Thu. Dec 26th, 2024

 ज्ञान तो वरदान है ही , किन्तु विज्ञान अभिशाप भी है । विज्ञान पर सर्वथा निर्भरता आवश्यक नहीं ।

 ( डा ० जी ० भक्त )

 अबतक ज्ञान और विज्ञान मानवीय चेतना की पहुँच मात्र है । इसे हम सर्वथ शास्वतर नहीं मानते । वेद ( आगम निगम ) भी ज्ञान के अनन्त एवं शास्वतत ज्ञान रुप में स्वीकार किया जा चुका है । तथापि इसे ऋषियों द्वारा भी कहा गया है कि न वेद ही प्रा माणिक है और न ऋषि ही प्रमाणित हैं । इसके दो करण बतलाये गये हैं :-

 ( 1 ) वेदों की रचना उस काल में हुयी जब तक विश्व में लेखन कला का विकास नहीं हुआ था , यह श्रुत ( सुना गया ) ज्ञान का संकलन माना गया है ।

 ( 2 ) न यह किसी ऋषि के द्वारा प्रमाणित है । वैदिक काल के सुविख्यात 19 ऋषियों के नाम आते है । अबतक वेद की मान्यता अक्षुण्ण रही है ।

 विज्ञान प्रकृति के रहस्यों का उन्मोचन है । अद्यतन विज्ञान द्वारा जगत में जो स्वरुप का विस्तार हुआ है उसमें कृत्रिमता है । सृष्टि जैसी कुछ नहीं । विज्ञान समृद्धि दे पायी किन्तु गरीबी नहीं । मिटायी । अगर गरीबों की कमाई बढ़ी , तब भी वे स्वावलम्बी नहीं बन पायें , क्योंकि उपभोक्तावादी जीवन की लालसा में उनकी कमाई उद्योगपतियों की झोली में गयी ।

 चिकितसा विज्ञान ( Alopathy ) जो अपने को पूर्ण वैज्ञानिक विधान करार देती है वह आरोग्यकारी नहीं । रोग को मात्र आराम पहुँचाने भर की चिकित्सा है । दवाओं का दूरगामी दुष्प्रभाव भी देखा जाता है । संक्रमण रोका जाता है , कालान्तर में घातक रोग पैदा करते हैं । इतना पर भी यह चिकित्सा गरीबों के वश की बात नहीं , यह भी सत्य है कि देश की आवादी अनुसार सरकार अबतक सुविधा नहीं प्रदान कर पायी है । भले ही उन सरकारी चिकित्सकों द्वारा निजी क्लिनिक में उनसे अधिक खर्च पर चिकित्सा की जाती है ।

 हाल में कोरोना के संक्रमण मे जो विश्व व्यापी रुप ले रुप ले रखा उसमें यह व्यवस्था घुटने टेक दी । कहा कि न बचाव की दवा आरोग्य करने की ।

 जन दवाओं द्वारा इनसे कोरोना का इलाज किया जा रहा है वह राम के नाम पर क्योंकि वे दवाएँ उनके ही शब्दों में विवादित रही है एवं दुष्प्रभाव लाने वाली । इनकी जाँच प्रक्रिया में भी , शिकायते सुनी गयी हैं लाभ से अधिक मृत्यु की संख्या रही , विदेशों में तो विनाशकारी प्रभाव दिखा ।

 भारत में कोरोना का प्रभाव अपेक्षाकृत बहुत कम रहा । सामाजिक रुप से संक्रमण नही पाया गया । सिर्फ बाहरी सम्पर्क से ही प्रभावित दिखा । संक्रमितों में मृत्यु दर कम होने का विशिष्ट कारण भारतीय जीवन शैली आयुर्वेदिक औषधीय पदार्थो का प्रभाव , योग और देहाती नुश्खों के प्रयोग के साथ अन्य हिदायते लाभकारी रहीं । आयुर्वेद में पातंजलि के रामदेव बाबा होमियोपैथी की सेवा करने का अवसर नही दे पायी । यह स्थिति विश्व भर में रही । छिट – पुटरुप में यह सुना गया कि व्यक्तिगत रुप में कुछ आयुष के नाम पर अथवा निजी तौर पर मनमाने ढंग से दवा खिलायी गयी । सरकारी तौर पर न इसकी घोषणा हुयी , न कोई प्रतिक्रिया हुयी । सुनने में आया कि प्रधान मंत्री जी ने आयुष के तीन घटकों के प्रतिनिधियों

