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 एक अच्छा संयोग जो दुनियाँ को सही संदेश दे पाय

डॉ जी ० भक्त

दैनिक जागरण 8 मई के सम्पादकीय पृष्ठ पर श्री विवेक काटजू महोदय द्वारा जो स्पष्टीकरण सामने आया है , वह अवश्य ही विचारणीय हो सकता है चाहे जिस रुप में दुनियाँ ग्रहण करे । काटजू महोदय ने आपदा की घड़ी में भारतीय राजनैतिक वर्ग का एक जूट हो जाना भर को भारतीयता मानी है , या अब तक के भारतीय इतिहास के गौरव को इन्हीं शब्दों में सराहा है कदापि दुनियाँ के लिए वह संदेश सिद्ध नहीं हो सकता जो आज भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व की मिट्टी को अमानवीयता का श्मसान बनाने से रोक पाये ।

 यहाँ पर मैं दो बात रखना चाहूँगा । आधुनिक युग के इतिहास जब हम राजनैतिक , औघोगिक , सामाजिक के साथ वैज्ञानिक विकास का रेखांकित कर पाते है तो वहाँ पर मूलतः मानव की महत्त्वाकांक्षा ही उभरकर आयी , साथ ही उसकी परिणति पर विचारें तो हमें गम्भीरता से सोचना होगा कि हम कैसी उपलब्धि अर्जित किये जिसके कलष को धोने और उसके प्रदूषण को उचित स्थान देने की जगह खोज नहीं मिल पा रहे ।

 सृष्टि में मानव , मानव में चेतना , चेतना में ज्ञान , ज्ञान में कर्म और कर्म की उपलब्धि का परिणामो आकड़ा अब तक स्वार्थ छोड़ कर और कुछ रंग नहीं लाया । हम जो लिखा करते है और छप जाया करता है , इसलिए कि हम ठकुर सुहाती लिखते हैं । अगर जन मानस के कल्याणार्थ एवं परमार्थ चिन्तन की बात उठ तो उसके पाठक न मिलेंगे । जब विश्व में धीरे – धीरे जनतंत्र की स्थापना हुयी तो मानव के चिंतन में राजनैतिक धारा फटो । सफलता बल को मिली , धन को मिला , जन को मिली । जनतंत्र में मन परतत्र ही रह गया । क्यों ? .इस हेतु कि राजनैतिक विचारधारा में सादगी , स्वतंत्रता एवं सेवा पर मन को केन्द्रित न रखा गया । इन तीनों मंत्रों से आगे – भारती , भरत अर्थात ( ज्ञान ) एवं स्वदेशी का भाव , आना चाहिए , थोड़ा आगे बढ़िये तो तन , वचन और मन तीनों के सामंजस्य रुपी यंत्र का साथ होना चाहिए । अगर उपरोक्त यंत्र – तंत्र , मंत्र विचार धारा के वस्त्राभूषण न बने तो क्या हम जनतंत्र को फलित पायेंगे या परतंत्र ही स्वयं को अनुभव करेंगे ।

 देश की आजादी मात्र काँग्रेस पार्टी का मिली थी । नेहरु जी ने 1956 में भारत में प्रसाशन का उत्म मोडल C.D.Block स्थापित किया । 1970 आते – आते उसकी इमारत की छते फट गयी , दीवारें ढह गयीं । लेकिन आज भी अपने देश में ही ( सोनपुर ) गंडक रेल पुल जो 1885 में बना था , उसके पाये कितने टिकाउ रहे । 1983 मे गंगा नदी पर एशिया महादेश का दूसरा बड़ा पूल बना जो पाँच वर्षों तक भी अपनी निर्माण कला की मजबूती का प्रमाण सिद्ध न हुआ । तात्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी द्वारा जिसका उद्घाटन हुआ था ।

