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 कोरोना की करुण कहानी

 ( विश्व के समक्ष खुली अपील )

 डा० जी० भक्त

 आज ऐसी स्वीकारोक्ति विश्व के लिए कोई भूल नहीं मानी जा सकती कि धरती पर बसा हुआ मानव समुदाय इस कहर की कराह नहीं झेल रहा ? इसमें दुनिया के सभी देश , उनके बशिन्दे , उनकी सरकारें भी परेशान हो रही । यह सोचनीय है कि वह मानवीय प्रयासों का संतोषप्रद सकारात्मक पहल अबतक किन कारणों से नहीं हो पा रहा । यह चिकित्सा विज्ञान की कमी दर्शा रहा है या व्यवस्थात्मक अपर्याप्तता की ओर ध्यानाकर्षण कराता है ?

 अगर दुर्दिन में मानव की क्षमात , ज्ञान गरिमा और अर्थवक्ता सहित उसकी कला की कुशलता काम नही आती , तो मानसित चिन्ता , विशाद और विचलन झेलना स्वाभाविक होगा । आज जो उतार – चढ़ाव , बदलाव और क्रमिक संक्रमण की श्रृंखला खड़ी हो रही , वह युग के प्रति गंभीर चुनौती मानी ही जा सकती है । हम अगर अतीत के पन्नों को उलटें , खोजे और अपने संसाधनों के आलोक में विमर्श , शोध और प्रयोग प्रारंभ कर पाये तो हमारे अपरिमित सारस्वत ज्ञान ग्रंथ को , जो अबतक मानव को स्वल्वायु और अनन्त बाधाओं के कारण अगभ्य माने गये हैं उनपर वैश्विक पहल प्रांरभ कर एक शारदीय संघर्ष के अभियान का विधान हो , न कि मृषा कोरोना का जंग झेल अपंग बन पश्चाताप करते रहें । खेद है कि इस दिशा में हम जागरुक नहीं हो रहे ।

 मैं विश्व की जनता , उनके महामहिम उनके राष्ट्राध्यक्षों , प्रधान मंत्रियों , स्वास्थ्य मंत्रियों , चिकित्सा व्यवस्था के संचालकों सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन के महाधिपों से आग्रह करना चाहता हूँ कि उनके अनुभव में अबतक इस गम्भीर महामारी का रहस्य क्या है ? इसके वैज्ञानिक आधार क्या है ? रोग के लक्षण और प्रभावों को गौण क्यों रखा जा रहा है ? दवा निर्माण एवं अबतक के चिकित्सीय अनुभव का यथार्थ अधिगम क्या बतलाता है ? सारी चिकित्सा प्रणालियों के अधिष्ठाता किंकर्त्तव्य विमूढक्यों दिख रहे ? इन विषयों पर मैं अपने ही देश के माननीयों से ही नहीं , विश्व स्तर से साग्रह निवेदन साझा करना चाहता हूँ कि क्या यह कोई गोपनीय रहस्य है , जो पटल पर लाया न जा सके या कोई ऐसी अक्षमता छिपी है जिससे गरिमा को गुम कर मानवता की क्षति पर चुप बैठे देख रहे है ।

 मानवता के हित में देर अमानवीयता न सिद्ध हो , इससे बचना ही मानवता की सीमा बने । यही देवत्त्व की पराकाष्ठा होगी । विश्व में अधिकांशतः जनतंत्रात्मक व्यवस्थाहै । सारी राजनैतिक व्यवस्था स्वदेश की सेवा के लिए है । सभी वेतन भोगी हैं । कोष राष्ट्रा की जनता के हित के लिए है । मेरी सोच यहाँ पर गलत ही क्यों न हो , किन्तु मेरे अनुमान में उदासीनता भी एक प्रमुख कारणों में से एक बन सकती है जिसके प्रति राष्ट्र भक्ति ही राजनीति की सुगन्ध समझी जा सकती है ।

 महात्मा गाँधी जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि एक अंग्रेज इमानदार अधिकारी जो भारत मे सेवा अर्पित कर रहे थे , उन्होंने अपनी ब्रिटेन की सरकार के संबंध में कहा था कि अगर किसी का खून लेना हो तो उसके उस अंग में नश्तर लगायें , जहाँ खून ज्यादा हो । उनका इशारा था कि भारत को तो पहले ही विदेशियों ने लूटा था । अब तो भारत गरीब है , उसका शोषण करना उचित नहीं । आज का युग धर्म यही कहता है कि मानव मानव पर अत्याचार न करे । दुश्मन दूर हो तो अपनी सुरक्षा पर विचारें जब सामने खड़ा हो तो हर विधान से जुड़े । लेकिन ध्यान में कल्याण ही आपका लक्ष्य हो ।

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