भाग-2 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श
36. जहाँ की हवा में जीवन के स्पन्दन है ।
37. जहाँ की नदियों में जागरण के गीत है ।
38. जहाँ का प्रमात सूर्य की रशिम के अवतरण के साथ नये संकल्प का संदेश देता है ।
39. जहाँ की गोधूलि जीवन के दर्शन प्रस्तुत करती है ।
40. जहाँ पर आकर विश्व के पर्यटक इस भूमि के रजकण को नमन और शिरोधार्य करते हैं ।
41. भारत की लगातार 1200 वर्षों की गुलामी भी सराहनीय रही , जिससे विश्व बहुत कुछ सीखा , पाया और प्रभावित हुआ । भारत को अपना निवास के साथ निर्याण स्थल बनाया ।
42. भारत धर्म प्रधान होते हुए भी धर्म निरपेक्ष है । यहाँ धार्मिक कट्टटरता नही , सर्व धर्म समानत्त्व की मर्यादा प्राप्त है । सभी धर्मों के मूल में विश्व प्रेम की महिमा गायी गयी है ।
43. हमारे आदर्श इतने पचनशील है , ग्राह्य और सम्माननीय है कि इसके प्रति विश्व की आस्था आध्यात्मिक गरिमा प्रदान करती है ।
44. हम कृतार्थ हैं अपने अतीत और उनके उन्नायकों से जो हमें आज भी बरवस याद आते हैं।
45. आज के विकट और संकटापन्न स्थिति में हमारा वही आदर्श पाथेय बनेगा । जिसे हमने भुलाया है वही हमारा उद्धारक होगा ।
46. हम से दो भूलें हुयी है , हम समृद्धि अगर पाये तो सुख भोगी बने हैं ।
47. जनसंख्या वृद्धि के साथ आनुपातिक प्रगति नही कर पाये हैं ।
48. आलस्य और शोषण के शिकार हुए है ।
49. आर्थिक विषमता के शिकार बनकर उपेक्षित रहे ।
50. गुलामी ने हमें गलत दिशा और प्रवाह प्रदान की ।
51. इस तरह हमारा स्वर्ण युग हम से हाथ छुड़ा लिया ।
52. यूरोप सोलहवीं शताब्दी के बाद औद्योगिक क्रान्ति और वैज्ञानिक आविष्कार से समृद्ध बना ।
53. विश्व को अपना बाजार बनाया । उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की स्थापना हुयी । विडम्बना है कि 200 वर्षों के बाद ही पतन होने लगा ।
54. दो – दो विश्व युद्ध झेलने पड़े । विनाश ओर कर्ज का तांडव देखा गया । परमाणु प्रयोग का विध्शक परिणाम भी । 55. यूरोप का भौतिक उदय तो 16 वीं शताब्दी के साथ हुआ परन्तु उत्तर मध्य युग का इतिहास भारत के उत्कर्ष का स्वर्ण युग कहलाया ।
56. विश्व इसे ललचायी आँखों से देखा । दुश्मनों ने लूटा लेकिन हमारी संस्कृति को भी सीखा ।
57. हम देकर भी खुश है , वे लेकर भी असन्तुष्ट ।
58. हमारे देश की प्रभुता में दान प्रवृति पराकाष्ठा रखती है । देवता धरती पर दान लेने पहुँचते थे ।
59. भारतीय आदर्शों के समक्ष स्वर्ग को बार – बार झुकना पड़ा । “ स्वर्गदपि गरीयसि ” भारत की अस्मिता रही ।
60. रामायण और महाभारत काल में भी भारत का विज्ञान ( सामरिक शक्ति ) और सम्पर्क वैश्विक रहा । पुराणों में जिसकी कथा चर्चित है ।
61. हाँ तब भी हमारे धन और धरोहर की क्षति हुयी थी । आज भी हो रही है ।
62 , भारत धर्म प्रधान , सदैव अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाला , विश्व प्रेम को प्रतिष्ठा देने वाला रहा । उसका युद्ध सुरक्षात्मक था , आक्रामक भूपिका नही ।
63 , हमारे व्यवहार सदा आदर्शात्मक रहे ।
” परित्राणाप च साधनां , विनाशाय च दुष्कृितां ,
धर्म संस्थापनार्थाय , सम्भवामि युगे युगे । “
64. – ” न मे कामये राज्यं न स्वर्ग न पुनर्भवम । कामये दुख तत्प्तानां प्राणिनामार्त्त नाशये ।।
65. लेकिन आज हमारी विपन्नता के कारण उससे भिन्न हैं ।
66. अंग्रेजी सत्ता में भारत अपनी गुलामी के अंतिम दौड़ में था । उन्होंने हमारी संस्कृति पर ही हमला किया । मानसिक परंत्रता के हम शिकार बने । वही शिक्षा आज हम पर छायी हुयी है ।
67. हमने मानवीयता को पीछे छोड़ा है । आज हम पर लूट और वैमनस्य का राक्षस सवार है ।
68. जो अंग्रेजों के मददगार बने , हो वे ही हमारे महाप्रभु बने ।
69. सत्ता उन्हीं के हाथों गयी । अन्तर इतना ही कि वे परदेशी थे , ये स्वदेशी हैं ।
70. आज भी हम भली प्रकार सोच नही पा रहे । अंधकार में भटक रहे हैं । वृक्ष , मिट्टी , पहाड़ और छुद्र जीवों की पूजा करते हैं । घर के पाता – पिता वृद्ध जन , रोगी , विधवा लाचार विक्लांग तथा विपन्न पड़ोसी उपेक्षित , असुरक्षित अपमानित और असंतुष्ट हैं ।
71. नारी को शोषण , उत्पीड़न , अपमान , असुरक्षा और हिंसा झेलनी पड़ रही है , उन्हें न उचित न्याय मिल रहा न अधिकार ।
72. राजनीति राष्ट्र धर्म नहीं शोषण का विधान और भुलावे का कार्य बन गयी है । सत्ता अपनी गरिमा खोकर मात्र सुरक्षात्मक भूमिका में लगी है ।
73. जन – जागृति जनतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है ।
74. शिक्षा को सकारात्मक दिशा देकर तथा नागरिकों के मानवीय मूल्यों की स्थापना का प्रयास कर हम नैतिक , अनुशासित और दायित्व पूर्ण व्यवस्था कायम कर सकते हैं ।
75. यह विषय खास रुप से भारत के लिए ही विचारणीय नही है आज के युग की वैश्विक विचारधारा का यही मूल तत्त्व है । इससे दूर हटकर हम मानवता के साथ अन्याय ही करेंगे ।
76. दूसरी ओर हमारा राष्ट्रीय परिवेश गिरावट के चक्र में पल रहा है । सामाजिक आर्थिक , नैतिक और राजनैतिक सभी दिशाओं से लांक्षित है ।
77. आंतरिक और बाहरी आतंकों से भी घिरा है । सत्ता में अस्थिरता व्याप्त है । राजनैतिक दलों ने अपना आदर्श और दायित्त्व खोया है । सरकार में भय और चिन्ता व्याप्त है । जन…..
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