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भाग-3 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श

 77. आंतरिक और बाहरी आतंकों से भी घिरा है । सत्ता में अस्थिरता व्याप्त है । राजनैतिक दलों ने अपना आदर्श और दायित्त्व खोया है । सरकार में भय और चिन्ता व्याप्त है । जन आकांक्षाओं को सम्मान नहीं मिल रहा है । इस पैशाचिक आर्थिक विषमता को पाटने का कोई अनूठा कार्य क्रम नही दिखता ।

 78. यह जन या गण का तंत्र नहीं , धनतंत्र , बलतंत्र और षड़यंत्र ( भ्रष्ट ) तंत्र है । आवश्यक है कि हम अपनी खोयी संस्कृति को फिर से सामाजिक धरातल पर लायें ।

 79. जबतक देश की आर्थिक विषमता में कभी नहीं आती या महंगायी से लड़ने लायक आय क्षमता नही आती , तब तक ऐसे समुदाय को सादगी अपनाकर गरीबी पर विजय पाने का प्रयास करना चाहिए । अनुदान पर जीने की आदत त्यागनी चाहिए । स्वावलंबन अपनाना होगा ।

 80. भारत हमारा देश है । हमारी राष्ट्रीयता सच्ची भारतीयता होगी । हमारे नेताओं और नागरिकों को देश भक्त होना चाहिए ।

 81. जन और गण से उपर उसका मन पवित्र होना आवश्यक है जिससे समाज में एकता फलित होती है । सागदी , स्वातंत्र्य , सेवा मंत्र है । भारती , भारत , भरत ये तंत्र हैं । तन , बचन , मन ये अनोखे यंत्र है । जो इन्हें भूले वही परतंत्र है ।। उपयुक्त नौ ही राष्ट्र निर्माण के तीन – तीन यंत्र मंत्र और तंत्र हैं ।

 82. व्यक्त्विों और कीर्तित्त्वों के वैश्वीकारण में काम आने वाले कारकों में चिंतन की व्यापकता , वैश्विक परिवेश की प्राथमिकता और उसका भविष्य मुख्य हैं ।

 83. सामाजिक और भौगोलिक परिस्थितियाँ भी कम महत्त्व नहीं रखती ।

 84. लोचकता , नितान्तता और ग्राह्ययतोसर्वोपरि स्थान रखेगी ।

 85. विश्व के बहुतेरे सामाजिक , राजनैतिक एवं सांस्कृतिक विचारक उपरोक्त के साथ संतुलन स्थापित न होने से शास्वतता , स्थायित्त्व या जन समर्थन न पा सके । महात्मा बुद्ध के विचारों में नूतनता का अभास रहा । महावीर की अहिंसा अविवादित थी । तथा महात्मा गाँधी की अहिंसा को अपनी व्यावहारिकता में सबका समर्थन सहज रुप से मान्य रहा ।

 86. पूँजीवादी व्यवस्था में मार्क्स का चिन्तन उत्कृष्ट होते हुए भी अल्पमत में गया हालाकि औसत विचार और बँटे विचार सामाजिक परिस्थितियों के कारण मान्य भी होते हैं ।

 87. जो स्वार्थ के गलिचारे से सुख का सपना संजोय जुड़े हुए अपना बहुमूल्य समय गुजार रहे हैं वे कभी भी अच्छे संस्कार और गुण नहीं पा सकते ।

 88. उन्हें सर्वप्रथम इसे स्वीकार करना चाहिए । फिर धीरे – धीरे अमल में लाना चाहिए ।

 89. हम यही नहीं करते कि अपनी संलग्नता से संबंध विच्छेक कर सड़क पर आ जायें बल्कि धीरे – धीरे अपने में परिवर्तन लाने का प्रयास करें ।

 90. मानव के लिए वैश्विक धरातल की ऊँचाई पाने के ये ही मार्ग हैं ।

 91. महात्मा गाँधी के विचार से मनुष्य को सद्गुणों का अभ्यासी होना चाहिए ।

 92. हम जहाँ हैं , वहीं हमारा , परिवार , समाज और विश्व भी उसे अपना प्रतिनिधित्त्व कर रहा है । उसे खोजने कही जाना नहीं हैं ।

 93. हमारी वैश्विक यात्रा की शुरुआत यही से होगी ।

 94. समय का प्रवाह और हमारा प्रयास हमें चोटी पर ले जाने में सफल होगी ही , ऐसा विश्वास जमना चाहिए ।

 95. जीवन एक मौसम है । उसमें विविध फसलें उगायी जा सकती हैं । सिंचने पर विकसित होगा । फूले – फलेगा और अपने लक्ष्य का पोषण करेगा ।

 96. अनपढ़ कबीर वैश्विक बने । वैसे असंख्य उदाहरण विविध क्षेत्रों में । मिलेंगे जो बिल्कुल साधारण श्रेखी में आते थे । अपने विचार और कर्मों के कारण असाधारण बन गये ।

 97 राजनीति के वैश्विक दौड़ में आज आतंकवाद की समाप्ति और विश्व शान्ति की स्थापना अहम स्थान रखती है । इसके लिए राष्ट्रों के बीच मतैक्य और सहभागिता अनिर्वाय होगी ।

 98. बीज कितना छोटा होता है किन्तु उससे कितना विशाल वृक्षा तैयार होता है और अनंन्त फल लगते है ।

 99. हमें किसी भी छोटी शुरुआत से लज्जित और उदास नहीं होना चाहिए ।

 100. भारत का तो आदि चिन्तन ही वैश्विक आधार पर टिका था । उसने मानव मात्र क्या , चराचर जीव जगत के प्रति प्रेम का प्रकाश फैलाया जो अनेक रुपों में मानव हृदय में विराजमान है ।

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