बेवसाइट के पटल पर डॉ 0 जी 0 भक्त
साहिव्यिक रचनाधर्मिता एवं लेखन कला में विषयों का प्रवाह मात्र नहीं , भावनाओं का संगम सिद्ध करने में डॉ 0 जी 0 भक्त को लेखनी में प्रस्फुट शब्दावखियों की भलक , अभिव्यक्ति की स्पष्टता , भावों का व्यक्तिकरण और ज्ञान की बोध गभ्यता पाठकों के लिए प्रभावकारी है । एक कुंद काया की मंद कान्ति , सीधासादा जीवन में चिन्तन और मनन की प्रगादता , विषय समास को समेटे ज्ञान में प्राय भर रहे है जो निष्प्राण हो रहे थे । यह है लक्ष्य इनका ।
सत्तर के दशक में पहुँचने तक इन्होंने जो समज में देखा , सुना , पाया , समझा , संजोय और सँवारा उसे आज विश्व के पटल पर लाते पाये जा रहे हैं । घर के कमजोर किसान परिवार में जन्में , पले , मेघा , संयम और अनुशासन के पगें , बालकपन में भी उनमें सम्भावनाओं की आहट सुनाई पड़ती थी । इनका स्कूली जीवन विलक्षण रहा । अधिकतर ज्ञान का साधन स्वाध्याय ही रहा । होमियोपैथी की डिप्लोमा ही इनकी शिक्षा का श्रेय बना किन्तु शिक्षण के प्रति इनका रुझान और लगाव एक विशिष्ट व्यसन रहा , जिसे चिकित्सीय जीवन में भी रुचिवनी रही । ज्ञान के प्रति रुढ़ि मान्यता की जगह शोध और प्रयोग के पक्षपाती रहे । चिकित्सा कार्य में उनकी गहरी पैठ उन्हें वैश्विक घरातल पर 1976 से ही उत्कृष्ट मंच दिलाया पाये पाँच वार के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्तव पाया चिकित्सा को इन्होंने अर्थागम का स्रोत नहीं सेवा का लक्षय माना ।
सम्प्रति कोविद -19 की वैश्विक विपदा में अब विश्व इसका निदान नहीं निकाल पाया , उसके विधान में होमियोपैथी के गहन अवगाहन से जो उन्हें सकारात्मकता की झलक मिली है उस पर उनका सविश्वास पिल पड़ना उस जंग का सक्रिय नेवृक्ष – सा लग रहा है , जहाँ वैज्ञानिकता की कसौटी पर उतारने का उनका प्रयास है वहाँ कल्पना की डोर पर पतंग उड़ाये जा रहे ।
डॉ ० जी भक्त होमियोपैथी में अपनी गहरी सोच , सफल निदान एवं स्थायी आरोग्य के पक्ष घर है तो इसे इनके मानस में आरोग्य के साथ स्वास्थ्य के संरक्षण सहित जीवन के उच्चतर लक्ष्यों की प्राप्ति का भी लक्ष्य लेकर चलने वाले हैं ।
इनके हृदय में स्वस्थ सुशिक्षित एवं समृद्ध समाज की रुप रेखा निर्माण की कल्पना है ।
कामये दुख तपानां प्राणिनामार्तनाशये । वहुआयामी दिशा में पैठ की प्रखरता ही इनकी लेखनी की आत्मा है ।