विपदा प्रबन्धन
हमारे सामने तीन प्रकार की विपत्तियाँ आती हैं । दैहिक विपदा में रोग , दुर्घटनाएँ , विकलांगता , बाँझपन और वैघव्य तथा अकाल मृत्यु । ये परिवार को प्रभावित करने वाले हैं । दैविक विपदाओं में भूकम्प , बाढ़ , सूखा , अकाल , हिमपात , वज्र पात आदि आते है । भौतिक विपदाएँ , आँधी , तूफान , अगलगी , भीषण वाहन दुर्घटनाएँ ( प्लेन क्रैस , टेन टकड़ाना या उलटना जलयान डूबना ) युद्ध बमवारी , भू – स्खलन , ज्वालामुखी फूटना आदि । ये सभी प्रकृति एवं उसकी व्यवस्था के लिए भारी खतरा है ।
आपदा प्रबन्धन में सहायक हमारे पूर्वानुमव , उसकी जानकारी , सावधानी वरतना एवं वैयक्तिव एव सामाजिक एकता , सहयोग और सतर्कता के साथ मानवतावादी सोच ही सहायक होते हैं । जब हम जीवन में स्वस्थ शरीर , धन सम्पत्ति , ज्ञान , गरिमा , सुख , आराम और सुविधा के प्रति अधिक जागरुक होते है तो उनकी जड़े मजबूत हो , विपदाएँ या तो नगण्य हो या हमारी अपनी तैयारी यथेष्ट हो , ये दोनों भाव आवश्यक होंगे ।
हम बहुत सारे मुहावरे और लोकोक्तियाँ जानते या दूसरों के मुँह से सुनते हैं । ईश्वर उसकी सहायता करते है जो अपनी सहायता आप करता है । यह कथन मात्र सुनने या याद रहने मात्र से तात्पर्य नहीं रखते , इनका अनुपालन , अभ्यास और सदा सचेष्ट एवं तत्पर होने की जरुरत है । ऊपर गिनाई गयी विपदाओं में से कुछ अज्ञात कुछ आकस्मिक कुछ सामयिक तो कुछ अप्रत्याशित होते हैं । हम उनकी प्रकृति के संबंध में वातावरण मौसम भौगोलिक कारणों और बचाव के तरीकों , विधि – विधानों और उपयुक्त सहायता समूहो के गठन की भी तैयारी रखें । सबके लिए सरकार के मुखापेक्षी न बनें । तथापि आज का वैज्ञानिक युग और राजनैतिक व्यवस्था में हम स्वयं की भूमिका कमजोर कर परवर्ती सोत्रों की प्रतीक्षा में समय काटते हैं ।
प्राथमिकता की दृष्टि से हमारा शरीर , परिवार , परिवेश और पड़ोसी ही विचारणीय और महत्त्वपूर्ण है । भौगोलिक स्थिति , आवादी , संसाधन और जनशक्ति ही धरती पर आधार भूत साधन है । हम स्वस्थ , सुदृढ , सक्षम और सेवा परायण बने फिर परिवेश को भी तत्तत विषयों से सुरक्षात्मक पहल विश्व को सदा उत्कर्ष दिला सकता है । जन जीवन को प्रेम और सहयोग की जरुरत है मरने पर मुआवजा की जरुरत नहीं । ऐसा बने हम ।
जीवन के ज्ञान पहलुओं पर सभी कुछ न कुछ ज्ञान रखते है , जरुर , किन्तु हम इस पहेली पर खुलकर नहीं उतरते कि हम अपने पड़ोसी को प्रसन्न रखकर या पाकर ही अपने को प्रसन्न और सतुष्ट रख सकते है । सारी समृद्धि मानवता की रक्षा करने में आज हम कमजोर या असफल इसीलिए है कि उपरोक्त कथ्य को दिल से नही स्वीकारते ।
रुग्नता में चिकित्सा सदा से सबके लिए नितान्त आवश्यक है । यह एक ऐसा ज्ञानात्मक , सेवा मूलक और सुरक्षात्मक साधन है जिसका महत्त्व है कि हम समाज को स्वस्थ रखकर ही अपने को सुरक्षित पा सकते है । अगर समाज संक्रमित है तो हम भी कभी संक्रमित होंगे ही । ऐसा सार्वभौम चिन्तन मानव को उपर उठाता है , यश दिलाता है , और अबाधगति से समाज भविष्य की ओर बढ़ता जाता है सभ्यता और संस्कृति उसका ही लक्ष्य लेकर चलने वाली है लेकिन हम तो आज भली प्रकार अपने को पहचान पाये कि हम क्या कर रहे है और कहाँ जा रहे हैं ।
