इस भौतिक वादी जगत में भी राम और कृष्णा के ही आदर्श ग्राह्य हैं
डा० जी० भक्त
मर्यादा पुरूषोत्तम राम और कर्मयोगी कृष्ण के मानवादर्श को ब्रह्मत्व प्राप्त है। हमारा शस्त्र तो उन्हें ब्रह्म ही स्वीकारता है। जिसके जीवन का हर कदम हर स्पर्श, हर खाँस, हर स्वर मर्यादित हैं, जिनके जीवन में हर कर्म कौतुक, लीला, प्रेम प्रदर्शन और सखा भाव कण-कण और जन-जन का अवलम्बन बनकर छाया, आज स्मरणीय और पूजनीय है। हमारा पथ प्रदर्शन करता है वह भगवान के स्वर में गुंजित है। उनके जीवन के हर पल की कथा हमारे मन की व्यथा और द्विवधा को हर लेती है, वह युगान्तकारी है।
आज हम चाहे विकास की चोटी पर चढ़कर क्यों न घोषणा करें किन्तु रावण के अत्याचार और कंस के कुकृत्य से मचा हाहाकार हृदय को अशान्त कर रहा है। भौतिक वादी उपलब्धियाँ और विकास से दिल से दीनता नही गयी, लूट और शोषण से भी पेट नहीं भर रहा । न्याय व्यवस्था और दण्ड की प्रथा भी समाज को अपराध मुक्त न बना पाया। दिनानु- दशा दिन दया दुगनी होती गयी। शैक्षिक परिवेश में भी न शुचिता है न कर्तव्य बोध ही तो युग धर्म के संस्थापक और पालक शिक्षक और हर प्रकार से परिपूरित शिक्षा का प्रांगण आज अनुपल्ब्ध है। तथाकथित निजी उसे विद्यालयों के गरीब छात्र को अगर शुल्क जमा करने में देर पाये तो उसे विद्यालय में आने से रोका जाता है। उस निर्दयी व्यवस्था को हर तरह से पढ़ाई के अनुकुल नहीं, सरकार का ख्याल यहाँ पर सकारात्मक नहीं तो मर्यादित और कर्मशील व्यवस्था के लिए कर्ण और एकलव्य सा छात्र को बनना पड़ेगा।
राम से विभीषण अनुगृहीत हुए और सुदामा कृष्ण से आज का परिदृश्य राम और कृष्ण को पुकार रहा है अन्यथा कर्ण या एकलव्य सा अध्यवसायी वन कर अपने लक्ष्य को लेकर बढ़ने के लिए जमकर संघर्ष के लिए तैयार हो जाना चाहिए । अपराधी न बनकर दृढ़ व्रती बनें। युग धर्म यह कहता है।