कोरोना और होमियोपैथी – एक रिव्यू
Corona and Homeopathy – A Review
वर्तमान कोरोना कालमें चिकित्सा विज्ञान के विचारक चिन्तित है , इस बात को सामने पाकर कि कोरोना संक्रमण का प्रभाव , काल , कीर्य , लक्षण के साथ उनके सुधार और क्षति ( मृत्यु ) हमें क्या सोचने को बाधय कर रहे हैं । इस रहस्य के बारे में उनका कहना है कि इससे कारगर वैक्सिन जो संक्रमण से बचा पाये उनकी तैयारी में संदेह उत्पन्न कर रहा है । उन्होंने पाँच ऐसे रहस्य गिनाये है तथा उनका कहना है । कि इस संक्रमण में अब तक प्रभावी पाये जाने के छः महीने हो गये किन्तु उन रहस्यों का खुलासा अब तक न हो पाया जिससे लक्ष्य साधने में दिक्कत हो रही । ऐसे दिल्ली से मदन जैड़ा कहते हैं ।
उनकी समझ से वायरस का प्रभाव एक – सा और स्थायी होना चाहिए । उनके कार्य और स्वरुप में एकरुपता होनी चाहिए । जहाँ तक मेरा विचार है कि उन्हें अपने शोध और परीक्षणों से जो आँकड़े या तथ्य मिले उनके मूल्यांकन पर उन्हें भ्रम हो रहा है । संक्रमण के प्रभावी बुरे लक्षणों , उनके काल , तथा प्रभाव से व्यक्ति विशेष में अन्तर पाया जाना गुणत्म रुप से स्वाभाविक है । वह सिद्ध करता है कि संक्रमण रुप क्रिया व्यक्ति विशेष की शारीरिक क्षमता तथा उनकी प्राकृति अवस्था के अनुरुप घटित होती है ।
मानव प्राणि में उसकी जीवनी शक्ति एक दूसरे से पृथक पायी जाती है , इस कारण किसी बाहरी शक्ति का प्रभाव उसी की मात्रात्मक क्षमतानुसार माना जाना स्वाभाविक है । उसकी शारीरिक और मानसिक दशा स्वस्थ अवस्था में अर्थात संक्रमण पूर्व जैसी होती है उससे उसकी जीवनी शक्ति या स्वाभाविक रोग प्रति रोधी क्षमता का एक दूसरे से भिन्न हाना उसके शरीर में पूर्व के छिपे , दवें , रोग बीज ( Miasm ) ही उसके मूल कारण होते हैं ऐसी परिस्थिति को जब हम वैज्ञानिक आधार पर या प्राकृतिक रुप से स्वीकार करते है तो वायरस ( The morbid aqul ) उत्पन्न रोगों के लाक्षणिक योग काल तथा धातक परिणामों में भी अलग – अलग प्रभाव पाये जायेंगे ।
होमियोपैथी के आविष्कर्ता डा ० हनिमैन महोदय ने प्राकृतिक रुप व्यक्ति विशेष को तीन दोषो ( रोग बीज ) सोस ० , सिफलिस एवं साइकोशिस नामों से पृथक बताया साथ ही भारतीय आयुर्विज्ञान ने भी कप , पित्त तथा बात दोषों से प्रभावित अवस्था में पाया जो व्यक्ति विशेष को अलग – अलग रुपों में संक्रमित होने का कारण बना । यह प्रकृति का नियम है जिसे भारतीय ऋषि परम्परा में अनुभव किया गया । वही आयुर्वेद भी मानता है । हनिमैन भी उसी तय को अंगीकार करते तथा अपनी होमियोपैथिक चिकित्सा की उपलब्धि को नेचर्स क्यों । की संज्ञा दी । वे वैक्सिन के पक्षपाती नही रहे । उनके अनुसार व्यक्ति विशेष में स्थित जीवनी शक्ति ही रोग की उत्पत्ति या निवारक रुप के कार्य करने का मूल कारण बताया । अर्थात सशक्त जीवनी शक्ति जिसे आप सभी इम्युनिटी नाम से जानते है अपने अनुसार प्रभावित करती है । उन्होंने सोरा दोष को ही संक्रामक रोग ( एपिडेमिक या इन्डेमिक या पामेडमिक ) को प्रभावित कर ने वाला माना । अगर इससे दोष सिफलिश सोरो से मिलकर टयुबरक्युलेसिस दोष तैयार किया तो रोग घातक स्थिति को प्राप्त किया । उन्होंने उसी कारण रोग का नाम छोड़ कर लक्षण मान को ही महत्त्व दिया और लक्षण