 विश्व का कोई देश हो , राजनीति में नेताओं की महत्त्वाकांक्षा की आग जो धरती को जलाती है उसका ही प्रमाण हमें विश्व में व्याप्त आशान्ति , आतंकवाद , युद्ध प्रदूषण और तरह – तरह के प्राकृतिक और ब्रह्माण्डीय कष्ट धरती को मिटाने पर जुटे हैं । आज वही महत्त्वकांक्षा कोरोना के पीछे विश्व को नंगा कर रखा है और राजनीति की महत्त्वाकांक्षा ने शिक्षा सहित सामाजिक विषमताओं को नंगा स्वरुप दिया है ।

 कोरोना का संक्रमण चिकित्सा शास्त्र का विषय है । कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री इसके नेतृत्व के हकदार है या अन्य कोई ? इस बिन्दु पर देश को विचार करने में क्या दुख है या किसी की गरिमा में क्या कभी आ सकती है । यहाँ मैं जो संदेश साझा करने जा करेंगे । Page 34 रहा हूँ , उस पर विश्व का विचारने का अच्छा अवसर है । पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व जब तक कायम रहे मानव अपने जीवन से जड़े क्षेत्रों में उच्चतम लक्ष्यों को लेकर बढ़ने मे सक्षम होना चाहे तो वह होमियोपैथी के मार्ग पर बढ़कर पा सकता है । 1977 के 23 फरवरी को मैंने इन्टरनेशनल फेडरेरान ऑफ फटिलिटि सोसाइटिज U.S.A द्वारा आयोजित प्रथम एसियन कॉंग्रेस ऑफ फर्टिलिटि स्टेरिलिटी एण्ड होमियोपैथिक कन्सेप्ट ऑफ फर्टिलिटी एण्ड स्टेरिलिटी पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया था जो मनुष्य को फर्टाइल , टोटली क्योर , फुलीइम्युन , लिवली , लोगिविटी आदि मेरिटस एण्ड कैपेविलिटिज से परिपूर्ण रखा जा सकता है । उसके सार रूप में एक आर्टिक्लि के रुप में A New Light on Family Welfare Planning in Homoeopathy का प्रकाशन हुआ जिसे प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी न सराहा था । चिन्ता का विषय है कि सराहना से देश की मिट्टी का जोड़ना कब आवश्यक होगा ? क्या कोरोना हम समझाने को सक्षम नहीं हो पाया ?

 विश्व का क्षेत्र बड़ा व्यापक है तो विश्व में मानव भी और उनमें निहित मानवकता के गुण भी है जो ग्राहय हो सकते ही नही , काम के सिद्ध हो सकते है । आज दुनियाँ के समक्ष समस्या है तो मिल जुलकर सोचना विचारना चाहिए । लेकिन यहाँ एक कथन है ” सबका साथ ” । पहले आप बतलायें तो कि आप किसके साथ है और कहाँ – कहाँ है ? कोरोना भाग जायेगा । आप व्यवसाय का भाव त्यागियें , सेवा का सच्चा लक्ष्य अपनाइए । आँख के सामने मरते इन्सान को देखकर भी इमान पर ख्याल नहीं करते । आप गलतियाँ गिनाते हैं तो फिर वह गलत करने वाला कौन है । ठीक है आप बहुत कुछ कर रहे हैं , कभी एक खुराक दवा का अनुषंधान करवाये , आपके चिकित्सा विषेषज्ञ पुस्तकों से ढूढ़कर दवा बतलाए ? कहाँ है आपका चिकित्सा विभाग और चिकित्सा व्यवस्था । आज तक विश्व में किसी और से कोरोना के विषय पर स्पष्ट रहस्य सामने नही आया । वैक्सिन को व्यवस्था ऑक्सीजन का व्यवसाय मास्क की बिक्री , सेनेटाइजर ग्लोब्स की बिक्री , दुकान खोल रहे है ? रोगी से दूर भागते चलते ह , तो रोगी बिना सेवा का आरोग्य होगा कोसे ?

” सजन र झूठ मत बोलों , खुदा के पास जाना है ।

” मनोकांक्षा ( मन की बात ) को भूलिए , जनाकांक्षा को अपनाइए । “

दुनियाँ चिन्तकों से खाली नहीं !

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