Thu. Nov 21st, 2024

कोरोना के कारण भारत मे गहराते

 परिदृश्य
 डा . जी . भक्त
 विपति में धीरज और संयम ही एकमत्रा सहारा है । शास्त्र का कथन है : मानव मान में बुरे विचार बनते और चित्त और शरीर को विकृत ( रोगी ) बनाते और उसके प्रभाव में शरीर क्षीण होता जाता हैं , कष्ट पता है । इसकी दवा हमेशा दूसरे के हाथ हैं | रोग एक स्वयं उत्पन्न करते है लेकिन दवा के लिए चिकित्सक | खोजते हैं | वहाँ हमारा ज्ञान और धन कोई काम नहीं आता | लेकिन जो रोग बाहरी कारण से पैदा होते या दूसरो के संपर्क में आने से होते है उनकी चिकित्सा कुछ विशेष अर्थ रखती है । उनका निदान और विधान अपना अलग अर्थ रखता हैं । कारण और प्रभाव के साथ उसके जीवन चक्र को समाप्त करने का विधान जरूरी होता है | यहाँ पर भी हम बाहरी परिवेश के प्रति मुखातिब होते है | फलतः इसका क्रम कभी टूटता नहीं है । आज देख जा रहा है की पूरी सतर्कता और भरपूर प्रयास के बाद भी | संक्रमण जाने की जगह और प्रभावी होता दिख रहा है और राष्ट्र की चिंता गहरा | रही है । ऐसे परिदृश्य के हमे भौतिक तैयारियाँ ही करनी ही है साथ ही आत्मिक बाल जीव की शक्ति , शौर्या , समय और आत्म – विश्वास जैसी दिव्य शक्ति का अवधान करना होगा | दृढ़ चिंत और निर्भीक मानस का सहारा हमे लेना होगा , घटनाओ के घटने का भी विज्ञान होता है | जैसे भौतिक कारण , दैविक कारण और दैहिक कारण समूल समाप्त करने के लिए आत्मिक शक्तियों का आह्वान चाहता है | दिव्य शक्ति से जुड़कर आत्म विश्वास को पक्का कर हम विश्व को कुत्सित प्रयासों से निपट सकते हैं | मौन , योग , ध्यान , प्रार्थना , उपवास , प्रकृति के साथ सत्म्य स्थापित करना , | उसे चित के धारण करना आध्यक हैं । ब्राहमी शक्ति , जो काल रूप प्रकृति का कारण हैं | उसे ही धारण करना जीवन का सत्य होगा | यह विचारने मे रहस्मय है कि इसका आगमन विदेश से , यात्रियो से , उनके संपर्क से ही जाना जा रहा हैं । हम उन्हें मन से अस्वीकार कर अपने को पहले निर्भीक बना कर उन बाह्य शक्तियों के मन मे स्थान ही ना दें तथा अखिल विश्व के हीत मे मन वचन और कर्म से अपनी शक्ति को समर्पित कर दें तो यह दानव रूप वायरस मिट जाएगा । इस अभियान के जुटे देशो के आज मुक्ति जो स्थान ले रही है वह जैविक वायरस हो या मानवबम् या वाहनिक रेडियोएक्टिव धारा ( उर्जा ) ही हो उसे हम प्राकृतिक जीवन जीने का संकल्प लेकर बढ़े तो सफल हो सकेंगे । हमारा दुख तो अपना है । इससे , अर्थात इस शरीर से हमे मोह हैं । दुख झेलते हए भी हम इसे गले लगाए रखते हैं । कुपथ्य त्याग नहीं सकते । प्रकृति की धारा के विपरीत नजाकर उसी के प्रवाह के साथ अपने को जोड़ ले तो यह क्लेश चाहे देह | के साथ चला जाए या देह छोड़के चला जाए , यही मूल मन्त्र हैं जीवन का या जीवन के रोग का आस्तित्व का रहस्य हैं इसका ही ज्ञान होना अमरता की संगया हैं । फिर यह धारणा जीवंत बनाए रखना कि ” इसकी दवा ही नही है ” इस कथन के ज्ञान गरिमा की असफलता है या सोची सुझाई मृत्यु का | आमंत्रण हैं | अब बताइए की आप क्या सोचना चाहते हैं ? अगर यही सोव्ह है तो आप जी कर भी मृत हो क्यूकी असंख्य आत्माओं के भक्षक बन रहे हैं । अगर उपरोक्त आशय के पक्षधर बनना चाहते है वो जुड़ जाइए उन आत्माओ के साथ जो कष्ट काट रहे हैं ।
 – – – – – 
काममे दू : ख तत्पानप्रनिन्मनश्ये !
———×——– 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *