष सृष्टि के विधान है तो उनके अन्दर घटने वाली घटनाओं में उनके वैज्ञानिक तथ्य प्रकट होते है । आदि काल से मानव की चेतना प्रकृति के भाव को परखती और मौसम में घटती घटनाओं का साम्य स्थापित करती हुई एक सापेक्ष सत्यता का निरुपन कर वैज्ञानिक सत्यता स्थापित करती रही है । उसका ज्ञान विश्व के लिए मौसम विज्ञान बना ।
भादों महीना में जिन दिनों पछिया हवा बहती है उस दिन की तिथि को माघ में पाला ( तुषार ) गिरता है । ऐसा अनुमान कर पान की खेती करने वाले उस दिन पान की बाड़ी में पाला से बचाव के लिए गोइठा जलाकर वाडी के वातावरण को गर्म बना पाला से रक्षा करते है । आँधी आने के पूर्व वातावरण बिल्कुल शान्त हो जाया करता है ऐसा अनुमान कर किसान सावधान हो जाते है । मौसम का मिजाज समझना भी एक विज्ञान का विषय है । वातावरण की आर्द्रता दिन का तापमान हवा के दवाव और उसकी दिशा से वर्षा का अनुमान , क्षेत्र विशेष में वर्षा होने की सूचना देते है । प्रतिदिन का मौसम समाचार इसी से प्रसारित पूर्वानुमान है ।
ज्योतिष शास्त्र में हस्त रेखा और भू – तनाव यानी भौ के पास की मांसपेशी के तनाव से बनी रेखा को परख कर जीवन में घटित होने वाली घटना , उसकी मनोदशा और उसकी स्थिति का आकलन किया जाता है , ब्रहमाण्डीय पिंड ( ग्रह , नक्षत्रों की गति और स्थिति के आकलन से मानव जीवन सहित दैनिक और वार्षिक घटनाओं के घटने का अनुमान प्रमाणित रुप से दर्शाया जाता है जो अक्षरसः सत्य उतरता है । भविष्य वत्तग काल गति को सापेक्ष घटती घटनाओं के हिसाब से सामाजिक जीवन पड़ते प्रभाव को कालान्तर में प्रकारान्तर से सम्भावित परिदृश्य का अनुमान करते है । ये सारे विषय जो आज की घटनाएँ हैं । वे भविष्य के लिए मार्गदर्शक तो है ही , जीवन के लिए सुरक्षा के साथ ध्यान देने और तदनुकूल जीवन जीने का निर्देश भी देती है ।
मैंने तो आँसू पर अपना चिन्तन केन्द्रित कर लेखनी उठायी थी किन्तु चिंतन के क्रम में उसकी तुलनात्मक व्याख्या प्रस्तत कर अन्य विषय विधानों के साथ – साथ समझाकर कथित तथ्य की पुष्टि के लिए आवश्यक समझा और पाठकों के लिए उपयुक्त भी । मैं पुनः अपने पूर्व निर्दिष्ट विषय पर उतरना चाहता हूँ जो शेष और विशेष ध्यानाकर्षना की अपेक्षा रखते हैं ।
आँसू के मनोविज्ञान अवधान निरंतर चलता ही रहेगा क्योंकि सृष्टि में कर्म ही प्राण है और जीवन की पहचान भी । जीवन रुपी सरिता के सुख और दुःख दो ही किनारे है , दुख में सुख की आकांक्षा और सुखों के भोग से उपजे प्रभाव के उत्कर्ष – अपकर्ष का जीवन से जुड़ाव क्रमिक अनुभव का स्रोत बनता है जो वैयक्तिक जीवन की पृथक गति प्रदान करता है । अतः सुख – दुख का भाव सामाजिक न होकर वैयक्तिक ही मान्य है और उसका प्रत्यक्षीकरण व्यक्तिगत आधार ही ले पाता है उसका कारण मानव की व्यक्तिगत सामाजिक , आर्थिक और बौद्धिक पहचान है , यही उसकी विविधता सिद्ध करती है । उसी हेतु यह जटिल प्रक्रिया है और जटिल स्वरुप है । इसकी गहरी जड़ है । सुलझाना कठिन । उसका व्यक्तिकरण कर पाना ही सम्भावित उत्तर बन पाता है जो काल्पनिकता अनुमानित है । सत्यता उससे कही अधिक गहराई में छिपी होती है , जिसके अवगाहन में विश्व के लेखक कवि एवं विचारक लगे हुए हैं ।
