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विश्व में वर्तमान राष्ट्रीय संकट का निवारण

विश्व में वर्तमान राष्ट्रीय संकट का निवारण (Prevention of the current national crisis in the world) Dr. G. Bhakta article
 वैचारिक धरातल पर हमारी कल्पना इस तथ्य पर पहुँचती है कि :-
 1. अबतक की हमारी सभ्यता और संस्कृति की अंतिम और सर्वमान्य उपलब्धि राजनैतिक क्षेत्र में जनतंत्र ही रही ।
 2. आत्म विश्वास की सर्वोतम कसौटी जनमत को ही स्वीकार रही ।
 3. जन आकांक्षाओं के आधार जन सुविधाएँ जुटाना और न्याय संगत व्यवस्था की नींव डालना संविधान द्वारा विधायिका कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की शक्तियों में निहित निहत पाया गया ।
 4. उपरोक्त तीनों के संबंध जनमानस सदा सकारात्मक भाव दर्शाता रहा है ।
 5. तथापि , व्यवहारिक स्वरुप में राजनैतिक दलों का गठबन्धन सत्यापित करता है कि उनमें विचारधारा का कार्य से तारतम्य स्थापित नहीं हो रहा जिससे जनमत कमजोर पड़ता जा रहा है ।
ऐसी परिस्थिति में गणतंत्र की सफलता शाब्दिक महत्त्व उपर उठ पाने में समक्ष होना दूर के ढोल जैसा लगता है । यही है वर्तमान राष्ट्रीय संकट की रुप रेखा । अनुमान किया जा सकता है कि ऐसी परिस्थिति अन्य राष्ट्रों में होगी , जहाँ के संबंध में गणतंत्र पर संकट की बातें सुनी जाती है । इसके निवारण पर एकमत होकर संगठित होना एक अहम मुद्दा होगा जिसकी पृष्ठभूमि में निम्न विषय सामने आ सकते हैं । वे विषय राजनैतिक न होकर सामाजिक पृष्ठभूमि पर खड़े किये जायें एवं सतप्रतिशत जनतात्रिक आधार लेकर उतर सके ।
इसके लिए भी निवारणात्मक पहल का प्रमुख विषय निम्न रुप में प्रस्तुत किया जाय :-
 1. शिक्षा सकारात्मक स्वरुप में ग्राह्य हो ।
 2. वैज्ञानिकता को सतत प्रगति का साधन बनाया जाय न कि प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव का सृजन ।
 3. जन शिक्षण में अभिव्यक्ति की यथार्थक्ता की स्पष्ट झलक परिलक्षित हो ।
 4. स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सृष्टि का पोषक , संरक्षक के साथ गुणात्मक समृद्धि का सूचक बने ।
 5. सद्साहित्य स्वस्थ समाज का सृजन करे , इस मानक पर अनवरत शोधात्मक गतिविधि का प्रस्फुट विधान एवं क्रियाशीलन सहज हो , दिखावटी नहीं ।
इन विषयों को सार्थक आयाम देने के लिए देश के स्नातकोत्तर शैक्षिक समूह के समाहरण का सार्थक विधान हो एवं उन्हें पूर्णतः जनतांत्रिक प्रक्रिया से विवादों से उपर उठकर संवादों ( विमर्शों ) की सक्रियता के साथ समाजिक सरोकारों को साथ लेकर बढ़ा जाय ।
 इन्हीं प्रगत कल्पनाओं को सार्थक धरातल देने हेतु को प्रगत वैज्ञानिक चिकित्सीय एवं साहित्यिक शोध न्यास हाजीपुर वैशाली का रजिष्ट्रेशन कर उसे वैधानिक स्वरुप दिया गया । इस न्यास संस्थान के आम सदस्य स्नाकोत्तर शिक्षा प्राप्त किसी भी विषय संस्थान के आम सदस्य स्नाकोत्तर शिक्षा प्राप्त किसी भी विषय एवं भाषा के नियोजित . अनियोजित कार्यरत , अवकाश प्राप्त सरकारी या गैर सरकारी किसी भी प्रकार से जुड़े युवा पुरुष या महिला विधिवत बनाये जा सकते है ।
 इस प्रगत वैज्ञानिक चिकित्सीय एवं साहित्यिक शोध न्यास ( Progressiv Scientific Medical and Library Research Foundation ) के अध्यक्ष डा ० जी ० भक्त , चिकित्सक ( होमियोपैथ ) अपनी बहुआयामी सोच एवं निजी अनुभव एवं चिन्तनों को विश्व के पटल पर साझा करने का व्रत लेकर बढ़ना प्रारंभ किया है । अपनी लेखन कला के प्रयोग द्वारा इस समाहरण में व्यवस्थित शोध की प्रेरणा जागृत करना एवं राष्ट्रीय विचार मंच तैयार कर सफल जनतंत्र , उर्जावान जनतंत्र एवं प्रगत जनतंत्र कि पृष्ठ भूमि तैयार करने का श्री गणेश किया है । आशा की जाती है कि राष्ट्र शिक्षित समुदाय अपना बहुमूल्य विचार देकर उस न्यास को संबल प्रदान करेंगे ।
 विचारधारा ही निर्माण की ईंट बनती है जो कर्म का साथ पाकर स्वरुप ग्रहण कर लेती है । अनास्था पालने वालों की भाषा में यही तर्क आता है कि ऐसा होना असम्भव है । देखा जाय अपने ही देश में धार्मिक संगठनों , सम्प्रदायों , समूहों द्वारा अपने – अपने लक्ष्य से जुड़े कार्यक्रम राष्ट्रीय पैमाने पर तो चलते ही रहते है । उन्हें भी समर्थन है । ऐसा युगों से चला आ रहा है । उनमें भी रचनात्मकता है । सकारात्मकता है । उसमे जनास्था कूट – कूट कर भरी है । कहावत है- ” इच बन कैन टीच वन ” । इसे हमे चरितार्थ करने की लग्न चाहिए । सहयोग की भावना ही शक्ति बनती है । आलस्य मानव चेतना को समाप्त कर डालता है । अवसरवादी उस पर हावी होते है तो विषमर्ता को बढ़ने में देर नहीं लगती । विषमता का मर्ज जब दुखियों का दर्द बनता है तो संवेदना रुपी कर्ज के बल पर लोग हमदर्द बनते है । यह कोई गर्व की बात नहीं । हम सशर्त नहीं समर्पण का भाव रखकर लक्ष्य पर उतरे तो अवश्य हमें समाज का सहयोग मिलेगा और हनश अपना स्वरुप राष्ट्र को एकम के सूत्र में बाँध पायेगा । महान व्यक्तियों को साधन जुटाना नहीं पड़ता । महत्ता के साथ सामान स्वयं समर्पित हो पड़ता है ।

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