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आज का वैज्ञानिक विकास क्या मानवता को मिटा डालना चाहता है ? चिन्तन में चेतना की गरिमा स्थापित करना हमारे विकास की प्रमुख धारा बने ।

डा ० जी ० भक्त

 आज हम सोचने को बाध्य हो रहे है । विकास के बढ़ते आयाम हमे जो सुख और सुविधाएँ जुटाने में बेहद व्यस्तता की विवसता में बाँधकर स्वस्थता और शान्ति छीन रखी है , हमें दूर तक उसकी झलक नहीं मिल पा रही । जबकि हमें भौतिकवादी विचार धारा ने बहुतेरे वैभव प्रदान किये किन्तु हम रुग्न होते गये । रुग्नता तो आज विश्व पर इस प्रकार छायी कि कोरोना भाग चला कि न , इसके लिए मेडिसीन है न वैक्सिन । यहाँ तक कि पूरा विश्व इस आशा में पूरा वर्ष बीता डाला , कि वैक्सिन आ रहा है जिसके सम्बन्ध एक नयी धारणा काम करने लगी कि इसमें दो वर्ष और प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है , यह एक आतंक सा भाराकान्त एवं भयाक्रान्त कर रखा है । मैं सविश्वास कह रहा हूँ कि होमियोपैथी की दवा इस अवधि में बचाव हेतु ( Prophylactic ) एवं निदान हेतु ( Curative ) रुप में प्रयोग में लायी गयी होती तो आशा के अनुकूल लाभ मिल पाता । इसके कुछ मान्य सिद्धान्त होमियोपैथी में काम करते हैं । यथा :-

 1. भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद काल से प्रचलित है । ये दवायें रस सिद्धान्त पर काम करती है । रोग के तीन मूल कारण सुझाये गये हैं । जिन्हें मूल व्याधि या दोष कफ , पित्त , एवं बात रुप में जाने जाते है । चिकित्सा के दो विधान है कारण विपरीत और व्याधि विपरीत । इसमें विषस्य विषमौषधम् का सिद्धान्त काम करता है जो होमियोपैथी के सिमिलिया सिमिलियस व्योरेन्टर से मिलता – जुलता है ।

 2. होमियोपैथी की मान्यता है कि जो पदार्थ ( ड्रग ) स्वस्थ शरीर को रुग्न बनाये और उसी का प्रयोग रोगी पर किया जाय तो उसे आरोग्य करता है । अर्थात दवा की रोगोत्पादक क्षमता ही उसकी आरोग्यकारी क्षमता होती है ।

 3. एलोपैथी के दो प्रवर्तक हुए – हिप्पोक्रेट ( ईसा से 450 वर्ष पूर्व ) तथा गैलेन ( ईशा से 160 वर्ष पूर्व ) जिनमें आज गैलेनिक पद्धति ही प्रचलित है । इसमें दवा ( ड्रग ) क्रूड फॉर्म में मैसिव डोज में प्रचलन में है जो विपरीत प्रभाव डालती ( एन्टागोविष्टिक ) है । प्राथमिक क्रिया लक्षणों को दवा डालती है । सेकेण्डरी अवस्था में उसकी प्रतिक्रिया जो विपरीत फल देती है पुनः रोग का आक्रमण होता है । क्रूड फॉर्म में दवा होने से शरीर में स्थान पाकर किचित गौण अवस्था में रहकर कालान्तर में दुष्परिणाम पैदा करती है अथवा पूर्व रोग की गौण अवस्था से गुजकर मिश्रित प्रभाव में सामने जटिल रोग बनकर आती है ।

 4. इसके विपरीत होमियोपैथी में औषधीय पदार्थ ( क्रूड ड्रग ) को सूक्ष्म रुप ( परमाणु से भी आगे ) में लाकर उसकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवस्था में शक्तिकृत ( Poteutised ) कर प्रयोग में लायी जाती है जिसमें भौतिक मात्रा का अस्तिव नगण हो जाता है और उसकी इनफिनाहट फोटेंसियल इनर्जी रोगी की कमजोर जीवनी शक्ति को जगाकर रोग शक्ति को दूर हटाने में सक्षम बना पाती है । इसमें दूरत्व प्रभाव या दुष्परिणाम की गुंजाइस ही नही होती । उसमें एक बार एक ही दवा दी जाती है । दवा की मात्रा भी सूक्ष्म होती है । अतः प्रयोग में निरापद है । दवा के शक्तिकृत ( पोरन्टाइज ) होने से जीवनी शक्ति को बल मिलता है । इसके कारण रोग के हटते ही शरीर रोग पूर्व अवस्था में स्वयं लौटकर स्वस्थ पुष्ट और सबल हो पाता है । रोग निवारक क्षमता के विकास पर विचारना जरुरी नहीं ।

 5. संक्रामक रोग के रोक थाम के लिए वैक्सिन के प्रयोग द्वारा एण्टी वॉडी तैयार करना होमियोपैथी का विधान नहीं है । रोग विष का निदान रोगी के शरीर से प्राप्त रुग्न तन्तु या मल – मूत्र साव आदि से तैयार विषाणु युक्त होमियोपैथिक विधान से बनी शक्तिकृत दया के परीक्षित गुणानुसार उसकी तुलना कर प्रयोग में लाया जाना ही वैकसिन की भूमिका निभाती साथ ही वही आरोग्य भी करती है ।

 इस प्रकार सरल , सुलभ , सुगम , सस्ती निरापद और स्थायी आरोग्य दिलाने का विश्वस्त विधान होमियोपैथी में हैं ।

 अब मैं इस सच्चाई को समाने रखना चाहता हूँ जिस पर मुझे विश्वास है कि यह होमियोपैथिक चिकित्सा प्रणाली जो हर प्रकार से कल्याणकारी सावित है रोग मात्र को ही नहीं मिटा पाती बल्कि जीवन में स्वास्थ्य को संरक्षित करने में भी सफल है जैसा कि हनिमैन के शब्दों में :-

 A Homoeopathic Physician is not only a minute observer but a preserver of health .

