डा० जी० भक्त
राष्ट्रों की अपनी निजी आन्तरिकष्ट्रीय समस्या तो तनाव लाती ही है , समस्याएँ भी बहुतेरे विषयों पर हमें विचारने को बाध्य मात्र ही नहीं करती बल्कि उनसे उत्पन्न कई प्रकार के तनाव लाती हैं । एतदर्थ इसे सुधार की दिशा में सकारात्मक प्रयास की आवश्यकता महसूस हो रही है । यद्यपि विचारकों , विशेषज्ञों वैज्ञानिकों तथा राष्ट्र की सरकारों को हम जागरुक पा रहे है किन्तु उसके लक्ष्य निर्माण कार्य विधान और सावधिक कार्य योजना निर्माण की प्रक्रिया पर अब तक सार्थक कदम न ही उठते सुना जा रहा है । विश्व को इस पर सोचना हैं ।
आज प्राकृतिक , सामाजिक , पारिस्थितिक , जनसंख्या एवं आर्थिक , खाद्य एवं आपूर्ति , स्वास्थ्य एवं प्रदूषण , आरोग्यता एवं पोषण , रोजगार एवं स्वावलम्बन समरस वातावरण के साथ शान्ति प्रगति सहयोग भावना एवं मानवतावादी मूल्यों पर सुदृढ़ सोच अपनाने जाति , धर्म , भाषा के अन्तर को बाधा का प्रश्न न बनाकर अपनी वैश्विक पहचान को उत्कर्ष देना जरुरी हैं ।
भौतिक विकास , उपभोक्तावाद बिगड़ता स्वास्थ्य प्राकृतिक विषदाएँ , आतंकवाद और आर्थिक विषमता के पीछे जुड़ी हमारी बेरोजगारी और स्वावलवन के मौलिक कारकों के सृजन और अवसर उपलब्ध कराने के साथ निजी तत्परता पर हम मानव को उतरने की प्रतिबद्धता जगानी चाहिए । इतनी बातें विचारकों में तो पायी जाती ही है लेकिन आवश्यक है कि हर मानव और उसके परिवार को अपनी सुसंगठित भूमिका में शरीर और मन से स्वस्थ , सुशिक्षित एवं बौद्धिक रुप से अन्नत एवं समर्थक तथा सहयोगी बनकर ही इस महत्त्वपूर्ण भूमिका को जमीन पर लाया जा सकता हैं ।
राष्ट्र की कुछ प्रमुख मौलिक जिम्मेदारी होती हैं जो व्यवस्था के रूप में सरकार निभाती हैं । शेष सबकुछ देश के नागरिकों की निजी जिम्मेदारी बनती हैं । सरकारें शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा , न्याय व्यवस्था , जन संसाधन जुटाने तक अपने उपर निभाती हैं जिसकी प्राथमिकता पारदर्शिता और पूर्णता के प्रति प्रतिबद्ध होना उसका कर्तव्य बनता हैं । उसमें भी राष्ट्र के नारिकों को सहायक और पोषक की भूमिका में आना अत्यन्त जरुरी होता है , इसलिए कि हम अपने हितों की रक्षा के स्वयं जिम्मेदार हैं । यहीं पर राष्ट्र और जनता दोनों में भावनात्मक और क्रियात्मक समरसता का पालन जरुरी दिखता हैं ।
शिक्षा स्वास्थ्य , कौशल , स्वावलम्वन श्रम का महत्त्व और कर्तव्या कर्तव्य का ज्ञान पाने का विधान आज पूरे विश्व में सबका मौलिक अधिकार है , साथ ही नैतिकता , शुचिता और प्रेम – सद्भाव का प्रस्फुटन शिक्षा द्वारा परिवार की एकजुटता और सामाजिक सरोकारों से पूर्ण हमारा सामाजिक राष्ट्रीय जीवन जीने का युग बोध , कर्त्तव्य विधान और जीवन साधन , हृदय में संतोष स्थान पाये तो अवश्य ही संसार में शान्ति स्थापित हो ।