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भाग-1 मनुष्य का सामाजिक जीवनादर्श

 1. अगर हम मानव समाज को शरीर की संज्ञा दे तो विविध जातियों के समूह को उसके अंग विशेष , परिवार उसके तन्तु तथा व्यक्ति उसकी जीवन्त कोशिकाएँ माना जायेगा ।

 2. समाज का एक – एक व्यक्ति सामाजिक दायित्त्व की पूर्ति में संलग्न पाया जाता है जबकि समान विचार और कार्य प्रणाली के पारिवारिक समूह अलग – अलग अपनी पहचान भी रखते हैं ।

 3. हर समूह की जीविका श्रम पर निर्भर होते हुए उसकी कार्य शैली उसके उपादानों के अनुकूल और अनुरुप दीखती है जिसे पेशा कहते हैं ।

 4. हर पेशा प्रकृत्या जातिगत होती है किन्तु श्रमिक वर्ग सब में अपना सहयोग करते हैं ।

 5. श्रमिक , श्रमजिवी और शेष पेशेवर समाज अपनी पेशा के अनुसार अपनी पहचान पाते हैं , कृषक , पशुपालक , शिल्पकार और अन्य विशेष सेवा कर्मी जाति के नाम से जाने जाते हैं ।

 6. हर जाति की अपनी संस्कृति , अपना विधान , अपनी जीवन शैली , अपना आहार – व्यवहाररश्म – रिवाज सामान्य रूप से एकता किन्तु खास क्षेत्र में भिन्नता दर्शाते हुए सामाजिक जीवन में एक दूसरे के पूरक और उनके संबंधों में भाईचारा ही फलित होता है ।

 7. समान सांस्कृतिक जीवन और विचारधारा वाले इस संबंध को जातीय या विरादरी की संज्ञा देते हैं । उनमें शादी विवाह अपनी ही विरादरी में होता है ।

 8. भारतीय समाज में वंश परम्परा ही उनकी निजता के प्रमाण हैं । उनके जातीय उपनामों में प्रायः समानता पायी जाती है ।

 9. ऐतिहासिक तौर पर उपरोक्त गुणों में फेर – बदल की संस्कृति उपजी । धर्मान्तरा , आजीविका और स्वेच्छया भी जातीय स्वरुप में बदलाव आये । आज भी ये परम्परायें सर उठाती रहती हैं ।

 10. सामाजिक जीवन में प्रवास , साहचर्य एवं विविध परिस्थितियाँ ज्यादातर प्रभावित करती रहीं ।

 11. आर्थिक और शैक्षिक उत्कर्ष पाकर समाज में अपेक्षित बदलाव आया , साथ ही उनकी जीवन शैली भी विकास के समानान्तर बढ़ती पायी गयी ।

 12. सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक , धार्मिक , सांस्कृतिक , कला , साहित्य , विज्ञान , उद्योग , व्यवसाय आदि की प्रगति ने मानवीय कल्पना की उड़ान को तीव्रता प्रदान की तो समृद्धि भी हाथ आयी ।

 13. फलतः समाज का स्वरुप निखरा , खान – पान , आवास , वेश – भूषा शिक्षण , जीवन शैली और बौद्धिक विकास के साथ रुढ़िवादिता , अंधविश्वास और मानसिक गुलामी से मानव बाहर निकलने में कुछ कदम अग्रसर हुआ । वैज्ञानिक युग का चमत्कार मानव में नव चेतना भर दिया । यातायात के साधन और यांत्रिकरण मानव में पंख लगा दिये । शहरीकरण , औद्योगीकरण अब समाज के स्वरुप को वैज्ञानिक रंग – रुप में सजा दिया ।

 14. आज हमारा समाज वह पुराना गाँव न रहा , वह शहरों से सीधा सम्पर्क रख रहा है।

  15. आज का समाज जो उन्नत ग्रामीण जीवन जी रहा है उसमें राजनैतिक चेतना भी जगी है । स्वायत्तशासी क्षेत्रों में उसकी सहभागिता , नियोजन , और प्रतिनिधित्त्व उसे राष्ट्रीय जीवन के प्रवाह से जोड़ रखा है ।

