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कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने हेत होम्योपैथी  दवा

 PROPHYLAXIS

 वास्तविक प्रतिषेधक औषधि वही हो सकती है जो संक्रमित रोगी के रोग बीज रूप वस्तु से तैयार कर परीक्षित एवं सत्यापित हो , अथवा वायरस युक्त सैंपल को सक्रिय होस्ट ( पोषिता ) में विकसित कर प्राप्त किया जा सके ।
 दूसरी प्रकिया यह है कि वायरस से संक्रमित ( + ) ve रोगी में प्राप्त विशिष्ट लाक्षणों के आधार पर जो दवा पूर्ण आरोग्य स्थापित कर पाए , उसी दवा की २०० शक्ति की सूक्ष्म खुराक सप्ताह के एक बार प्रयोग की जा सकती है । ऐसी दवा ओनीयस एपिडेमीकस कहलाती है ।
 होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति मे उपरोक्त प्रथम कोटि की दवा मोसोड कहलाती है । चेचक की प्रजातियो से अलग – अलग प्राप्त रोग बीजो से तैयार मौर्विलिनम , वैरिपोलिम , वैक्सिनीनम प्रामाणिक रूप से प्रचलन में है । ये दवाएँ प्रीवेंटिव , क्योरेटिव तथा स्थापीत क्रॉनिक डीजिजेस के लिए रोगबीज नाशक के रूप मे चिकित्सा के प्रारंभ तथा चिकित्सा बंद करने के समय कंवालरिंग दवा के रूप में व्यव्हन्त होती है । कालरा के लिए कोलेरिन प्रीवेटिव होती है । लेकिन जेनिनस एपिडेमीकस के रूप में प्रीवेंलिंग पेस्टीलेंस के तहत जो दवा उपयोगी पायी गयी हो उस समय उसीका प्रयोग सिमिलिमम ( रोग का सम्स्तिगत लक्षण संपन्न ) प्रतिरोधक होगी ।
 इन सन्दर्भो मे अबतक होम्योपैथिक क्लासिक्स के दो सन्दर्भ स्मरणीय एवम् विचारणीय है । जैसा की डा . जॉन हेनरी क्लार्क ने अपनी ADictionary of clinical Mat – medica तथा डा . विलियम बोरिक की Mat – medica में hippogrinum नामक दवा पर जो टिप्पणी दी है । उसमे श्वसन यंत्र की बीमारियों के उन लक्षणों का वर्णन आया है जो कोरोना के विशिष्ट लक्षणों तथा उनके विकास और उनके टर्मिनल साइन्स ( signs ) के संबंधो के बारे मे बतलाया गया है । उस दवा का होस्ट कार्य क्षेत्र , ग्रोथ तथा टर्मिनेशन साबित करते है कि वृद्धजनो पर उनका असर ज्यादा हआ करते है । रोग इन्प्नमोमिट्री स्टेज से लेकर इंफ़िल्टेरेशन ulcerztion , blockage , septic stage , air hunger and respiration failure आदि अवस्थाएं लाती है ।
 होम्योपैथी के अविष्कर्ता डा . सैमएल हैनी कैन स्वयं एलोपैथिक चिकिस्तक थे | विशेषकर टॉक्सिकॉलजी , फार्मोकॉलॉजी एवं फोरेंसिक मेडिसिन की विशिष्ट जानकारी थी । उन्होने दवाओ का परीक्षण एलोपैथी की तरह छोटे जंतुओ पर न करके स्वस्थ मनुष्यो पर किया । फलस्वरूप मानव के मानसिक लक्षणो तथा सब्जेक्टिव सिम्पटम का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त किया जिसके कारण रोगी के रोग लक्षणो एवं फिजिओलॉजिकल चेंजेज को स्पष्ट रूप से कोरिलेट करने में आसानी पायी साथही लक्षण समष्टि ( totality of symptom ) को ही रोग की संज्ञा मानकर उनकी चिकित्सा की गयी एवं लक्षण की संपूर्णता में स्थानांतरित कर उसकी जगह हेल्दी स्टेट बहालकर ( Restoration of health ) आरोग्यता पायी ।
 दूसरी बात यह रही की उन्होने दवाओ को पोटेनराइज़ कर क्रमश : सूक्ष्मता की ओर बढ़ने से रोग की चिकित्सा के क्रम मे दवा का प्रभाव सुगम और सरल ( Rpid and gentle , not – violent ) हआ तथा जड़ से निवारण ( erradication of total annihilation or ohhiteortion of signs without any surgical inference ) होता पाया गया ।
 हैनी मैंन साहब ने अपने जीवन मे दवाओ का पोटेंटइजान ३ , ६ , १२ , ३० , २०० , १m , 10m , 50m , cm , dm तथा mm stage तक centicimal scale मे किया गया जो quantitative by tinner होता गया जबकि एलोपैथिक दवा माइक्रोफ़ाइंड होने पर भी एनोगाड्रो की सीमामे रही अन्य होम्योपैथिक शक्तियाँ इन्फिनिट सिंपल स्केल को प्राप्त की और आरोग्य करती पायी । इन दवाओ की २०० शक्ति इंटमेडियेट पोटेंसी मापी गयी तथा प्रीवेटिव रूप मे २०० शक्ति ही प्रयोगनीय मानी गयी ।
 एलोपैथिक दवाएँ जो प्रीवेंटिव रूप में प्रयोग की गयी वह जिस मात्रा में शरीर मे गयी वह मात्रा भविष्य में स्थूल परिवर्तन लाकर सायकोसिस उत्पन्न किया ( out growth , extra – tissue formation or vegetarian create करना ) जो सर्जिकल रोग की नीव डाला । डा . जेनर साहब की चेचक की टीका का जो दूरगामी प्रभाव पड़ा , वहीं आज कैंसर की बहुलता हर स्थिति मे देखने को मिलती है जिसकी चिकित्सा हैनी मैंन महोदय ने thuja or vanolinum आदि से करके आरोग्य विद्या , आज हम होम्योपैथ कर रहे है । ऐसा होमियो प्रोफिसैक्सिस जो अन्य रोगों ( संक्रामक ) के लिए प्रचलन मे आते है वे मैसीमिटी / सीमिसस्टी के आधार पर चयनित होते है । कोलेरा मे सूक्ष्मता से देखने पर क्यूप्रमेट , कोलेरिन , कैंफाट , वेरेट्रम एलवम , आर्सेनिक स्लव , आदि लक्षण के अंतर रखते है । अतः संक्रमण की स्थिति में सर्वाधिक रोगियों में जिन लक्षण की बहलता पायी जाए और जिस एक दवा में सारे लक्षण पाए जाए वही उनकी प्रोविलेक्टिक एवं रोगी के लिए क्योरेटिव होगी ।
 चुकीं कैंफर नाम की दवा का प्रभाव G . I . T . पर है और कोरोना का प्रभाव और रेस्पिरे टारी सिस्टम पर है अत : कैंफर उसका प्रोकि लैकटिक नही हो सकता | इस सन्दर्भ में मेरे साइट पर जिन दवाओ के उल्लेख जैसे किए गये हैवाही मानक अपनाया जाना चाहिए।
 हिप्पोजेनिक डा . जे . जे . गर्भ विल्किशन द्वारा प्रस्तुत एक शक्तिशाली नोसोड दवा है जिसके अंतर्गत टी . बी . , कैंसर एवमसिफलिस के लक्षण सन्निविष्ट पाए गये है । विशेषकर रेस्पी रेटेरी आर्गन को प्रभावित करता है । नाक मुखमंडल , श्वास यंत्र के अंग मख्या रूप से इसके क्षेत्र हैं । स्वररोध , मौकियल , शब्द युग्म ( rules ) , sharp , irregular breathing खाँसी के साथ श्वास कष्ट , अत्यधिक बलगम , दम घुटना , वृदध लोग अधिक प्रभावित होते है , ब्रोकैटिस , अधिक बलगम का जमाव दम चूंटने के कारण बनता है , जो हाल की कोरोना से संक्रमित रोगियो मे स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट है ।
 म्युकोकफ्सिन कैटरैलिस ( micrococcity catterlatis ) रोगाणु से कैरिल द्वारा प्रस्तुत किया गया है । फ्रीडन लैंडर द्वारा निदेशित न्यूकोनिया के रोग जीवाणु तथा माइक्रो कोक्कह टेटरमिनियस बच्चो और बूढो के नये एवं पुराने सभी श्लेष्मा युक्त स्रको के उपयोगी पाए गये है ।
 अन्य दवाए kali bich , psorioum , bacilium चिकित्सा के काम आते है । अगर दुनिया के होम्योपैथ इन महत्वपूर्ण दवाओ पर दृष्टि डाले होते और काम मे लाते तो इट माइट है मेन्दु एवं lasting obligation ; सौरी दे आर ओवर लुकिंग के लिए कुलह एजेंटल , गौड नोज छाई दे फील सो ।
 कृपया साइट पर अवश्य देखे – 
१ . वैश्विक संक्रामक रोग ” कोरोना ” पर निर्देश
२ . कोरोना ( COVID – 19 ) के निमंत्रण एवं निदान पर सकारात्मक निदेश |
३ . On corona ( the Covid – 19 )
४ . कोरोना के विश्वव्यापी विनाशकारी प्रभाव के प्रति सुरक्षात्मक कदम की होम्योपैथिक पहल ।

 डॉ . जी भक्त

 नोट : – सामुदायिक विकास प्रखंड पट ढी बेलसर ( वैशाली ) जिला के PHC के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी द्वारा माँग करने पर सदर समर्पित ।
– लेखक

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