प्रश्नों का बौछार कदापि अपराध नहीं
डा ० जी ० भक्त
सदा से मानव विचार एवं चिन्तनों के बल पर ही बढ़ा है इसे भूलना नहीं चाहिए । जब समाज विषम परिस्थितियों से गुजड़ता हो तो वैचारिक उथल – पुथल उठते हैं । प्रश्नों में प्रखरता और उदात्तता आ सकती है किन्तु ध्यान विषय वस्तु पर ही केन्द्रित होना चाहिए । समग्र प्रश्नों को एकत्र चिन्तन में लेना प्रथमतया अनिवार्य है । निदान पहले , प्रतिक्रिया बाद में ।
हाँ , समय सापेक्ष प्रश्नकर्ता या विचारक से सत्य की जानकारी न होने से भूल सम्भव है तो उसे हम सुधारात्मक अपील से समाधान कर सकते है । सच्चाई से परे बनावटी बिन्दुओं पर जन मानस , समाज , और देश को चिन्ता में डालना समय के अपच्य के साथ विकास का बाधक होगा ।
कोरोना की विभीषिका की प्रचण्डता , मारात्मकता , क्रमिक उछाल और कालान्तर में इसकी धातक सम्भावनाओं की खबरें आज सामान्य के बजाये दिग्भ्रमित और भयभीत करने वाली तो है ही , जिसके कारण सम्भव है सन्दिग्ध खबरें या गलत अनुमान जब सामान्य की ओर से समाज को प्रभावित करता हो तो वह धरातल पर जाँच कर सुधारने का प्रथम तया विषय बनता है ताकि सत्य – असत्य की सही जानकारी के पश्चात कदम उठाया जाय या सच्चा संदेश साझा किया जाय । पर उल्लेखनीय है कि विपत्ति के समय किसी के द्वारा उलझन पैदा करना सर्वथा चिन्ता जनक होगा । इस पर विश्व को विचारना जरुरी है ।
सर्वविदित है कि कोरोना विश्व व्यापी है । प्राण नाशक एवं कई प्रकार से मानवता पर खतरा ला रहा है । भारत भी छोटा देश नही जहाँ लगभग डेढ़ अरब की आवादी मानी जा रही है । जितनी विविधताएँ उतनी विषदाएँ और व्याथाएँ सता रही है , देश परेशान है तो जनता भी जोखिम झेल रही है । समस्या सुधरती है तो फिर गहराने लगती है । पूरी आवादी आर्थिक रुप से सक्षम नहीं है । यहाँ पर यह उल्लेख करना उचित नहीं कि किस प्रकार आज देश और यहाँ की जनता अनाचार और दुराचार से किस तरह प्रभावित है , उसे समूल पता लगाने और सकारण समाज से मिटाये बिना क्या कोरोना पर विजय सम्भव लगता है । जहाँ तक सबका साथ जरुरी है , तो कौन इसमें विपुलता और समृद्धतया सम्वल लेकर खड़ा है जो साथ दे । जहाँ एक ओर जनता दान का अनाज उठाने वाला है वहीं उसे महँगाई काला बाजारी , मिलावट ,, जमाखोरी से उत्पन्न दुख – दर्द झेलना पड़ रहा है , वहाँ हम किसे अपराधी कहें । जब हम कोरोना के खिलाफ जंग जीतने में जुड़े है , वहाँ क्या हमारे जनता से जूझना फलदायक होगा ।
हमारा कर्त्तव्य बनता है कि देश को जागृत और इमानदार बनाए । युग धर्म लायें । मानवता को मजबूती दें , देश को स्वावलम्बी बनाएँ , तब देश में शान्ति सद्भाव और सद्विचार आयेगा । हम लॉक डाउन में है । तब चोरी , डकैती , व्यभिचार , शराब का धन्धा आदि असामाजिक गतिविधियाँ क्या कोरोना के जंग में बाधा नही डाल रहे ।
जब तक देश में नकारात्मक गति विधियाँ फलती रहेगी , सुख – चैन तो दूर , जीव और जीवन से खतरा खत्म करना कठिन होगा ही । आखिर समस्या एक हो तब तो सुधरे । आज भी देश कोरोना को दबाना ही चाह रहा है जो मात्र एक विकल्प है , वह भी पूरा नही है । दवा पर खोज नहीं हुआ , उचित इलाज के अभाव में अमर संक्रमण से मुक्ति और भारी पड़ेगी ।