ब्राह्मी शक्ति का आहान , परमात्म भाव , और जन – कल्याण का विधान – निधान ही मुक्ति का साधन बनता है ।
मुक्ति का अर्थ कदाचित मृत्यु नहीं मानना चाहिए , न बलात आत्मा का शरीर से विच्छेद हीं । हमें जीवन में इस लक्ष्य को समझना अनिवार्य होगा । सृष्टि अथवा जन्म लेने का उद्देश्य जानना होगा फिर ब्राह्मी शक्ति को जगाकर जीवन जीना और परिवेश के साथ अपना लक्ष्य पूर्ण करते हुए परमात्म भाव से संबंध निभाते हुए जनकल्याण का विधान सोचते हुए सृष्टि के कण – कण में उस सत्ता से साक्षात करते हुए प्रकृति से सात्म्य बनाये रखना ही जन्म कीसार्थकता पूरी करनी चाहिए । यही विश्व प्रेम का प्रतिफलन और जीवन की जिम्मेदारी पूर्ण करना पूर्णता का प्रमाण या जीवन से मुक्ति मानी जा सकती है । जीवन या सृष्टि का लक्ष्य अथवा जीवन में मानव का कर्त्तव्य या शास्वत जीवन पथ यही हो सकता है फिर भी हम मुक्त होते नहीं , यह तो जीवन पथ के उस पड़ाव पर पहुँचना है जहाँ से उस लोक के प्रवेश होगा । वही जीवन रुपी दिनचर्या की गोधूलि होगी , जहाँ जाकर कोई अबतक लौटता नहीं पाया गया । यही नैसर्गिक – यात्रा है प्रभु से मिलन का । इसी को इटर्निटी कहते है । जिन्हें जीवन काल में ऐसा आभास हो जाता है , वे ही जीवन मुक्त या ब्रह्मलीन माने जाते हैं ।