चेतन जीवन से सृष्टि की अपेक्षाएँ
डा ० जी ० भक्त
सृष्टिकर्ता के अनुसार हमारा अनुमान है कि चेतन सृष्टि के पीछे कुछ न कुछ सकारात्मक सोच जरुर रहा होगा कि उससे महत्तर श्रेय की उपलब्धि सम्भव हो । इस तरह सबसे बाद में मानव जैसे चेतन प्राणि का धरती पर अविर्भाव हुआ जो एक सामाजिक लक्ष्य लेकर जीने वाला सिद्ध हुआ । इतना ही नही उसन सभ्यता और संस्कृति खड़ी की और आज सृष्टि का शिरमौड़ साबित हुआ ।
मानव जीवन की भूमिका में आज हमें कुछ ऐसे पहलुओं पर ध्यान जाता है जो मानव जीवन के साथ सकारण जड़ चुके हैं । उपदाहरण के लिए हमारा ध्यान कृषि पर जाता है । पशुपालन तथा अन्य जैव संसाधन भी इससे जुड़े पाये जाते हैं । मानव के हितार्थ हम विकाश के जिन उद्देश्यों पर विचार करेंगे , उन क्षेत्रों में हमे बढ़ना आवश्यक होगा । ये मानव जीवन के पूरक विधान है , साथ ही हमारे उच्चतर लक्ष्यों के प्रतिफलन में उनका भी योगदान जुटता है । फिर शिक्षा स्वास्थ्य , पोषण और कल्याण कार्य को भी इसका श्रेय बनता है । विकास की अपेक्षाएँ मानवीय उत्कर्ष पर ही निर्भर है अतः आने वाली पीढ़ियों के लिए भविष्य की सम्भावनाएँ सतत मानव से अपेक्षाएँ रखेगी , जिनकी कल्पना हम आज कर सकते है । उदाहरण स्वरूप हम आज के परिवेश पर ध्यान दे तो जमीन के टुकड़ों में बटने , बनो के कटन , यातायात के साधनों को बढ़ाने , उर्जा के प्राकृतिक साधनों में कभी आने प्रदूषण के साथ प्रकृति पर लगातार पड़ने वाले प्रभावों से उत्पन्न मानवीय समस्याएँ तथा सामाजिक , आर्थिक , स्वास्थ्य , खाद्य , पोषण और संरक्षण भी प्रमुखतया इन चिन्तनों को प्रेरित करते रहते हैं । यह जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं , समाज का हर क्षेत्र भौगोलिक , भूगर्भाय अंतरिक्ष एवं सागर तक को विचार क्षेत्र में लेकर चलना , उन पर शोध और प्रयोग , परीक्षण और उत्पादन वितरण तक की जिम्मेदारी मानव पर जाता है ।
एवदर्थ मानव का अतीत और वर्तमान के सापेक्ष दृष्टि डालकर भविष्य का आकलन योजना निर्माण और उपादानों की उपलब्धता के साथ उत्पादन का वैकल्पिक निदान भी आवश्यक है । इसके लिए भावी पीढ़ी को लक्ष्य कर हमें अपने मानस को उत्कर्ष और कौशल पर अत्याधुनिक चिंतन पारंभ कर देना चाहिए ।