भाग-3 धर्म एवं अध्यात्म
81. धार्मिक विचारों और सम्प्रदायों का उदय सामाजिक व्यवस्था और विषमता के कारण हुआ , विभेदक स्थितियों से जो सामाजिक जीवन में दुराव और उपेक्षा की स्थिति आयी तो विचारधारा में परिवर्तन हुआ । खासकर हिन्दु धर्म में मतोंवादों , पंथों , सम्प्रदायों की भरमार पायी गयी , लेकिन सबके अतिरिक्त धार्मिक सहनशीलता और एकता को भी भारतीय हिन्दु स्वीकार करते हैं । यहाँ तक कि सिख धर्म को भी विशाल हिन्दु – सम्प्रदाय का अंग ही माना गया ।
82. आज तीर्थों , देवालयों , धार्मिक संगठनों से धर्म का ( सदाचार का ) पलायन होते देखा जा रहा है साथ ही उनके सारे कुत्सित व्यापार धर्म की ओर में चल रहे हैं ।
83. आज जरुरत है मानव को फिर से धर्म की वास्तविकता को समझने की , अध्यात्म अपनाने की और अष्टांगयोग की प्राथमिक शिक्षा को जीवन में उतारने की । मानव धर्म एक ही होना चाहिए ।
84. शिक्षा में योग को स्थान देने की बात चली , कदम उठा , किन्तु उस पर ध्यान नहीं दिया गया तब तक देश में भ्रष्टाचार और अनेक असामाजिक आचरण जोर पकड़ लिया ।
85. आज मानव का अंतिम लक्ष्य विज्ञान को समृद्ध बनाना है । लेकिन वह संघातक है । हर क्षेत्र और हर दिशा में वह मानवता की सीमा लांघकर प्रकृति में असंतुलन लाने का कार्य कर रहा है और दूसरी ओर पर्यावरण पर चिन्ता व्यक्त कर समाज पर उसकी जिम्मेदारी थोप रहा है ।
86. अतः विश्व समुदाय को विज्ञान के संघातक पहलू को नियंत्रित करने एवं मानव की सोच को अध्यात्मपरक बनाकर जनकल्याण के मार्ग को प्रशस्त करने की आवश्यकता है ।
87. विज्ञान अपनी संज्ञा के अनुरुप प्रकृति के अन्तिम रहस्य को जानना चाहता है , किन्तु उसे समझना चाहिए कि किसी भी अस्तित्त्वधारी की अंतिम परिणति शून्य ही है ।
88. शून्य शांति का प्रतीक है तो विनाश का भी । शून्य मुक्तिदायक हो तो शान्तिप्रद होगा अगर शून्यता क्षोभ कारक है तो दुःखद होगी ।
89. विज्ञान को समृद्धि के साथ शांति का प्रवर्तक , समर्थक , संरक्षक एवं उन्नायक होना चाहिए क्योंकि उसके पास ज्ञान और शक्ति दोनों का संबल प्राप्त है ।
90. विश्व शांति का संस्थापक अध्यात्म ही हो सकता है विज्ञान और पर्यावरण नहीं ।
91. हमारा खगोलीय और अंतरिक्ष अभियान जितना ग्रहान्तरीय या अन्तर्ग्रहीय असंतुलन , प्रदूषण और रेडियोधर्मी कचरों का संक्रमण उत्पन्न कर रहा है वह धरती के लिए भारी खतरा है ।
92. हमारी नैतिकता और एकता अक्षुण्ण रहे इसके लिए हमारा मानव धर्म और अध्यात्म जितना सहायक है उतना नआर्थिक समृद्धि , न विज्ञान और न राजनीति ।
93. हमें सर्व प्रथम धरती के अस्तित्त्व को बचाने की जरुरत अंतरिक्ष के अभियानों से ज्यादा महत्त्व रखता है ।
94. धर्म और अध्यात्म संयम सिखलाता है , विनाश से बचाता है ।
95. अपने 99 भ्राताओं और कलिंग के संहार के बाद चंडाशोक जब शांति और दया का धर्म अपनाया तो उसने कहा- “ प्राणिनां संभ्यहम ” ।
96. हमारी अद्यतन जानकारी तक में भूमंडल पर जैविक सृष्टि में मानवी सृष्टि की महत्ता अपना अस्तित्त्व रखती है । उसकी सुरक्षा भी मानव की ही जिम्मेदारी है जो प्रेम और दया से सम्भव है परमाणु या जैविक हथियारों से नहीं ।
97. जीवन में धर्म और अध्यात्म का प्रतिफलन सुखीजीवन की पहचान है । यह अमरता का संदेश देता है ।
98. दैहिक , दैविक और भौतिक तीनों प्रकार के कष्टों को घटाने वाला वही है ।
99. धर्म ही मानवता का संरक्षक है ।
100. विश्व का कोई चिंतक बताये कि मानवता के रक्षार्थ उसने क्या सोचा है अबतक ?