चिंता देह को जलाती है आत्मा को नहीं
कोरोना वाइरस क्या लिविंग बॉडी है या नन – लिविंग अथवा आर्टिफिशियल ?
अगर आपने ऐसा प्रश्न रखा है तो यह स्वाभाविक भी लगता है और प्रासंगिक भी । ऐसी प्रांति पूर्ण स्थिति विश्व में पहले से व्याप्त है । इराक का युद्ध जो अमेरिका लड़ा था उसके पीछे यह बात प्रचलित थी की जैविक अस्त्र इराक के पास है । पाया तो नहीं गया । उसकी समाप्ति हो गयी किंत् न जैविक अस्त्र का प्रयोग हुआ न अमेरिका को वैसा कुछ प्राप्त हुआ | तथापि , कालक्रम में ऐसे समाचार एवम उसके घातक प्रयोग की खबरें सामने आती रही और इसे अबतक भांति के रूप में जाना जाता रहा | परवर्ती घटनाओं का क्रम कुछ ऐसा सोचने को बढ़ी करता है की राजनैतिक या महत्वाकांक्षी लक्ष्य लेकर सामाज्यवादी भाव रखने वाले राष्ट्र की करतूत हो सकती है । घटनाक्रम घड़ी की सुई की तरफ इंगित करता है ।
जरा सोचिए , धन्यवाद या अभिशाप क्या है ? अगर हम इसको प्रभावकारी स्वीकार करते हैं तो ये दोनो सकारात्मक एवम् नकारात्मक मिशा में हमारी मनोभावनाओं के प्रक्षेप है । मन , वचन और कर्म के नकारात्मक भाव वशीकरण , मारन , उद्वेषन , उच्चाटन वाकमर्गी कलाप का भी युग अपना इतिहास रखता है ।
आज हम देख रहे हैं की भारत के राजनेतागण इस कोरोना के खौफ़ से बचने के लिए दुक्क्की सजग , सचेष्ट और संवेदना पूर्ण दिख रहे हैं | मानवतावादी दृष्टिकोण हए देश के नागरिकों की सुरक्षा , सहयता , आरोग्यता की दिशा में अधिक ध्यान देना जैसे मानवतावादी प्रयास कर रहे है । उदार बने हैं । कदाचित् कोई कह सकता है की वे इस सेवा का राजनैतिक लाभ उठाने का लक्ष्य रखकर कर रहे हैं । चाहे जो हो , कर तो रहे हैं । आज उनका सोचना जनकल्याण की चिंता है । कल भले ही वे इसका लाभ उठा लें । इसमें जनता का भी कर्तव्य निहित होगा | आज तो लोग कोरोना को निष्फल करने हेतु लॉक डाउन और संपर्क से दूरी रखने का प्रयास कर रहे हैं तो कुछ वर्ग इसी अवसर पर अपने लाभ की बात पूरी करने में लगे हैं । मुनाफा कमाने में जुटे हैं । लूटने में जुटे हैं । शोषण कर रहे हैं ।
कोरोना दवारा देश को रुलाना एक मामला है , कोरोना की जंग में भ्रष्टाचार का भंग पीकर और भी कष्टकारक समस्याएँ बढ़ाना एक बड़ी रुदन पीड़ा कर रही | जब हमारे ही आचरण हमारे हित के बाधक बन रहे तो ऐसी मानवता का पतन अवश्य ही निश्चित है , समाचार का सह कल ऐसा सूचित किया की इसके 100 दिनों की यात्रा में 210 देश इसकी चपेट एन आए | महाविनाश का यह नंगा नृत्य इतना धृष्ट होगा ।
