कोरोना का समाजिक निबटारा
( Corona’s Social Solution )
Dr. G. Bhakta
जहाँ तक मिडिया की खबरों सरकारी आँकड़ो और स्पष्टीकरण से जानकारी समाज को प्राप्त हुयी , उससे निम्न बातें अबतक सामने आयी :-
1. यह संक्रामक रोग ( Covid – 19 ) अबतक दुनियाँ से विदा न लें पायी । इसका समाज पर विविध रूपों में प्रभाव देखा गया जिससे सामाजिक , आर्थिक और स्वास्थ्य जनित क्षति हुयी ।
2. सरकारी व्यवस्था में सिर्फ राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अकेले इसकी जिम्मेदारी अपने उपर लेकर अबतक सक्रिय भूमिका निभाई ।
3. अबतक की उपलब्धि में सकारात्मक इसलिए कुछ नहीं स्वीकारी जा सकती कि इससे विश्व में मानव की अपूर्व क्षति हुयी । आज भारत की सोच में है कि उस देश में मृत्यु दर संक्रमित रोगियों की तादाद में कम प्रतिशत रही , जिसका श्रेय व्यवस्था को नहीं जाता बल्कि भारतीय सामाजिक प्रचलन खान – पान , आयुर्वेदिक नुस्खें का पालन आदि को मिला । लॉक – डाउन और सरकारी नियंत्रण को कम सफलता मिली जिसके कारण आज तक सामाजिक गतिविधियों चालू न हो पा रहीं , उसके पालन में दोष बना रहा । कठोर कारवाई भी पूर्णतः फलित न हो पाने से आज तक शिक्षा संस्थान न खुल पाये , ट्रेन सेवा वाधित ही रही । यातायात में जितनी छूट दी गयी एवं जो मानक रखे गये उसका पालन ही हो पा रहा और भाड़े के रुप में खुलकर शोषण चल रहा है ।
4. कोरोना की चिकित्सा विरोधाभासी ही रही , वैक्सिन की प्रतीक्षा में अगस्त समाप्त होने पर आया । सामान्य चिकित्सा विधान भी कोरोना संक्रमण के भय से उपरी दबाब से ठप मात्र है ।
5. देश अब संदेश दे रहा है कि कोरोना का इलाज निजी अस्पतालों में होगा जिसकी दरें सरकार निर्धारित कर दी है किन्तु अबतक अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को उस कर्य में संलग्न नहीं किया जा रहा है । एक दूसरा पहलू है कि कोरोना का जो भय व्याप्त है उस पर प्रतिदिन विशेषज्ञों द्वारा विविध प्रकार सलाह दिये जा रहे हैं कि अब कोरोना धीरे – धीरे स्वंय सामान्य हो जायेगा । इसका अनुमान संक्रमण , मृत्यु , आरोग्य आदि बिन्दुओं पर आधारित है । यह भी ध्यान देने की बात है कि अबतक विश्वसनीय तौर पर कहना कि ऐसा सम्भव है , कोई आधार नहीं रखता । यह भी सुझाव आ रहा कि निदानात्मक रुप से अबतक जनता जिस निर्देशों का पालन करती रही है उसका लगातार पालन करते हुए शेष समय का उपयोग उसी रूप में करती रहे तो आदतन वह व्यवहारिक प्रचलन बन जायेगा जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ अपना देश पाकर कोरोना से लड़ रही और अबतक बच पायी । वैचारिक रुप से यह मानना गलत नहीं , किन्तु रोग की सफल चिकित्सा चाहिए । यह तो समाजिक पहल हुयी ( सोसल कस्टम ) इसका श्रेय लेना विचारणीय नही होना चाहिए । चिकित्सा के अतिरिक्त अपनाये गये उपायों को सोसल एण्ड प्रीवेन्टिव मेडिसीन कहा जाता है ( P.S.M ) .
अतः कोरोना से युद्ध और योद्धा का श्रेय जो चिकित्सा विभाग को दिया जा रहा और पुरस्कृत किया जा रहा यह निजी विचार हो सकता है । जन मान्यता उसे मिल पायेगा । यह जनता जाने फिर भी मैं इतना स्वीकार करना चाहूँगा कि जब कुछ भी सकारात्मक नहीं हो पाया तो सामाजिक श्रेय को सास्कृतिक रुप देकर चलना कदापि अस्वीकार्य नहीं किया जाय । किन्तु कभी तो विचारना पड़ेगा कि स्वास्थ्य विभाग की उचित जिम्मेदारी ( एका डंटेविलिटी ) उसी से पूरी हो जाती है ? आयुष का स्थान क्या रहा ? उस पर भी कुछ सोच साझा करना चाहिए , जिसकी प्रतीक्षा है ।