प्रभाग-02 बाल काण्ड रामचरितमानस
बालकाण्ड में वर्णित मललाचरण का विस्तार व्यापक है । खूबी है कि अपनी वन्दना के क्रम में स्वाभी – जीने सचराचर जगत को समन्वित रुप में उनके गुणगान , प्रभाव , संबंध और महत्त्व से परिचित कराया है जो एक साथ ज्ञान प्रद एवं जीवन से जुड़े रहस्य के प्रतिपादक बने , ग्राह्य एवं अनुकरणीय है । उनकी महानता के एक और पक्ष है कि डनहोंने पहले ही उन्हें व्यष्टि और समष्टि रुप में राम मय अर्थात सृष्टि में व्याप्त राम तत्त्व के परख का स्वामित्व सुझाया है । अर्थात हमे उस तत्व को जानने के लिए ईश्वर भक्ति अपनाना , सृष्टि से प्रेम भाव से जुड़ना , दोनों ही भग्वद प्रेम है । इस तथ्य को नाम एवं रुप के साथ गुण एवं आत्म लाभ से जोड़कर देखा और दिखलाने का ही प्रयास तुलसी दास जी द्वारा राम कथा के गायन था प्रस्तुतीकरण का प्रधान श्रेय दिखता है । एतद्विषयक प्रकरण का सविस्तार निरुपन , निर्धारण और व्यक्तिकरण उनकी महती कार्य योजना रही । विषयों की श्रृंखला का विन्यास और विस्तार मंगलाचरण से गुरु वन्दना , ब्राह्मण वंदना , संत वन्दना प्रभति प्रभाग 4 से प्रारंभ होकर जो बालकाण्ड में प्रस्तुति पाकर प्रभाग 15 तक रामचरित मानस सटीक मोटे टाइप के पृष्ठ 55 पर्यन्त अवलोकनीय एवं अवधार्य है । यथा परिशिष्टांक देखें ।