आखिर बड़ी शक्तियों को इसके लिए सोचना पड़ा , किंतु वे इसे कृत्रिम वायरस नहीं बताए | कारण स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया की इस वाइरस कोरोना में प्राकृतिक वाइरस के बैकबोन हैं अगर कृत्रिम होता तो उसकी संरचना मूलत : ऐसा नहीं होता | उल्लेखनीय है की वाइरस के होस्ट अबतक छोटे या अन्य प्रकार के जीव होते रहे जिनके शरीर में वाइरस का पोषण हुआ करता और उनके वंश या संपर्क से मानव जाति संक्रमित हआ करती थी । यहा तो मानव के संपर्क से ही मानव को भुक्तभोगी बनना पड़ रहा है । ये सारे संक्रमित व्यक्ति आयातित ही पाए गये जो प्रवासी थे । अबतक का सच यही है । हालिया परिदृश्य यह रहा की जिन मुस्लिम समुदाय ने अपने धर्म सभा का लक्ष्य लेकर भारत आए और शरण ली वैसे ही देशी या परदेशी जान उसके मुख्या वाहक और प्रभावित पाए गये | उन्ही का परिवार इसके चपेट मे आए |
जब हमारे व्यवहार मे छद्म अनहोनी के प्रमाण निहीत पाए गये तो अब अन्य प्रमाण क्या और कहा खोजा जाए | तीर्थों और धर्मो को पवन मानकर ही अबतक उसे गौरवान्वित माना गया जहा मुक्ति के मार्गदर्शक मिलते थे , अगर हम वैसे स्थलों को विप्पति का प्रचारक प्रसारक के रूप मे पाए तो उसे क्यों ना दोषी ठहराया जाए और सुनियोजित षडयंत्र का प्रतीक समझा जाए । दनिया देख रही है फिर प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या ? दैविक या स्वनिर्मित काया का बाज़ार बना यह परिदृश्य चिंता का बीज वपन करता है । एक तो वैज्ञानिक नही सामान्य लोग ठहरे । समाचार हमारा ज्ञान स्रोत है । भय हमारा रोग है भ्रांति मे हम जीते है । इस दुनिया में इंसान ठगा जाता है । इन कठिनाइयों और कष्तो का इतिहास अबतक यह बतलाता रहा कि दुषित माया का जाल फैलाकर मानव कभी अपना उल्लू सीधा करने से बाज नहीं आया । हमारी संस्कृति सदा से साक्ष्य बनकर सदा से साहस दिलाती रही कि सत्य की जीत होती है , और असत्य मार्ग पर चलने वालो का अंततः पतन होता ही है ।
धूल और धूप कभी वातावरण के वाष्प से मिलकर बादल बना सूर्य को छिपाते देखा है किंतु वही जलवर्षा कर मानवता को सिंचता भी है | हर दुस्तर घटनाएँ मानवता को झकझोड़ कर सीख देती है कि अपनी समस्याओ के निदान का विधान खोजे | खोज के भूल और प्रयास का चकाचौंध तो हमे विचलित करता है किंतु उसी से उत्तम मार्ग के चिन्ह अपनी झाँकी प्रस्तुत कर ही देते है और हम युगांतकारी सिद्ध होते है । इतना ही मानकर चलिए कि मानवता जो हर पल सत्यमेव जयते का स्वर गूंजीत करती हमारी संस्कृति रूप अमरता का संदेशवाहक बनी , उसे वायरस भार भयावह तो लगेगा किंतु उसका निष्फल होना नियती है । ” मनएव मनुष्यनों कारणांम मोक्षवधयो ” फिर वेदना अनुभव होने पर ही औषधि याद आती है । आशा साहस जुटाती है तो अमोघ शक्ति का सृजन ही संबल बनाता है ।
नोट : मैं माना कि prevailing infection प्राकृतिक ही है । तो वह living body है ( microorganism ) आज वैज्ञानिक ( microbiologies or genetic engineer ) चाहे तो अपने लैब मे ऐसा genetic matafior impose या induce कर सकते है जो उसके कार्यकलाप के खास प्रकार के परिवर्तन ला सके | उसका functioning control virologist के technology में निहित हो । ये मेरे अपने विचार है ।
– डा . जी . भक्त
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