राजनीति वह नही जो देश को दुर्बल बनाए
डा. जी. भक्त
अविवेक पूर्ण सोच से उपजा निर्णय, आत्मतुष्टि का लक्ष्य लेकर उठा कदम, आर्थिक कीमत चुका कर सक्रिय राजनीति में प्रवेश घोषणा पत्रों में छपे वादे को जन आकाक्षाओं की अहमियत से जोड़ न पाना कभी भी जनतंत्र की रीढ़ को तोड़ सकता है।
देश का सांस्कृतिक गौरव हम जो दर्शाता हो, किन्तु आज का परिदृश्य मानवता से जुड़े पहलुओं पर कितना सकारात्मक है, इसे देखते हुए ही जन नेतृत्व हेतु कदम उठे। हमारे पूर्व के बरिष्ठ राष्ट्र नायकों ने जो साम्वैधानिक पथ निर्माण किया, जब तक हम अपने आप में विश्वस्त होकर नेतृत्व के निर्णय पर न विचारे और उसके अनुकूल और अनुरूप व्यवस्था न पायें तो देश भक्ति का नारा विफल सिद्ध होगा। ऐसे प्रयत्नां से न मतदात्ता का कल्याण होगा न जनतंत्र को मजबूती मिल पायेगी ।
आपके सामने स्वतंत्र भारत के बीते चुनावो क परिणाम परिवेश, प्रतिफल, प्रतिक्रियाएँ, विकास और क्रमागत राजनैतिक शुचिता का पारदर्शी इतिहास प्रत्यक्षतः आपको इंगित करेगा कि हम किधर जायें, क्या मार्ग हो हमारा, और कैसी दिशा हम दिला पाये देश को, यही युग बोध बनेगा आपके लिए उसपर ही आपको युगधर्म की दिशा निर्धारित हो पायेगी।
ये भाई जरा देख के चलो, आगे ही नहीं, पीछे भी सच्चा, सुलभ, न्याय संगत नेतृत्त्व जो सुखद, उन्नत, स्थायी और प्रगत परिवेश से जुड़ा हो हमारा जनतंत्र ।
Thanks!