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 गरीबी की जिन्दगी

 डा० जी० भक्त

गरीबी की जिन्दगी , डा० जी० भक्त; life of poverty

 गरीबों की दुनियाँ आँसू द्वारा पोषित होती हैं । ऐसे गरीब सृष्टि में पैदा हुआ ही नहीं । छुद्र जीवों , विशाल जन्तुओं सहित मानव का जन्म खाली हाथ विदायी हैं प्रकृति में । लेकिन जीवन की सृष्टि के पूर्व छुद्र जन्तु एवं वनस्पति प्रकृति में पहले से ही तैयार थे जो उनके पोषक बने । उनकी जिन्दगी में एक ही तरह की आवश्यकता रही भूख मिटाने की आश्रय लेने की शीत और बरसारत से बचने की , तो सबकुछ प्रकृति ही पूरी करती रही हैं ।

 आज हम विकसित जीव के रुप में देखे पहचाने और गौरव पाने वाले मानव हैं । हमने तथा कथित विकास की लम्बी दूरी तय कर थकान अनुभव की तो आराम , सुख और सुविधा पर विचारा गया । ..तो जीवन अलग – अलग स्वरूपों में प्रकट हुआ । विविध स्वरुप विविध भाव और उसमें दिखा कहीं – कही अभाव । इसी अभाव की व्यथा को हम गरीबी कहते हैं । वरना परमेश्वर की वह निर्दयता कितनी कल्याणकारी रही कि मानव को छोड़ दुनियाँ में किसी भी जीव के लिए गरीबी शब्द नहीं ।

 यह अभाव क्या हैं ? सिर्फ मानव द्वारा सृजित हैं । आखिर गरीब उन्हीं अभावों में जी ही रहे हैं । अभावग्रस्त है , सुख अनुभव नही कर पाते , … क्योंकि उन्होंने उतनी सुविधाएँ नही जुटायी । आज की सरकारें जनता के बीच सुविधाएँ पड़ोसते पीछे नही पड़ रही , किन्तु गरीब कभी उपर उठना चाहते हैं ।

 कुत्तें , बिल्लियाँ , लील गायें स्वतंत्र हैं किसी के घर किसी की खेत का उपयोग कर सकते हैं । हमारी कृपा भी उन पर हैं । किन्तु कोई मनुष्य का बच्चा तो मेरे घर आकर कोई वस्तु उठाकर ले जायें , .. ..तो देखिए नजारा क्या क्या हो जायें ।

 यहाँ छिपी हैं गरीबी और उसका कारण भी मानव की चेतना ने अपनी पहचान खो दी दूसरों में अपनो को नही झांका । पूरे भूमण्डल , भूगर्भ सागर और अन्तरिक्ष पर कब्जा । इतना ही नहीं , उसने अपने को सीमित कर ली , जिसका नाम उन्होंने विकास रेखा सुरक्षा ( भय से बचाव के लिए ) सीमा बन्दी कर ली । अस्त्र – शस्त्रादि जुटाये । नीन्द नहीं आती टेन्सन बना रहता है । बी ० पी ० उपर चढ़ रही । भय बना है कि दीनता की कराह कहीं उन्हें तवाह करें ।

 ….लेकिन यह तो अपराध होगा , किसी पर आक्रमण करना / आखिर कानून तो है न । न्यायालय है , थाने है , जेल हैं , फाँसी तक तो क्या इससे गरीबी मिट पायेगी ? कभी नहीं । ऐसा हुआ है , न होगा । कानून समता नहीं ला सकता । और न भय का रोग घटा सकता सुख और ऐस्वर्य की ओर से मन को अलग कर संतोष को स्वीकार करना ही पड़ेगी । यह ऐसी दवा है जो दोनों के लिए लाभकारी साबित होगी ।

 आज धरती पर गुण और अवगुण दोनों का साम्राज्य हैं । सबकी महत्त्वाकांक्षा सीमा पर करना चाहती है । अपने – अपने क्षेत्र में वह मुखर ही नहीं , प्रखर हो चला हैं । अपने – अपने अस्तित्त्व की लड़ाई लड़ने पर उद्यत हैं । यहाँ पर ग्राम स्वरज्य की स्थापना चिन्ताजनक हो रही हैं ।

 यह अस्तित्त्व बाद कोरोना -19 का वाइरस है । इसकी दवा किसी को सूझ नहीं रही , वैक्सिन ( रामवाण वैक्सिन ) की खोज चल रही नीति में प्रीति का साथ चाहिए । एक निर्भय का वातावरण तैयार करना होगा । आखिर इतना विकास के बावजूद विश्व कोरोना पर विजय क्यों नहीं पा रहा , यह भी एक गरीबी है ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में ।

गरीबी की जिन्दगी , डा० जी० भक्त; life of poverty

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