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कोरोना ने ज्ञान रश्मि फैलाई

 डा . जी . भक्त
 यह पूर्णरूपेण सत्योक्ति है ।
 मलया गिरी पर वसै भुजंग ,
 विष अमृत बस एक ही संग ।

 भारतीय विचारकों में एक ही साथ विचारशक्ति की कुशाग्रता है तो काव्यधर्मिता भी | महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यानाकर्षण एवम् विचारों की रस – वर्षा का प्रासफुटन मानवीय चेतना की प्रधानता सब दिन रही | आशा है की कोरोना की विदाई के साथ ही उससे जुड़ी अनेक बाधा – व्याधियाँ मिटते ही एक बार फिर जगत गुरु बन कर भारत विश्व के पटल पर उभरेगा |
 मोदी महोदय की स्पष्ट उक्ति है की उन्हें कोरोना से सीख मिली है की हमें स्वावलंबी बनना चाहिए | भला ऐसी गड़ी हुई भूतात्मा की झलक उन्हें कैसे न मिले जिन्हें पूर्व की सरकारें दफ़ना चुकी थी | कितनी मौलिक सोच है उनकी की मान की बात जो स्फुरित होती है चट वे साझा करते देर नहीं करते |
 भारत को स्वतंत्रता दिलाने का महात्मा गाँधी जी का व्रत स्वावलंबन का लक्ष्य लेकर ही आया था जिसे चरखा और खादी के साथ सत्य और अहिंसा का भाव जोड़ कर सत्याग्रह की नींव रखी थी | काम बनते साबरमती के संत चले गये | सरकार बनते चरखा और खादी , बुनियादी शिक्षा , और अहिंसा का संदेश भी तिरोहित हो चुका | हिन्दी – चीनी भाई – भाई का नारा और पंचशीस्व भी | आज पुन : गुर्जर प्रांत के नव सेनापति नरेंद्र मोदी जी ने जो दिवा स्वप्न देखा है , अवश्य विचारणीय है ।
स्वावलंबन क्यों न खयाल आए ! आख़िर ई कोरोना के जंग में जो बेरोज़गारी , आर्थिक तंगी , भुखमरी तालाबंदी का बोझ झेलना पद रहा है ! ! यह तो सच्चाई है । किन – किन रूपों में भ्रष्टाचार बढ़ा है | नियमों का उल्लंघन , शोषण , जमाखोरी , मुनाफाखोरी स्पष्ट कर रही है की भारत में कोई धनी नहीं है , सभी गरीबी के मारे हुए इंसान है जो कहते है :
 ” हे जन , अर्जन से मुँह न मोड़ , मिल सके जहाँ जितना न छोड़ |”
  मोदी जी तो भारत पर सर्वस्व न्योछावर करने को उद्यत हैं । लेकिन ज़रा देखें तो उनके परम हितैषी ट्रंप जी आज भी अपनी अर्थव्यवस्था के प्रति टंच है , इतना ही नहीं चीन पर इसके लिए जितनी तिरछी नज़र चढ़ाए हुए हैं उतना कोरोना पर नहीं ।
 मैं इधर तीन दिनों से लगातार साइट पर विचारों की लता वितान फैला रहा हूँ की बाल मजदूर और मजदूरों का पलायन या भारतीयों का नौकरी हेतु परदेश पलायन न होता तो आज विश्व के उन देशों से लौटने वाले प्रवासी वहाँ फैले इस वाइरस का कॉवर होकर भारत न लौटते और न मोदी जी इतने बेचैन होते | सोच तो उम्दा है किंतु विषय हलचल पैदा करने वाला है ।
 सोचना यह भी है की माननीय प्रधानमंत्री जी का ध्यान संभावी अर्थव्यवस्था के बिगड़ने की ओर जा रही है इसलिए स्वावलंबन का ख्याल आया , अथवा सचमुच सोचा की देश अगर परमुखावेशी नहीं होता तो आज कोरोना से जंग सीधे जीत लिया होता किंतु एक संस्कृत उक्ति है :

 एकस्य दुखस्य न यावदन्तम ,
 गच्छाम्याहाँ पार्मिवैशावस्य |
तावद्वितियं समुपस्थितमे ,
 छीद्रेशवनती बहुलि भवन्ति |

 भारत की समस्या गजेंद्र जैसी है जिसे मगर ने पैर पकड़ जाकड़ लिया है । इस महान विपत्ति का विमोचन नरेंद्र मोदी जी को करना है , किंतु हमें नोटबंदी की असफलता भी याद है ।
  लेकिन आशा न त्यागीए कहीं इनके सपने का मोटी कही इस अंतिम डुबकी की ही प्रतीक्षा कर रहा हो | फिर भी मैं सोचता हूँ की स्वावलंबन के बाद तो धनवान प्रत्याशी बनेंगे , वोटर कौन रहेगा ?
 अब यह मोदी जी ही समझें |

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