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भाग-1 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श

 1. आज मानव की सिर्फ स्थानीय ग्रामीण या सामाजिक भूमिका ही नहीं है , बल्कि वह उससे भी आगे पाँव बढ़ा चुका है ।

 2. उसे अब राष्ट्र तक ही सीमित नहीं मानना है । वह विदेश में भी अपनी जीविका अर्जन कर रहा है और वहाँ की घटनाओं से स्वयं एवं परिवार को भी प्रभावित पा रहा है ।

 3. आज हमारा जीवन कुछ ऐसे आयामों से जुड़ चुका है जो वैश्विक स्तर को अपना क्षेत्र बना रखा है साथ ही वह हमें भी समेट रखा है ।

 4. दूर – संचार अंतरिक्ष अभियान , पर्यावरण , स्वास्थ्य एवं चिकित्सा पर्यटन और टेक्नोलॉजी हमारा प्रमुख रुप से अंग बन चुका है ।

 5. हमारी मौलिक आवश्यकताएँ भी वैश्विक अपेक्षा रखती है , जैसे- कृषि तकनीक और उसकी अघतन खोज , पशुपालन , डेरी उद्योग तथा विकसित जैव उत्पाद एवं उनके स्त्रोत , ऊर्जा तथा परमाणु शक्ति ।

 6. राष्ट्रीय विकास की आज की भूमिका में वैश्विक अपेक्षाएँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी न किसी रूप में हमें स्वीकार करना होगा ।

 7. किसी भी राष्ट्र को सामरिक क्षेत्र में , राष्ट्रीय संबंधों में , जन अपेक्षओं की पूर्ति में , कूटनीतिक प्रयासों में , विश्व व्यापार की ओर अग्रसर होने में , वैश्विक धरातल पर उतरना अनिवार्य होगा ।

 8. हमारा आध्यात्मिक क्षेत्र भी वैश्विक क्षेत्र को चिरकाल से प्रभावित किया है तथा सहयोग पाया है । साथ ही विश्व को भी बहुत कुछ दिया है ।

 9. अशोक , महावीर , महात्मा बुद्ध और विवेकानन्द वैसे ही विभूमियों में से हुए हैं ।

 10. कपिल , कपाद , आर्यभट्ट वराह मिहिर आदि वैश्विक पटल पर तेजोपूर्ण नक्षत्र है ।

 11. नालंदा तक्षशिलादि ने विश्व को ज्ञान दान दिया और सम्मान पाया ।

 12. गंगा , सिन्धु , ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ , हिमपर्वत , विन्ध्यगिरि यागसी , सिकयांग , मिसिसिपी , नील और वोल्गा आदि नदियाँ अपने में संस्कृति का बीज पाल रखी थी ।

 13. मानव अपनी सभ्यता संस्कृति की दौड़ में जो काल गुजारा उसके साथ उसके कई वांछित सांगठनिक स्वरुप निखर आये । परिवार समाज और राष्ट्र उसके ही प्रतिफल हैं ।

 14. राष्ट्र और विश्व एक दूसरे से भिन्न कुछ नहीं , सिर्फ राष्ट्रों के समूह , भावनाओं के प्रतिफलन और उपलब्धियों के विस्तार मात्र है । सब में मानव ही परिलक्षित है ।

 15 , इस प्रकार मानव की विकसित और भिन्न पहचान बन पायी ।

 16. हमारी राष्ट्रीय प्रगति का सर्वांडीन उत्कर्ष जब पटल पर आता है तो विश्व उसे ध्यान पूर्वक अपनी दृष्टि में लेता , सोचता और अपनाता है ।

 17. फिर शिक्षा , कला , मनोरंजन आदि ने मानव सभ्यता और संस्कृति में अपूर्व योगदान कर इसे सामाजिक स्तर से सजाया – संवारा और सुखद बनाया ।

 18. अबतक की यात्रा में मानव की आवादी भी कम न रही ।

 19. प्रागैतिहासिक काल के बाद , पूर्व वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल के सापेक्ष अध्ययन से हम अबतक धार्मिक इतिहास को सतयुग , त्रेता और द्वापर की काल गणना और वैज्ञानिक मानयतानुसार मानव की कालगणना में भले ही अन्तर या विरोधाभास दिखे किन्तु हमें यह तो स्वीकार करना ही है कि आवादी के विकास और मानव जीवन में विकास के उत्क्रमित स्वरुप क्रमिक उपलब्धियों का वृत्तांत प्रस्तुत करते हैं ।

 20. जीवन यापन की कला , उसका विज्ञान रश्म – रिवाज शादी विवाह , ज्ञान , भक्ति , धर्म , देव – ईश्वर , वेद – वेदान्त , युद्ध और शान्ति के प्रयास , सभ्यता और संस्कृति के उत्कर्ष में , ( 21 ) मानव , उसकी इन्द्रियाँ , उसका मानस बुद्धि , विवेक , आस्था , अनुभूति एवं रचना धर्मिता में ( 22 ) उसकी रजोगुणी , सतोगुणी एवं तमोगुणी प्रवृत्तियाँ , अस्मिता , महत्त्वाकांक्षा , प्रतिस्पर्धा , हेतु ( लक्ष्य ) श्रेय , तथा आत्मतुष्टि में मस्तिष्क की चेतन वृत्ति का ही उद्घाटन है ।

 23. हमारी सृजनात्मक भूमिका धरती पर ही नहीं , इसके दिगन्तर भी आज नहीं , अति प्राचीन काल से देखी – जानी जा रही है जिनके अनेको प्रमाण हैं । कल्पना या परीकथा नहीं ।

 24. पौराणिक कथा में , देवता , ऋषि , तपस्वी , तीर्थ , मंदिर आश्रम , शिलालेख , मौलिक लिपियाँ ग्रंथ , लपत्र पर लिखित ग्रंथ , ज्योतिषीय , वेधशालायें , मानव जीवन के उत्कर्ष को दर्शाने वाले ऐसे धरोहर है , जो मानव की अमर कृति की चिरमरणीय गाथा प्रस्तुत करते हैं ।

 25. हमारे अतीत और वर्तमान की प्रस्तुति का तुलनात्मक चित्रण भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि मानव चिरकाल से अपनी पहचान में राष्ट्रीय से इतर भी वैश्विक परिवेश में जीवन यापन किया है ।

 26. मोहेन्जोदरो , हड़प्पा , वैशाली , मेसोपोटामिया , मिश्र और इन्द्रप्रस्थ अपनी पुरानी सभ्यता का आलेख प्रस्तुत कर रहे हैं ।

 27. भारत और विश्व के आश्चर्य जनक साक्ष्य आज विदेशी पर्यटकों को लुभा रहे हैं ।

 28. भारत के प्राकृतिक दृश्य , वहाँ की छटा , जीवन और सौन्दर्य मन को मोह रहे हैं।

 29. सिकन्दर को रोकने वाला सतलज का तट , उसके गुरु सुकरात को प्रभावित करने वाला गंगाजल और भारत का ब्राह्मण कैसा ऐतिहासिक सत्य है जो ज्ञान और पवित्रता का वखान करता है ।

 30. भारत का वैश्विक धरोहर किसी एक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नही करता बल्कि बहुतेरे क्षेत्रों में विश्व के चिन्तन को प्रभावित किया है और करता रहेगा ।

 31. गाँधी , टैगोर , इसामसीह , हजरत मुहम्मद , जरथुस्त्र , सुकरात , रस्किन , डा ० सन्यात सेन , मुस्तफा कमाल पासा , एवं गोर्की , मंडेला अदि वैश्विक पुरुष रहे है जिन्होंने आधुनिक विश्व को विकास की चेतना से सरावोर किया ।

 32. हमारा भारतीय परिवेश विश्व में चतुर्दिक अपना ध्वज लहराया है । इसमें भारतीय आदर्शो की पराकाष्ठा रही है ।

 33. जहाँ की धरती रत्नों से भरी – पड़ी है ।

 35. जहाँ की मिट्टी में सुगन्ध की दिव्यता और गुणवत्ता है ।

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