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आँसू

संवेदनाओं की झोली में एक अनुत्तरित प्रश्न-2
  आँसू एक परिचयात्मक पाणि – पल्लव
 

आँसू संवेदनाओं की झोली में एक अनुत्तरित प्रश्न   आँसू एक परिचयात्मक पाणि - पल्लव An unanswered question in the bag of tears   Tears an introductory feast - Pallav आँसू लेखक डा० जी० भक्त Author Dr. G. Bhakta book
 अन्य कष्टकारक या असाध्य रोगों के भिर स्थायी प्रभाव पर गहरे चिन्तन से भावुक होकर आँसू का प्रवाह , असाध्यता पर विचारते हुए तथा मृत्यु का भय उन्हें चिन्तातुर कर डालते है तो आँसू की धारा के साथ रुदन और याणी का कुठित होना पाया जाता है ।
 कतिपय ऐसे अवसर आते हैं जब औंसू छद्म व्यापार के साधन बनकर प्रकट होते हैं । कोई अपने दोष , भूल या चोरी की घटना छिपाने हेतु पहले से माझी के स्वर के साथ अश्र पूर्ण नेत्र से अपना अनुकूल प्रस्तुत करता है उसमें भय का भाव होता है । ज्यादातर ऐसी बात बच्चों में देखी जाती है । ऐसी ही बात महिलाओं में समान घटना के साथ कसम खाने के साथ आँसू दिखते हैं ।
 उपरोक्त साठ ( 60 ) सूभावली में संदर्शित भावों में से कुछ के स्पष्टीकरण इस प्रकार है : – जहाँ आँसू मिलन का साकेतिक अभिनन्दन वही वियोग की मर्मान्तक व्यथा के संकेत भी ।
 हम कभी सांसारिकता में घिरे अपने को व्यस्त पाते हैं उसी क्रम में किसी चिन्तन पर एकाएक भावुक हो उठते और आँखा नम होकर रोमांचित करती है और हम आनंद से भर उठते हैं । हम इसे आत्माभिव्यक्ति कहते है । इसे हम एक दिव्य चेतना की सहज अभिव्यक्ति मानते है ऐसा चिन्तन की सतोगुणी अवस्था में ही होता है । वहाँ हमारा कर्मविन्यास से एकात्म भाव स्थापित होना ही उसकी पृष्टभूमि बनती है ।
 कभी हमारी दवी हुयी संवेदना जो गौण रुप मे हृदय स्थली में सुसुप्त पड़ी रहती है , अक्स्मात उसकी स्मृति या परिवेश में कोई समतुल्य घटना के प्रकरीकारण पर अक्स्मात दृष्टिपटल पर आँसू का प्रकट होना एक वैकल्पिक विषय बनता है ।
 कभी हम भावनाओं के अतिरेक से होकर गुजरते हुए जब गम्भीर होते है तो उस भावुकता के तीव्र आयाम में गर्म औंसू का प्रवाह हमें उद्विग्न कर देता है । कभी संवेदनाओं की चपेट को वरवस आँसुओं की गूंट पीकर कुंठित कर डालते है तो उसकी स्मृति विविध कल्पनाओं में विभोर होकर उत्तेजित दशा में कराह पड़ते हैं जिससे अश्रु प्रवाह फूट पड़ते हैं ऐसी दशा एकाकीपन में घटित होती है । ये कराह मनोव्यथा के प्रतीक होते हैं ।
 अब अतीत में खोई अनुभूतियाँ जिसे हम भुला चुके होते हैं वह किसी की मर्म कथा के सुनने अथवा गीत की ध्वनि उन्हें पटल पर पाती है तो उसकी याद असहनीय हो जाती है उसका प्रकटीकरण औंसू ही करा पाते हैं ।
 आँसू हमारे मन की सुखद और दुखद दोनों ही प्रकार की संवेदनाओं को प्रकाशित करते हैं किन्तु उस मनोविज्ञान के उत्सादन में हमारे चेहरे की पेशियों के तनाव और उनके प्रतिफल भी उनके साथ प्रकट होते है । चेहरे का खिलना सुखानुभूति को दर्शाते हैं तो तनाव भरी मंद आभा में संकुचित पेशियों छिपी व्यथा को व्यक्त करते हैं ।
 यहाँ भूल वश ( 12-13 ) समानार्थक भाव की अभिव्यजना है । रुदन के साथ अश्रु का स्राव भावों को उदात्त और प्रतीयमान बनाते है । ऐसा गीत और संगीत के स्वरों के नाद और उत्साद ( आवाज के ढलान और उत्थान के साथ ) भावुकता का उन्मेष दर्शाते हैं ।
 हम पर आपतित आधात या प्रताड़ना के स्वर जब मर्मान्तक दशा लाते है तो कदाचित हम प्रतिकार न करते . तो आँसू छलकर भी नयन कोर तक ही आकर अवरुद्ध हो जाते है । जैसे हम अपने द्वारा प्रतिकार किये जाने को हिंसा समझकर स्वतः रोक लेते हैं जो हमारी दूरदर्शिता का मनोविज्ञान सिद्ध होता है ।
 नारियों के अनेकों मनोवैज्ञानिक आयाम देखने को मिलते है जिन्हें वाणी प्रकट न कर पाती । उन मनोभव आयाम की प्रतिच्छाया उनके मूक एवं निरुद्ध पेशीगत तनाव के साथ आँसुओं के प्रवाह को आँचल , अंगुलियों या तलहथी से पोछती हुयी परिभासित करती है जो सामने वाले को ममार्हत कर डालती है । ऐसे भावों का प्रत्यक्षीकरण रविन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं में हम अनुभव करते है । उनकी लिखित अंग्रेजी की लघु कथा “ दि पोस्टमास्टर की नायिका कुमारी किशोरा ” रतन ” का पोष्टमास्टर की अचानक स्थानान्तरण पर विदाई का स्तब्ध खड़ा देखते रह जाना कुछ न कहते हुए बहुत कुछ कह गया । पोस्ट मास्टर की नैया तबतक दूर तक जाती नजर आती ।
 ( कितना मर्मात्मक दृश्य उपस्थित कर गया )
 रविबाबू के ही शब्दों में :-
 Unscrutables are the ways of womens heart , अव्यक्त भावनाओं में महिलाओं के हृदय की स्थिति बहुत कुछ बतलाती है ।
 सृष्टि का विस्तार आया है । स्वरूप विराट है । भावनाओं का सागर है । चिन्तन आकाश छूता है । कर्म असंख्य है । ज्ञानानुभूतियाँ अनन्त है । प्रतिमान भी उनका आख्यान अचिन्त्य है । विज्ञान सीमित है । उसके प्रकाशक लेखक और कवि है । उनके विषय जड़ चेतन सभी हैं । ये उनमें भी प्राण फूंक देते है जो निर्जीव कहे जाते है ,

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