Sat. Nov 23rd, 2024

कल तक गर्मजोशी थी ,
 आज ये दिल शीतल होगा भारतवर्ष

 आज अपने दर्दे दिल से समझा की यह कोरोना का घमाशान विदेशी प्रत्याशियों के पलायन से फैला | पहले चीन में वाइरस पैदा हुआ | उसके संक्रमण से वहाँ से प्रवासी अपने – अपने देश पहुँचकर संक्रमण फैलाए | इस तरह यह विश्वस्तर पर फैला | फिर सभी देशों में फैले भारत के प्रवासी अपने देश में आने लगे और आज हम सभी इसके संकट में आ फँसे | आज हमारी सरकार भली प्रकार समझ पाई की इस संक्रमण का प्रवाह कैसे पधारा | हम तो सब भूलकर वाइरस पर जाते हैं किंतु भारत को यह सोचना पड़ेगा की ये भारतीय किस कारण से विश्व में फैले हैं । स्वावलंबन एक शब्द है जिसे गाँधी जी ने समझा था | अंग्रेजों ने हमें परावलंबी बनाया ताकि यह गुलामी से उबर नहीं पाए | गाँधीजी ने भारतीय परतंत्रता में छिपी कई मौलिकताओं को अपने चिंतन में लाकर स्वतंत्रता की धारा से जोड़ा जिसमें स्वाधीनता , ( अपनी सरकारें ) , स्वदेशी , स्वावलंबन , रोज़गार जनित शिक्षण , बुनियादी शिक्षा , ग्रामीण लघु उद्योगों को पुनर्जीवित करना खादी है | खादी को तो गाँधी जी ने स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए शस्त्र के रूप में लिया | सत्य और अहिंसा को अस्त्र मान कर चले | दुख है की गाँधी तबतक गाँधी रहे जबतक स्वतंत्र न हुए थे | स्वतंत्रता के मिलते ही गाँधीजी किसी तरह भारत को नहीं भाए | मैं सत्य कहता हूँ , कारण जो रहा हो | गाँधीजी न रहे | उनके वे अस्त्र – शस्त्रों को भी भारत में नहीं समद्रित रखा | उनकी बुनियादी शिक्षा , उनकी खादी , उनकी अहिंसा की नीति | स्वावलंबन पर उनका चिंतन भारतीय ग्रामीण व्यवस्था के लिए महान लक्ष्य था जो यहाँ की अबतक की सरकारें न अपना सकी | रोज़गार की समस्या और गरीबी अपार जनसंख्या वेल देश के लिए कोढ़ बना जो आज इस देश को शिक्षा देने कोरोना का कपन ओढ़ कर दस्तक दिया . . . . . . . . . . . . . . . |
 . . . . . . . . . . अब क्या सोच रहा भारत
 . . . . . . . . . . . . . . . . पहले तो इसे कोरोना से ही लड़ना है , बाद में फिर भारत का चिंतन क्या होता है ।
आज रामनवमी है | कल नवरात्र की पूर्णाहुति होगी | 14 एप्रिल को मेष संक्रांति का त्योहार है और वैज्ञानिकों की घोषणानुसार 29 एप्रिल को महा प्रलय की सूचना | इतना ही नहीं , कोरोना के साथ – साथ बर्ड फ्लू और चमकी बुखार के साथ पशुओं की महामारी भी | हमारे पास चुनौतियों का अंबार है । सतर वर्षों पुराना गणतंत्र कितना विकास किया उसका सच्चा स्वरूप आज सामने आया है किंतु हम चिंतित रहकर भी नहीं घबराते क्योंकि बड़ी शक्तियाँ विश्व की हमसे ज्यादा चिंतित हैं | यह भी कहा जा सकता है की यह महामारी नहीं आतंक वाद ही है | जैसे आतंक वाद की जड़ सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक कुव्यवस्था रही , उसी प्रकार कोरोना भी अब समझ में आया की भारत वासियों का भूमंडल पर चक्कर काटना हमारे देश की राजनैतिक , आर्थिक और सामाजिक नीति का दोष है । कल मैने अपने मौन अनुष्ठान में विचारा की अवधपति सीतारमन रामचंद्र जी से निवेदन करूँगा की अपने जन्मदिन पर सदियों से पसरे हुए राम मंदिर पर के कुहरे जब मिट गये और उनका मंदिर मंदिर निर्माण की प्रतिबद्धता भारतवासी संजोए हैं तो असुर्निकन्दन राम कोरोना दामन न करेंगे ? उन्हें तो शीघ्रातिशीघ्र ( 14 एप्रिल से पहले ) इसके आतंक से छुटकारा दिलाना चाहिए |
 आज 12 दिन हुए भारतवासी पूरे लॉक डाउन ( कारावास ) आ गये | 12 दिन शेष हैं । देशवासी क्यों न इस शेष अवधि को कोरोना वाइरस एवं महाप्रलय से मुक्ति के लिए घर बैठे ” रामचरित मानस ” का नवाह्यपारायण पाठ कर शांति का प्रयास करें।
 जैसी परिस्थिति विश्व में आतंक ने तैयार कर रखी , दूसरी ओर इस वैश्विक संक्रमण ने , इन दोनों का खात्मा विश्व के सामने चुनौती है । मेरा मानना है की विश्व की शासन व्यवस्था राष्ट्रवादी आवना की जड़ में मानवता बाकी दृष्टिकोण को लेकर संकल्पित हों तो सब की शांति स्थापित हो पाएगी | मैं तो कहँगा की सरकार घोषणाओं के माध्यम से पाँच वर्ष जीती है और रोगी व्यवहारी ( आरोग्य वाले ) इलाज से | कबिरदास के शब्दों में –

 नेता वैद्य दोनों खड़े काको लागू पायं |
 बलिहारी उस वैद्य की जो रोगी दिया जिलाय | 

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