को बुलाकर स्वास्थ्य विभाग के सचिों के साथ कोरोना के संबंध में जो विमर्श हुआ उसमें कोई भूमिका उनकी न पायी गयी । बाद में जहाँ – जहाँ आयुष के चिकित्सक नियुक्त पाये गये वहाँ से उनकी भूमिका पूछी गयी , जिसमें सुना कि कुछ भी जानकारी न मिली । उल्लेखनीय है कि सरकार , जैसा समझ आ रहा है इन्हें आयोग्य समझ कर उदासीन रह गयी । लेकिन मैं तो सकारात्मक रुप से एवं पारदर्शिता के साथ वेवसाइट पर भी , तथा मोदी जी से ( प्रधानमंत्री जी के साथ भी ) जुड़ा तो पूछा तो पूछा गया कि आप क्या मदद चाहते हैं ?

 कल लेकर उन से निवेदित किया कि CCRH के डायरेक्टर महोदय द्वारा होमियोपैथी की हिप्पोजेनियम दवा का रपरीक्षण कोरोना के लिए प्रिवेन्टिव और क्योरेटिव दोनों भूमिका में कर के सफल पाये तो उसका प्रयोग करना उपयुक्त निरापद और सुगम होगा । आज भी मैं उसे चला रहा हूँ । मैंने देश और दुनिया के होमियोपैथिक चिकित्सकों को सुझाव दिया है कि उसका विधिवत प्रयोग किया जाय ।

 मेरा पुनः यही निवेदन है कि होमियोपैथी विश्व स्तर पर अपनी आरोग्यकारी चिकित्सा के लिए निरापद सिद्ध है , उसे प्रयोग में अवश्य लाया जाय एवं पुनः प्रभावी इस संक्रमण के निवारण में अपनी भूमिका से विश्व का कल्याण करें । सरकार का भी यह कर्त्तव्य बनता है कि विषव परिस्थिति में उपलब्ध एजेन्सी से अवश्य ही सेवा ली जाय , खासकर उन परिस्थितियों में , जब प्रमुख व्यवस्था कामयाब न पायी जा रही हो ।

 यही ध्यान देने की बात है कि चिकित्सा शास्त्र के इतिहास में आयुर्वेद को लेकर भारत का गौरव आज भी कमजोर नहीं पड़ा है जबकि सरकार न जाने क्यों इस गौरव की अनसूनी करती आ रही है । उसी तरह इतिहास के उन पन्नों पर भी दृष्टि दौड़ाये जहाँ एलोपैथिक चिकित्सा के प्रतिष्ठित डॉक्टर और लेखक आविष्कारक डा ० हनिमैन ने अपनी पैथी को निरापद न मानकर 15 वर्षों तक चिकित्सा छोड़ कर निरापद एवं आरोग्यकारी पद्धति की खोज प्रारंभ की ओर सुल होकर ऐसा कुछ महत्त्वपूर्ण कर पाये कि बड़ी संख्या में बे से बड़े एलोपैथ अपनी सर्टिफिकेट लौटाकर होमियोपैथी का गौरव बढ़ा या । भारत को इस पर गौर करना चाहिए कि बंगाल के डा ० महेन्द्र लाल सरकार और डा ० राजेन्द्र नाथ दत्त भारत के प्रथम दो एलोपैथ ने अपनी डिग्री लौटाई और होमियोपैथ बने । आज जो कोरोना के भय से अथवा अपनी योग्यता को कमतर मानकर होमियोपैथी की मर्यादा बढ़ाने में अपने को पीछे रखने जा रहे , उनसे हनिमैन और होमियोपैथी की मार्यादा घटने वाली नहीं है ।

 मैं चुनौती पूर्वक देश के सामने अपना निजी पक्ष रखते हुए इस संघर्ष में आगे खड़ा होना चाहता हूँ । मैं आयुष की ओर से अपने प्रखण्ड की स्वास्थ्य समिति का सदस्य होने के नाते अपनी देश भक्ति का संकल्प लेकर होमियोपैथी द्वारा अपनी सेवा कोरोना के निवारण में अर्पित करूँगा । सरकार अनुमति दे एवं CCRH से इसके प्रति विमर्श करने की कृपा करें ।

डा ० जी ० भक्त D.M.S ( Hons )

Regd . No. – 15210 Patna 1968 .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *