Thu. Dec 26th, 2024

 मानव जीवन में सकारात्मक क्या और क्या नहीं

 इस छोटे से जीवन में अबतक जो देख सुन और समझ पाया हूँ , बहुत थोड़ा है । सृष्टि अगम अपार है । सकल पृथ्वी पर तीन भाग जल और एक ही भाग स्थल में सात महादेश और पाँच महासागर बतायें गये । उन्हीं महासागरों में समायी धरती में महाद्वीप , प्रायद्वीप एवं द्वीप स्थित है जिन पर मिट्टी , नदी , पर्वत , जीव और वनस्पति दीख रहे । विश्व की सृष्टि से ऊपर विस्तृत आकाश में सूरज , चन्द्रमा , नक्षत्र , तारे , नीहारिकाएँ और आकाश गंगा आदि प्रकाशित है । धरती के ऊपर हवा , हवा में हिलती वृक्ष की पत्तियाँ , उड़ते पंक्षी , और बिखड़े बादल , गरजते मेघ , बरसते पानी के प्रवाह के बीच बिजली की कौंध और वन के आघात और प्रपात , भय आश्चर्य और सुखद आभास में बीतता जीवन , निस्सीम आकाश , लहरों का आवेग में ज्वार – भाटे , प्रकृति की विविधता , विराटता और परिदृश्य की अपरिमित घटनाएँ मन मानस को प्रेरित करते हैं । सृष्टि आती है , जाती है जीवन चलता रहता है । मात्र अनुभव , आयु , काल में विलीन और सृष्टि अशास्वत । मूल – भ्रम में लिपटा ज्ञान , प्रवृत्तियों का खेल , नातों और ममता , स्वार्थ , संग्रह , संघर्ष के तमाशे , हर्ष कम , सुख – दुख के झोंके , जो आते और विलीन होते पाये जाते है । जीवन और मरण के बीच , विविध ख्यालों , यादों , मनोभावों की अपार श्रृंखलायें इतिहास बनकर झाँक रही , हम इसे भूत वर्तमान और भविष्य कहकर अपने को अपने पैरों से नापते बढ़ते जा रहे हैं । रास्ते चलते हमें राही मिल जाते है किन्तु सच्चे साथी नही मिल पाते ।

 जमाना लद गया । सुना – सत्ययुग , त्रेता और द्वापर के सत्य , प्रण और प्रेम के पहले राजमहलों को भी झकझोड़ डाले । उन्हें भी अपार कष्ट सहने पड़े । …… किन्तु कष्ट सहकर उन सबों ने एक आदर्श निरुपित किया । वह मार्ग बना पर हम ? हम उस मार्ग पर राही नही बन पाये । हम अगर उस मार्ग को स्वीकार करना आपका कर्म माने तो हम उस मार्ग के साथी बन सकते है । आदर्शो की स्वीकृति और कर्म में आस्था स्थापित हो तो मार्ग प्रशस्त बन सकता है । जिस मार्ग पर कर्म को समर्थन प्राप्त हो वह आदर्श है । उसमें सकारात्मकता है । समर्थन है । एकता है समरसता भी है ।

 मतभेदों की साया में आदर्शों को भुलाना नकारात्मक सूझ है । गणतांत्रिक व्यवस्था में दल बहुल राजनीति में साफ झलक मिलती है कि समाज अवश्य ही किन्हीं नकारात्मक सोच से प्रभावित है अथवा उलझा हुआ एकता और समरसता खोकर सत्य प्रेम और प्रण से परे सन्मार्ग ( संविधान सम्मत ) खो रहा है । हम जो समाने देख रहे हैं वही सब कुछ नही . जो सुन रहे हैं वही सत्य नहीं , जिसे अबतक लोग सुनते आये है भी भूत में विलीन हो गये , केवल स्मृति शेष है । हम उनके आदशों को प्रेरक के रुप में अगर लेना चाहे ता समाज उसे पीछे ही छोड़ना चाहता है । आज के ज्ञानी वर्तमान को ही बरतना अपना दृष्टिकोण बना डाले हैं । ” महाजनों येण गतः स पन्थाः ” । अन्यच्य- ” गते शोके न कर्त्तव्य , भविष्यं नैव चिन्तयेत .। वर्तमानेन कालेन वर्त्तयन्ति विचक्षणा । “

 ” -विचक्षणाः ” जिनकी दृष्टि विशेष सूझ रखती है- उनका कथन ऐसा है । अगर उन नेत्र पर चश्मा लग जाय तो और स्मार्ट सूझ उपजेगी । जब उच्च ताप ( फीवर बुखार ) में रोगी दुराव , और भूल भरी बातें बोलता है तो उसे , चिकित्सक की जरुरत नड़ती है । वैसे ही सोच को सुधारने हेतु जागरुकता जगाने की जरुरत है । सामाजिक सरोकार वी चेतना के साथ जो मार्ग अपनायेगा , वही राजनीति का मूलमंत्र बनेगा और नेतृत्व का अधिकारी साबित होगा । यही युगा बोध बनेगा । यही युग धर्म होगा ।

 ( डा ० जी ० भक्त )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *