Thu. Apr 18th, 2024

वर्तमान भारतीय परिवेश में संस्कृति की झलक और नारी का स्थान

डा. जी. भक्त

यह एक दृष्टि कोण मात्र है कि परिवेश संस्कृति को प्रभावित की है और नारी भी परिवेश से प्रभावित हुई है । दोनों में से हम किसी को दोषी नहीं मानते । परिवेश काल से प्रभावित है । संस्कृति का एक सुगठित इतिहास है जो अमर है । काल की गोद में पलते पोषित होते हम परिवेश से प्रभावित हो यह कोई गलती या गलत कदम नही है । हमारा विचार वैभव संस्कृति के साथ सकारात्मक सम्बधा को स्वीकारता है तो चेतन मानव मानवीयता को त्यागना नही चाहेगा । एक भटकाव हो सकता है । भूल हो सकती है । अगर शिक्षा जीवन के मूल्यों का समर्थन करती है तो मानवाचार में आये बदलाव को हमारा विवेक सकारात्मक पथ पर अवश्य ही ले जायेगा , संस्कृति अक्षुण्य रहेगी ।

हमारी सभ्यता के वाह्य पथ विचलित कर भी पाये तो अन्तः करण में द्वंद्व अवश्य छिड़ेगा और सत्संगति उसे परिमार्जित अवश्य कर लेगी । हम अपने अतीत को जाने , समझे , परख और विचारें कि श्रेय फल किसमें सम्भव है । महापुरूषों की वाणो शास्त्र और ईश्वर में विश्वास रखकर अपने कर्म पथ पर बढ़ते चलें । मैं हर प्रकार से नारीगया के हितार्थ जो आज कदम उठा है अबसर मिल रहा है , किसी भी परिस्थिति में ग्राह्य है । समय सापेक्ष आत्म निर्णय के साथ आत्म विश्वास रखकर बढ़ना फलदायी होगा । मन में विविधा को स्थान न देने और कर्त्तव्य पथ पर ईश्वर पर भरोसा कर निःसकोचबढ़ ।

पश्चात्य सभ्यताएँ , अल्ट्रामोडर्न प्रचलन , विलासिता और फिजुलखर्ची के साथ पवित्र मन और भावना के साथ समाज से जुड़े । अगर दूसरी सभ्यताएँ तुझे आकृष्ट करती हो तो मात्र इतना सोच लो कि वह अपनाने पर तुझे रोगी न बनाए और मानस को अभद्र न बनने दे तो स्वीकार है अन्यथा नहीं ।

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