 16. विडम्बना है कि इस आर्थिक उत्क्रमण का श्रेय पूँजीवाद और उपभोक्तावाद को ही मिल रहा है ।

 17. राजनैतिक खेल अन्तर्राष्ट्रीय उत्तेजना बढ़ा रहा है ।

 18. विकासशील देश उनके पच्चर में फंस रह हैं वैश्विक अर्थशास्त्र कमजोर पड़ रहा है ।

 19. पूँजी और वित्त का ध्रुवीकरण हो रहा है ।

 20. प्रगति , समृद्धि और शान्ति का पहल निरर्थक भूमिका में दिख रही है । समस्याओं का समाधान राजनैतिक लाभ का महत्त्वाकांक्षी फंडा है ।

 21. विश्व समुदाय में दीर्घकालीन चिन्ता व्याप्त है ।

 22. आतंकवाद या भ्रष्टाचार के मूल एक ही है ।

 23. इस संक्रमण से जितनी सामाजिक क्षति हो रही है , राष्ट्रीय समस्या उसी की आनुपातिक स्थिति में जा रही है ।

 24. भोग और प्रभाव की भंगिमा से प्रभावित नेतृत्त्व एक सुव्यवस्थित क्षेत्र का निर्माण कर चुका है उसकी अनन्त अभिलाषा और महत्त्वाकांक्षा की होड़ ने जन आकांक्षाओं को रौंद रखा है ।

 25. शास्त्र और संस्कृति अब मंच पर सिंकुड़ कर बैठ चुके है ।

 26. न्याय नीति सुरक्षात्मक नहीं , भ्रम फैलाने वाली है ।

 27. धरती से जुड़े उत्पादकों को भुलावे में डालकर उनका शोषण किया जा रहा है ।

 28. गणतंत्र का गणित अर्थतंत्र को प्रभावित करता है ।

 29. नीतियाँ और चुनौतियाँ एक ही धरातल पर कार्य कर रही है , तो समाज किधर जाय ?

 30. धार्मिक , न्यायिक और कार्मिक क्षेत्र अपनी नैतिकता खो चुका ।

 31. सुरक्षात्मक राजनीति का ही एक रुप सेक्युलरिज्म ( धर्म निरपेक्षता ) है । मानव को पहचान नहीं रहा । मानवता उसाँसे भरी रही है । इमानदार ठगे जा रहे है । मैं चुप हूँ । लोग देख रहे हैं । अवसरवादी घात लगाये झांक रहे है । सुविधा परस्त उत्सव मना रहे है । अफसर शाही में मौज मस्ती है । नयी पीढ़ी को विटामिन्स की गोलियाँ और पोषाहार । सत्ता की शब्दावली में संसद सर्वोच्च है ।

 32. सर्वहारा वर्ग सुगवुगाना चाहता है । कितनी भूल कर रहा है । अनुभव नहीं है । वह अनशन – धरना जैसी घटना घटाकर अपना भविष्य बिगाड़ रहा है । सरकार मूर्ख है जब बाहर निकलते है तो आँसू गैस और डंडे उसके साथ होते हैं ।

 33. महात्मा गाँधी की अहिंसा अब न चलेगी । उनके आदर्श जब काँग्रेसी तक टुकड़ा चुके तो अब क्या सोचना ?

 34 यह रहस्य मयी बात है । गाँधी जी के पास एक ताबीज थी । उसका नाम था गीता । एक था डंडा , जो चलाते नही थे , किन्तु पास रखते थे कि अहिंसा विफल हो तो उसका प्रयोग करें । वह तावीज जो गाँधी जी को मिली थी वह व्यास की लिखित महाभारत नाटक के डायरेक्टर कृष्णा के हाथ में था जिसका 18 पन्ना कैसे – न – कैसे कुरुक्षेत्र में गिर गया जो अर्जुन को हाथ लगी ।

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