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विवादों पर विसात , सम्भावनाएँ कुछ खास , कोरोना पर दृष्टिपात

 दुनियाँ जान रही कि विश्व व्यापी कोविद -19 संक्रमण द्वारा महाविनाश का दस्तक पुनः दुहरा रहा है । इसके आँकड़े भी प्रत्यक्ष सुनने पढ़ने के लिए उपलब्ध रहते हैं । इसके मूल्यांकन के दो पक्ष सामने आये । पहला है विनाश लीला का प्रत्यक्ष दर्शन और स्पष्टीकरण तथा दूसरा मृत्यु दर पर अपनी निजी सफाई का औचित्य ।

 कुद पक्ष में कहें या निष्पक्ष भाव में जो अबतक के विश्लेषण बताते हैं , हम भी भ्रामक मानते हैं साथ ही समय सापेक्ष सम्भव होने वाले याघोषित कथ्य के अनुसार शीघ्र उपलब्ध किये जाने वाले वैक्सिन को विश्वसनीय होने पर भी समय पूर्व प्रश्न उठने की नौवत हो सकती है । नकारात्मक शोध और विश्लेषण का संदेश वैज्ञानिकों सहित सरकार की समझ , नीतिगत चिन्तन या कोरोना पर अपनी सफलता की मुहर लगाने में आंकड़ों के मानक और प्रयोग विधान की न्यूणता महनीयता का भाव कुछ विशेष सोच को जन्म देता है । इसका वैज्ञानिक स्वरुप पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक लगता है ।

 किसी भी संक्रामक ( वैक्टियल हो या भाइरल ) रोग द्वारा निदान , चिकित्सा द्वारा समाधान , उपयुक्त दवायें , बचाव के उपायों के मानक , विधान एवं पालन शोध प्रकरण के सांख्यिक अनुपात उपकरणों की पर्यात्पता दृर्लभता एवं सामश्य तथा व्यवस्था के गुणात्मक साक्ष्यों के बीच समरुपता का प्रतिशत का नैतिक आधार निरुपन भी अपना अर्थ रखता है ।

 इस प्रकार की जितनी कठिनाइयाँ या अनियंत्रित प्रमाण का विकल्प सृजन प्रयोगशाला के विषय बनते है इनमें जल्दीबाजी करने की प्रतियोगिता और महात्वाकांक्षा की सिद्धि का भाव लेकर सामाजीकरण पर उतरना कमतर महत्त्व का विषय बनता है । यह भी उल्लेखनीय है कि एलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान मानव काया , उसके प्रत्यंग , संस्थान , उनकी फिजियोलॉजी , सैक्सिकोलॉजी में जीवनी शति की भूमिका का साथ एवं आनुषंगिक उपादानों के प्रत्यक्षया अप्रत्यक्ष भूमिका का समादेशादि विषद विधान होने से जटिल है जबकि डा ० हैनिमैन ( होमियोपैथी के आविष्कर्ता ) अपने शोध ( प्रिसिपुल , लॉज , आर्जेनन , फिलासोफी ) मियाज्मथियोरी , क्रॉनिकल कन्सेप्ट , प्रिसिपुल ऑफ वाइटल फोर्स या इम्युन सिस्टम , पर सनल आइडियोसिन्कैसी , आयेट्रोजेनिसिटी को एक साथ थेराप्युटिकली एवं क्लिनीकली सजेक्टिव पहल कर इन्डिविजुअल रिस्पास से पिडेमियोलॉजी के क्षेत्र में एक ही समाधान पर उतरा जाता है जो ” जेनियस एपिडेमिकस ” कहलाता है । वह होमियोपैथी में सिमिलिमम ” शब्द से जाना जाता है जिसे हम आधारभूत रुप में टोटलिटी ऑफ सिम्पटम ” या मैक्सिमिटी ऑफ सिम्पटम ” मानते हैं ।

 उपरोक्त विषय विधान चिकित्सा विज्ञान का यूनिवर्सल प्लान है । हमारे देश में जितने होमियोपैथिक कॉलेजों के प्राचार्य , वरीय व्याख्याता देश के वरीष्ठ अनुभवी चिकित्सक , एस ० एम ० ए ० आर्ट या अन्य संगठनों चिकित्सालयों के प्रधान , इन्टर नेशनल होमियोपैथिक मेडिकल लीग के पदाधिकारीगणों को आगे बढ़कर आना और विचार मिशर्श से शोधात्मक प्रक्रिया अपनाकर एवं परीक्षण कर उपयुक्त निर्णय कर आवश्यक रुप से इस पुन से क्रमणाकाल में होमियोपैथी को अवश्य उतारें ताकि हनिमैन के इस हिलींग आर्ट की मयार्दा को धरातल दिया जा सके ।

 ज्ञातव्य हो कि होमियोपैथी मेटेरिया मेडिका ( A Dictionary of Pructiocal Maleria Medica for Dr. Jghr Henery Clarke ) में उल्लिखत हिप्पोजेनियम नामक दवा के संबंध में जो विषय प्रस्तुत किया जाता है उस पर सिहख लोकन करना ज्यादा अपेक्षित होगा साथ ही इस से अन्य उपयोगी आख्यान सामने आ सकेंगे जो कोरोना के जंग जीतने में कारगर भूमिका किया पायेंगी । ऐसा दृष्टिकोण कई बार मैंने Google Site पर myxitiz.in पर डाल रखा है । साथ ही बार – बार इस संबंध में आग्रह शील रहा हुँ।

 आशा करता हूँ कि हमारी सरकार एवं विश्व की अगर होमियोपैथी पर ध्यान दें , अगर लाभ कर न भी हो तो एक कदम तो होगा उसे इन्कार करने के लिए किन्तु यह जो विज्ञान है उसे बिना प्रयोग में लायें हम प्रभावहीन कैसे करार दे सकेंगे । आशा है इस विषय पर हम आपका ध्यानाकर्षण पाकर कृतार्थ हो सकेंगे ।

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