Thu. May 15th, 2025

बारामूला बारदात एवं भारत

साम्राज्यवाद की लहर, आत्मीयता पर कहर, दोनो के लिए जहर।

मानव पर रजोगण का प्रभाव उसे महत्त्वाकांक्षी बना दता हैं। विकास की स्वेच्छा उसे समृद्धि दिलाती है। सुख के संसाधन और आराम का जीवन जब उसे सन्तुष्टि नहीं दिला पाती ता जीवनोत्कर्ष को लालसा उत्कट रूप लेती है। स्वार्थपरता, कल, वल, छल और मनोबल में घृष्टता धारण कर वह अपनी महत्वाकाक्षा की सीमा पार कर राजसता पर हावी बनता और सन्ता की दृढ़ता के हेतु संग्रह, संरक्षण और सुरक्षा का संबल प्राप्त करना ही उसका लक्ष्य होता हैं।

अब तक “हम” के भाव में जहाँ समाज को देखता और उसमें अपने को झाँकता था। अपना समाज मानकर उससे आत्मीचता का लाभ लेता था उस “हम” को “अहं” म भुला अपनी सत्ता शक्ति में झाँकना शुरू करता है। अगर सता पाकर महत्त्वकांक्षा की भावना को जनाकांक्षा की पूर्ति में झाँकता तो जनता में आत्मीकयता बनी रहती। लेकिन, स्वार्थी महत्त्वाकांक्षा तो उसे हिटलर बना डालती है। अब उसको महत्त्वकांक्षा पर खलल कभी सह्य नहीं, सत्ता की भौतिक शक्ति उसे आध्यात्मिक प्रीति में प्रतीति निभा नहीं पाता तो पड़ोसी उसे कंटक-सा दीखता है, उसपर कहर बनकर छा जाता है। ……. प्रम में जहर घोलना कैसे विश्व शांति की कामल क्रांति अव भ्रान्ति में डालती है। शान्ति पथ का राही जो निर्भीक वन में विचरण करता, वह डंडे जुटाने में जुड़ता है। अब सुख का सौरभ आराम की मादंकता भी नही भोग पाता, वह जहर का प्याला घोलने में जा जुटा।

हाय नेहरू !!, हाय खश्चेव !!, हाय कैनेडी !!, हाय, यु० एन० ओ०, हाय पंचशील !!, हाय शिमला समझौता !!, हाय ताशकन्द वार्त्ता !! हमने दखा 1962. 1971, आज देख रहे 2025! हे बापू! तू कहाँ गये।

डा० जी० भक्त

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