आँसू की भौतिक सत्ता है । उत्तर वाणी में प्रकट होता है जिसे हम कान से सुनते , मन में विचारते , हृदय से जोड़ते और चित्त मंडल में स्थान देते हैं । आँसू दृश्य है किन्तु मुखर नहीं । देखती है आँख किन्तु क्या देखी , कैसा अनुभव की , उसका आख्यान आँख तो नहीं करती । वह अगर कर पाती हैं , तो उसकी वाणी पुनः आँसू के रुप प्रवाहित होगी जो अनवरत दर्शकों को मर्माहत करती रहेगी । हम उत्तर के आकांक्षी प्रत्याशा में भी निराशा ही पाते रहेंगे । उत्तर कभी निजी प्रक्रियान होकर परावर्ती होगी । सब्जेक्टिव नहीं , सदा औब्जेक्टिव । पैसिव । उसी लिए यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा । उसी लिए यह अनवरत या अनन्त प्रक्रिया है ।
साहित्य वर्तमान का प्रतीक है और इतिहास भूत का आँसू का । इतिहास भी अनादि है । सत्ययुग में भी शैव्या की आँख से आँसू छलक पड़े । राजा हरिश्चन्द भी अपनी आँखों में आँसू दवाये शैव्या से श्मसान के कर की याचना करते रहे । प्रण पालन एवं सत्य के संरक्षण में आँसू प्रकट न हो पाये किन्तु उस दृश्य को देखकर देव लोग झुककर खड़े हुए । वहाँ पर नारी के आँसू देवताओं के सिर झुका डाले । यह रही शक्ति आँसू की ।
त्रेता मे सीता के कौमार्य और राजकुमार अवध किशोर के दर्शन से उदित प्रेमाश्रु जब गिरिजा पूजन में प्रकट हुयी तो गिरिजा भवानी का सिर झुक गया सीता के विनय भाव से । सीता जो माला अपने आराध्य के गले में डाल रही थी वह गिरीराज किशोरी के गले में ठहर न पायी ।
पुनः अपहत सीता लंका की अशोक वाटिका में जब राम के विभोग में अश्रु की धारा रोक न पायी तो राम को लंका पहुँचना ही पड़ा और उस विरहाग्नि के उताप रुपी दहकते सैन्य शौर्य में लंका , लंकेश और राक्षस राख बन गये ।
द्वापर में द्रौपदी के नेत्र के अविरल अश्रु प्रवाह का प्रभंजन भार वासुदेव कृष्ण को लेना पड़ा । उस आँसू को दुःशासन के रक्त से कुरुक्षेत्र में धोया गया । …… तथापि …… … तथापि भारत माता के आँसू जो चोल , चालुक्य , शक , हूण गुलाम , तुगलक , मुगल , गजनी आदि के रक्त की प्यासी बनी , जो सिकन्दर सहित ब्रिटिश सत्ता को नाकों दम कर दी …… उस भारत माता के आँसू आज भी प्रवाहित हैं । क्यों ? ……. इसलिए कि पूज्य बापू के प्राण हनन भारतवासी के हाथों … जिसके लिए उन्होंने सत्य और अहिंसा जैसे शस्त्र से आजादी ली थी ये आँसू आज भारत के गरीब देश वासियों में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । वे भारत से ही आशा कर रहे कि वे ही उनके आँसू कभी पोछ पायेंगे । भारत वासियों को जो कभी भारत की भूमि पर प्रेम की गंगा बहाए और रक्त रंजित भूमि को भागीरथी का शीतल संस्पर्श मिला वह गंगा भी आज प्रदूषित हो चुकी । सम्पूर्ण विश्व की आँख आज नम क्यों है । इस हेतु कि उस धरती पर आतंक है । कौन है वह आतंकी ? यही तो प्रश्न है जो अब तक अनुतरित रहा । आज उसका उत्तर ढूढा जा रहा है ।