आज विश्व के विकसित देश भी इस जंग को जीत न पाये । अपने प्रयासों के परिणाम को घटते – बढ़ते और पुनरा क्रमित होते देख जितनी अनिश्चितता से घबड़ाए हुए हैं । खासकर हमारे अपने देश भारत को ध्यान में लें , जहाँ मृत्यु दर कम पाये गये किन्तु संक्रमण में चोटी को छू पाये तो उनकी चिन्ता भी विचारणीय हैं ।

 ऐसी स्थिति में क्या विश्व की द्वितीय चिकित्सा पद्धति कहलाने वाली विश्व के अधिकांश देशों में अपने पाय जमाने वाली आज अपनी सेवाओं एवं सनावनाओं को पटल पर प्रदर्शित कर पाने में पीछे अगर इस कारण पड़ रही कि उसे आर्थिक सहयोग कौन देगा ? ..तो इस बिन्दु पर भी मैं कुछ विचार रखता हूँ । अगर पूरे भारत में पूरी जनसंख्या को होमियोपैथी की प्रतिषेधक दवा की खुराक दिलायी जाय तो एक परिवार के माता – पिता दो बच्चे सहित उनके दादा – दादी कुल आठ व्यक्ति 5ml की शीशी में बनी दवा की 6 गोलियों एक कप पानी में घोलकर 2 चार चम्मच पानी हर सदस्य को दी जाय तो सप्ताहिक एक बार प्रयोग करने पर तीन माह तक चलेगी । उस दवा की कीमत 30 रु ० लिए जायें तो इतनी कम कीमत में हम इस सेवा से दुनियों का कल्याण कर पायेंगे ।

 अगर हमारे देश के स्वास्थ्य केन्द्रों में नियुक्त होमियोपैथिक चिकित्सक सरकारी स्तर से सेवा दे तो उनके सहयोग से सिर्फ निर्धन परिवारों को ही मदद मिल पाये तो अलग से कुछ सोचने की जरुरत न होगी । अगर दवा कम्पनी कुछ मदद करेगी तो उससे भी सरकार पर बोझ नहीं पड़ेगा । शेष जनता जो 30 रु ० खर्च करने में सक्षम हो यह पास के होमियोपैथिक चिकित्सिक से दवा लेकर या दवा की दुकान से ही 5ml की शीशी में

तैयार दवा खरीदकर समस्या को सफलता पूर्वक जीतने में अपना कीर्तिमान कर दिखायेगी । जबतक हमारी सरकार को स्वास्थ्य विभाग सोचेगा तकतक 25 अक्टूबर से 26 जनवरी तक तीन महीना तक दवा चलाकर देश को कोरोना मुक्त कर पाने में सफल हो सकती है ।

 इसकी चिकित्सा का भी मार्ग प्रशस्त है । हमने यह भी प्रमाण जुटा लिया है कि दवा तो निरापद है ही किसी प्रकार से क्षति देश को न होगी एवं स्वास यंत्र पर उसकी प्रधान क्रिया होने के कारण नोसोड दवा जो रोग बीज नाशक है उन यंत्रों पर उनकी इम्युनिटी बढ़ा देगी । और संक्रमण रुक जायेगा ।

 मैंने अबतक जो अपने साइट ( myxitiz.in ) पर जितने तथ्यपूर्ण मार्गदर्शन सुझाये है उनसे चिकित्सकों सह नागरिकों , होमियोपैथी के प्रति सहानभूति रखने वालों , दवा विक्रेताओं , कॉलेजों , स्वास्थ्य केन्द्रों , समाज सेवी संस्थाओं , परमार्थ सहायता करने वाले सहृदयी जनों को आगे आकर मानवता के रक्षार्थ , सह देश की सेवा का लक्ष्य पूरा करने में सहायक बनना एक बड़ा श्रेय होगा । मैं सरकार सहित उनके स्वास्थ्य विभाग , आयुष उनके waar 19 HMAI , CCH , CCRH , WHO , LMHI ( Liga India & Abroa ) भी उस मार्ग पर आगे बढ़कर सर्वप्रथम अपनी होमियोपैथी की उपयोगिता सिद्ध कर विपत्ति में सहायक बने एवं सेवा से पिछड़ते और बिगड़ते समाज को बचाकर मानव के अस्तित्व की रक्षा में अपनी भूमिका से अमरत्व का संदेश देकर कृतार्थ हों ।

 हमें आशा है कि आप महानुभावों का सहयोग और समर्थन पाकर जनहित में हनिमैन महोदय के संदेशों को अपनी सेवा कार्य से सार्थक बना पायेंगें ।

 Homoeopathy is greal , We have to go ahead . For Health and cure posterity is hours .

 कामयेदुःखतप्तानाप्राणीनामार्तनाश्ये ।
आइए . हम 26 अक्टूबर से इस कार्य में तन – मन से जायें ।

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