समष्टि ( Totality of Symptom similarity or maximity ) को लक्ष्य करके ही चिकित्सा का आधार माना । इसे उन्होंने मेडिकल साइन्स न कहकर आर्ट ऑफ हिलिंग कहा । यही तरीका उनके द्वारा संक्रामत रोगों के इलाज में सभी संक्रमितों के अन्दर जिन समतुल्य लक्षणों की अधिकता पायी गयी उन पर ही आधारित रहकर जो दवा उसके निदान में सफल पायी गयी उसी विशेष दवा को स्वस्थ मानव पर प्रयोग कर उसके प्रिवेन्टिव एक्शन का भी परीक्षण प्रभावी पाया । उसे जिनियम एपिडेमिकस नाम दिया गया ।
उसे दुखद कहें या चिन्तनीय कि अबतक की संक्रमणावधि की विभीषिका में जहाँ पूरी दुनिया में रोगी कोरोना के रेकर्डेड पाये गये उनमें से रोगी उसके ग्रास बने और उस पर रोक लगाने में विश्व की व्यवस्था अपनी विफलता देख W.H.O भी चिन्तित है । अबतक इसके शोध में यही बतलाया जा रहा है कि कोरोना को रोकने की क्षमता सम्भावित वैक्सिन जो आने की प्रत्याशा दिला रही है वह मात्र फेफड़े में आने वाले संक्रमण को ( न्युमोनिया होने से ) ही रोक पायेगा ।
मेरे निवेदन पर चिकित्सा जगत , खासकर आयुष भी नहीं अबतक ध्यान दे पाया लेकिन पुनः कहूँगा कि जैड़ा महोदय अपने विचारों के ही समतुल्य मेरे द्वारा साझा किये गये को ध्यान में रखकर अप में मर्श करें एवं मारे C.C.R.H. , L.H.M.I. और W.H.O. तथा अन्य शोध संगठन या संस्था ” हिप्पोजेनियम ‘ पर परीक्षण्ण कर होमियोपैथी के महान चिन्तकों के प्रयासों , अनुभवों एवं सत्यापित तथ्यों की पुष्टि के लक्ष्य लेकर बढ़कर देखें ।
हाल में आने वाले सम्भावित ” को – वैक्सिन के परीक्षण को नियमतः कठिन प्रक्रिया से गुजरना होगा ही । .किन्तु ” हिप्पोजेनियम ” पर विमर्श और परीक्षण CCRH नई दिल्ली द्वारा कोरोना रोगयिों पर साथ ही स्वस्थ लोगों पर परीक्षण से पुष्टि हो जाने पर सरकार के स्वास्थ विभाग अपने पहल पर भी सोच सकेगी आयुष को इसमें आगे बढ़ना चाहिए । होमियोपैथी इज ट्रेस , पी – हैवटूगों एडेड ।
होमियोपैथी निरापद किफायती , साल एवं सर्व सुलभ है । अगलालेख इनक्रीजिंग डिमण्ड इन सोसल एण्ड प्रीवेन्टिव मेडिसीन साइट पर शीघ्र पायेंगे डा ० जी ० भक्त के ” ट्रथ एवाउट होमियोपैथी ” नामक पुस्तक से ।
इस मानव समुदाय को वैश्विक स्तर पर बचाने का श्रेय न मिले तो भी इस प्रयास से सम्भव है कोई नये तथ्य प्रकाशित हो पाये ।
दिनांक 08 जुलाई को प्रकाशित दैनिक हिन्दुस्तान में साईंस जर्नल नेचर ने जो दुनिया के वैज्ञानिको के हवाल एक रिपोर्ट प्रकाशित यह समाचार विचारण है । भेद भावों और राजनैतिक सामाजिक प्रश्नों के बीच न पड़कर मानवता की रक्षा करना मानव का धर्म है । सत्यार्थी अगर थकता है तो उसे गिरकर और फिसलकर पुनः उठना और सत्य को अत्याधिक मर्यादा दिलाने का श्रेय लेना भी सेवा है ।
डा ० जी ० भक्त