Mon. Nov 25th, 2024

एक सिद्धहस्त लेखक ही नहीं , इससे बहुत आगे दिख रहे ।

 – : डा ० जी ० भक्त : –

 डा ० जी ० भक्त को मैं तब से जानता हूँ जब ये होमियोपैथिक प्रैक्टिशनर के रुप में उभर कर आये । पहले तो इन्होंने एक उच्च विद्यालय में सेवा प्रारंभ की थी । आज भी मैं शिक्षण के क्षेत्र में इन्हें महत्त्वपूर्ण भूमिका के साथ विश्व के स्तर पर अपनी विकसित सोच को जीवन से जुड़े हर क्षेत्र में सुधार वादी दृष्टिकोण देते हुए देख रहा हूँ ।

 इनका शैक्षिक जीवन तो छोटा ही रहा किन्तु आज ऐसा कहते हुए स्वयं शर्मिन्दा होता हूँ कि कैसे स्वाध्याय को शिक्षण का सहारा पाकर या प्रयास से इतने आगे आ पाये । शिक्षा , चिकित्सा , विज्ञान , साहित्य , कविता ( हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषाओं में ) लेख , संस्मरण , नाटक उपन्यास के अतिरिक्त अनुशीलन , विवेचन , विश्लेषण जो वेवसाइट पर प्रतिदिन पाठक पाकर प्रखर विचारों का लाभ ले रहे हैं , ऐसा एक लेखक की कलम से देश नही विश्व की पटल पर छा रहे हैं यह छोटी सफलता नही मानी जा सकती ।

 देखा जाय तो कोरोना काल में इन्होंने जितनी जानकारी विविध रूपों में बीतें अवसरों पर चिकित्सा और बचाव के क्षेत्र में , इम्युनिटी पर , होमियोपैथी की भूमिका पर , चिकित्सकों की भूमिका और होमियोपैथी की सेवाए एवं सम्भावनाओं पर , जीवन के हर क्षेत्र , उद्देश्य एवं लक्ष्यों पर अगली पीढ़ि एवं भविष्य में स्वस्थता और आरोग्य के संबंध में चिकित्सा सेवा पर भविष्यवाणी , 21 वीं शदी की सम्भावनाओं , शिक्षा की गिरती गरिमा , एलोपैथिक चिकित्सा और होमियोपैथी की तुलनात्मक भूमिका . जनतंत्र का गिरता मूल्य , युग – धर्म , जीवनादर्श और जीवन दर्शन आदि ऐसे सूक्ष्म एवं जीवन्त विषयों पर सुलझा हुआ विचार रखकर वर्तमान पीढ़ी को सजगता की सीख देने वाले डा ० भक्त वस्तुतः सामाजिक जीवन में हर पहलू पर अपनी विशिष्ट सोच के लिए युगान्तकारी माने जा सकते हैं ।

 इनकी लिखी प्रथम पुस्तक ( 1 ) आधुनिक जीवन में श्रीमद्भगवद्गीता – प्रवृति और निवृति ( 2 ) युगधर्म , ( 3 ) साधना संकलन , ( 4 ) घर की बातें ( 5 ) जीवन के मोड़ पर ( 6 ) परिवार ( 7 ) उपहार ( 8 ) आशा ( 9 ) हमारा परिवेशः जीवन की कड़िया ( सप्त शतक ) ( 10 ) आँसू , सम्वेदनाओं की झोली में एक अनुत्तरित प्रश्न ( 11 ) जन शिक्षण में अभिव्यक्ति की यथार्थता ( 12 ) राम चरित मानस एक अनुशीलन ( 13 ) काव्य – जन हुँकार ( 14 ) मूर्च्छना के स्वर ( 15 ) काव्य किश्लय ( 16 ) होमियोपैथिक रचना ( 17 ) सार संग्रह ( 18 ) ट्रथ एबाउट होमियोपैथी ( 19 ) ए मेमोराइजर टू होमियोपैथी ( कविता ) ( 20 ) प्रकाशित लेखों के संकलन ( पल्स ऑफ दि प्रैक्टिस ) ( 21 ) कंट्री व्यूसन्स ऑफ डा ० जी ० भक्त ( 22 ) डोमिनेसन्स ऑफ मियाज्म ( अंग्रेजी ) तथा प्रकाशनार्थ पाणुलिपियाँ ( 1 ) यादों के झरोखे से ( 2 ) चैन की वंशी ( अपूर्व नैतिक ग्रंथ ) ( 3 ) जीवन की यात्रा आदि इनके गहन चिन्तन के प्रमाण है जो शिक्षण के क्षेत्र में अमूल्य देन माने जा सकते है ।

 गहन चिन्तन और विश्लेषण की प्रखर चेतना इनकी लेखनी को खूवी कहे , विचार वैभव की प्रगाढ़ता अथवा शब्द संयोजन की अप्रूव क्षमता का प्रकटीकरण । साहित्य रचना धार्मिता की कालात्मकता में शब्द सामध्य की अभिव्यंजना है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *