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 कोरोना कथा और होमियोपैथी

 डा ० जी ० भक्त

 चिकित्सा जगत के अद्यतन इतिहास में विश्व व्याप्त और विख्यात संक्रामक ( पैंडेमिक ) कोविड -19 के प्रथम फेज ने जो विश्व के मानव समुदाय को सताया ही नही मानवता की भी कम क्षति नही की और यह भी उल्लेखनीय है कि इस महामारी से लड़ने में चिकित्सा जगत ( इसकी चिकित्सा में जुड़ी ) एवं जुटी व्यवस्था कुछ कर नहीं पायी । जिन देशों के संबंध में सुना गया कि वहाँ जल्दी नियंत्रण हो पाया , इने – गिने कुछ ही छोटे देश इसके प्रकोप से बचे । भारत ने अपने यहाँ के संबंध में अबतक अपने को संतुष्ट बतला रहा है । कुछ अंशों में यह सत्य भी है कि इसमें देहाती नुस्खों ( इन्डीजेनस मेडिसीन्स ) का पालन कर अपने को बचा पाने में सफलमाना है । सत्य क्या है , इसकी वैज्ञानिकता पर उतर कर कुछ नही बतला सकते । यहाँ की व्यवस्था के संबंध में किंचित कमियाँ भी समाचारों में कभी – कभी सुनी गयी है । चाहे जो हो भारत को इसकी व्यवस्था में आर्थिक नुकशान अधिक हुआ है । मानव की क्षति के संबंध में हमारा देश ऐसा मानता है कि गैर कोरोना हादसे और अन्य कारणों के चपेट में आयी मृत्यु के दर के करीब बराबरी में मानव की क्षति हुयी फिर भी मृत्यु कदापि सुखाद नहीं । जधन्य अपराधी को फॉसी मिलना भी उसके परिवार के लिए कष्टकारक ही है जबकि वह पूर्व में कितनों के जीवन से खेला हो ।

 भारत सरकार ने स्वीकारा है कि वह अपनी देशी चिकित्सा , आयुर्वेद एवं योग , नेचुरोपैथी से उवरने में सहयोगी साबित हुयी है । इसमें पातंजलि के बाबा रामदेव की भूमिका सराही गयी है ।

 होमियोपैथी के जन्म दाता , प्रख्यात एलोपैथ डा ० हैनिमैन महोदय ने 18 वीं सदी के प्रारंभ मे ही दुनियाँ को शमनकारी चिकित्सा प्रणाली के दुष्प्रभावों तथा रोगों के रुपान्तरित स्वरुप में कष्टसाध्य एवं असाध्य रुप में प्रकट होने से बचाने के लिए जिन बहुमूल्य खोज को साकार किया साथ ही सिद्धान्त देकर , चिकित्सा द्वारा सिद्ध कर पुस्तकें लिखकर जगत के त्तकालीन चिकित्सा में लगे चिकित्सकों को यह अमूल्य निरापद एवं आरोग्यकारी चिकित्सा पद्धति जो रोगों को जल्दी , सुगमता पूर्वक , स्थायी रुप से स्वस्थ बनाकर हर प्रकार से आरोग्यता की पहल सुझा पाये । एलोपैथगण भारी संख्या में होमियोपैथी स्वीकार कर पाये । होमियापैथी का विकास इतना हुआ कि आज विश्व के अधिकांश देशों में अपना पाँव जमा पाया है । जबकि एलोपैथिक 328 दवाओं के प्रयोग पर सरकार ने रोक लगायी फिर भी यह व्यवसाय चल ही रहा है।

 विडम्बना है कि भारत ही क्या अन्य देशों में भी जहाँ एलोपैथी इम्पेरिकल सिस्टम है , कुछ कर न पायी । भारत में मैंने ही नहीं बहुतों ने होमियोपैथी की सेवा जनता में इम्युनिटी लाने हेतु अपनी दवा की खुराके खिलाई । आयुष की ओर से भी कुछ निर्देश साझा किये गये रहा है । थे किन्तु व्यवस्थित नहीं । मैंने अपने साइट पर ( myxitiz.in ) Googles पर आज पूरे एक वर्ष तक लगातार पूरे विश्व को प्रेरित कर रहा हूँ । उसे आज पढ़ सकते हैं । सबसे ज्यादा पाठक भारत में तो हैं ही , भारी मात्रा में हॉलेण्ड प्रथम तथा यू ० एस ० ए ० द्वितीय है । अन्य देश 10 से ज्यादा है जो मेरे लेख पढ़े है । किन्तु पता नहीं उनमें क्या भय है कि इस विषय पर अपनी प्रतिक्रिया या सहमति न व्यक्तिगत और न प्रशासनिक तौर पर ही अबतक पा रहा है।

 विश्व समुदाय , जिसमें होमियोपैथिक छात्र , शिक्षक , डाक्टर प्राध्यापक , सरकारी सेवक सहित होमियोपैथिक चिकित्सा की सेवा से लाभान्वित होने वाले होमियो प्रेमी है , उनसे मेरी अपेक्षा होगी कि उनके विचार मेरे साइट पर आये ताकि राष्ट्रों की सरकारे होमियोपैथिक चिकित्सकों की भावना , सेवा और सम्भावना से अवगत और लाभान्वित हो पायें , यह एक स्थापित चिकित्सा विज्ञान है साथ ही विश्व में व्याप्त इसकी व्यवस्था है । सम्भव है इसका साथ पाकर दुनियाँ एक नदी ज्योति को पहचान पाये जो मानव अस्तित्व के स्वास्थ्य और उच्चतर लक्ष्य की प्राप्ति में सामने आ सके । हनिमैन जर्मनी में जन्में थे , अमेरिका में बढ़ , चढ़कर सम्मान पाये । पूरे यूरोप में फैला , भारत में सर्वाधिक विकास हुआ फिर उसके संबंध में क्या नकारात्मक हो सकता है । अगर कभी हो तो क्या हाथ की छोटी अंगुली का काट फेंका जा सकता हैं ?

 कुछ कारण हो तो गुप्त न रखा जाय ।

 उससे सुधार की अपेक्षा की जाय ।

 – : सादर :-

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