प्रश्न है जीवन रक्षा का रोग के निवारण का उसकी आरोग्यकारी चिकित्सा के शास्वत विधान का उसकी राह रोक कर , अन्दर – अन्दर दबाकर , भविष्य को चिन्ता में डुबाकर रखने का नहीं जैसा आधुनिक जीवन में शरीर की स्वस्थता पर विज्ञान चिन्तित है , आरोग्य कम है जिस रफ्तार से मेडिकल साइंस विकास को स्वीकार रहा है उस अनुपात में न रोग घट रहा है न समूल और सदा के लिए रोगी स्वस्थ होकर अपनी पीढ़ी को नीरोग पा रहा है । वंशानुगत रुप में भी बिमारियाँ पूर्व की अपेक्षा ज्यादा जटिल होती जा रही है । प्रश्न उठ रहा है कि ये क्रमित संक्रमण , वर्तमान क्वारैटाइट व्यवस्था की उपलब्धियों के आँकड़े , वैक्सिन पर सहमति और विवाद की स्थिति और सुरक्षित जीवन के साथ सावधानी पूर्ण जीवन की गारंटी रखने वालों के संक्रमण के कारण पर चिन्तन क्या कहता है । हमें बचाव और इलाज दोनों पर कमर कसना आवश्यक है । होमियोपैथी के पास बचाव के उत्तम आलोक में पीढ़ियों तक काम करने वाली दवाएँ तथा वर्तमान संक्रमण से पीड़ित रोगियों को सलक्षण एवं विकार सहित निरापद रुप से आरोग्य दिलाने को दवा उपलब्ध है , आरोग्य द्वारा सत्यापित है । एक नेचर क्योर या हिलिंग आर्ट की संज्ञा प्राप्त स्थापित विज्ञान है । समाज चाहे तो इस विज्ञान के समक्ष विषय वेत्ता जो विश्व में आज वर्त्तमान है । पूर्व के अधिकृत होमियोपैथी के सिद्धान्त एवं चिकित्सा सत्रों की पुस्तको से प्रमाण प्राप्त कर सकते हैं जो आज नही तो भावी जीवन के काल में काम आयेंगे ही । इस पर विश्व को विचारणा जरुरी है , इसलिए कि यह भी विज्ञान है । विश्व की सरकारे मंजूरी दी है । भारत में आयुष एक स्थापित विभाग है । सरकार द्वारा 1956 से होमियोपैथ चिकित्सक के पद पर सेवा अर्पित कर रहे है । इसकी विशिष्टता पर बार – बार मूल्यांकण किया जा सकता है । भारत तो विविधताओं का देश है । यहाँ के आयुर्वेद की गरिमा विशव विख्यात है ।
हमारे होमियोपैथ अधिकारी जो आयुष के साथ है , HMAI में उनका प्रतिनिधित्त्व है LHMI , CCH , CCRH में है । वे इसकी वैज्ञानिकता , विराटता , आरोग्यता , विविध कष्ट साध्य रोगों को आजीवन अपनी सेवा कर्मठता और ज्ञान सौष्ठव से विश्व में उसके आरोग्य का कीर्तिमान स्थापित करने वालों में अमेरिका के Dr. Eli , E. John ने अपने काल में कैन्सर के रोगियों को बड़ी संख्या मे ठीक किया ।
यही सही समय है कि कोरोना आज दुनियाँ को ललकार रहा है तो हम भी उसकी ललकार पर प्रतिकार में जुटे है । दुनियाँ कहती है सबका साथ चाहिए तो हम पीछे क्यों पड़े । हम अपने होमियो भाइचारे को यह संदेश देकर आज के समय में अपनी शक्ति के साथ कोरोना क जंग में कीर्तिमान के साथ जोड़े ।
Homoeopathy is a trace . We have is go a head . विश्वास के साथ पढ़े । For health and cure posterity is ours .
Dr. G. Bhakta
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