विश्व में वर्तमान राष्ट्रीय संकट का निवारण
वैचारिक धरातल पर हमारी कल्पना इस तथ्य पर पहुँचती है कि :-
1. अबतक की हमारी सभ्यता और संस्कृति की अंतिम और सर्वमान्य उपलब्धि राजनैतिक क्षेत्र में जनतंत्र ही रही ।
2. आत्म विश्वास की सर्वोतम कसौटी जनमत को ही स्वीकार रही ।
3. जन आकांक्षाओं के आधार जन सुविधाएँ जुटाना और न्याय संगत व्यवस्था की नींव डालना संविधान द्वारा विधायिका कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की शक्तियों में निहित निहत पाया गया ।
4. उपरोक्त तीनों के संबंध जनमानस सदा सकारात्मक भाव दर्शाता रहा है ।
5. तथापि , व्यवहारिक स्वरुप में राजनैतिक दलों का गठबन्धन सत्यापित करता है कि उनमें विचारधारा का कार्य से तारतम्य स्थापित नहीं हो रहा जिससे जनमत कमजोर पड़ता जा रहा है ।
ऐसी परिस्थिति में गणतंत्र की सफलता शाब्दिक महत्त्व उपर उठ पाने में समक्ष होना दूर के ढोल जैसा लगता है । यही है वर्तमान राष्ट्रीय संकट की रुप रेखा । अनुमान किया जा सकता है कि ऐसी परिस्थिति अन्य राष्ट्रों में होगी , जहाँ के संबंध में गणतंत्र पर संकट की बातें सुनी जाती है । इसके निवारण पर एकमत होकर संगठित होना एक अहम मुद्दा होगा जिसकी पृष्ठभूमि में निम्न विषय सामने आ सकते हैं । वे विषय राजनैतिक न होकर सामाजिक पृष्ठभूमि पर खड़े किये जायें एवं सतप्रतिशत जनतात्रिक आधार लेकर उतर सके ।
इसके लिए भी निवारणात्मक पहल का प्रमुख विषय निम्न रुप में प्रस्तुत किया जाय :-
1. शिक्षा सकारात्मक स्वरुप में ग्राह्य हो ।
2. वैज्ञानिकता को सतत प्रगति का साधन बनाया जाय न कि प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव का सृजन ।
3. जन शिक्षण में अभिव्यक्ति की यथार्थक्ता की स्पष्ट झलक परिलक्षित हो ।
4. स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सृष्टि का पोषक , संरक्षक के साथ गुणात्मक समृद्धि का सूचक बने ।
5. सद्साहित्य स्वस्थ समाज का सृजन करे , इस मानक पर अनवरत शोधात्मक गतिविधि का प्रस्फुट विधान एवं क्रियाशीलन सहज हो , दिखावटी नहीं ।
इन विषयों को सार्थक आयाम देने के लिए देश के स्नातकोत्तर शैक्षिक समूह के समाहरण का सार्थक विधान हो एवं उन्हें पूर्णतः जनतांत्रिक प्रक्रिया से विवादों से उपर उठकर संवादों ( विमर्शों ) की सक्रियता के साथ समाजिक सरोकारों को साथ लेकर बढ़ा जाय ।
इन्हीं प्रगत कल्पनाओं को सार्थक धरातल देने हेतु को प्रगत वैज्ञानिक चिकित्सीय एवं साहित्यिक शोध न्यास हाजीपुर वैशाली का रजिष्ट्रेशन कर उसे वैधानिक स्वरुप दिया गया । इस न्यास संस्थान के आम सदस्य स्नाकोत्तर शिक्षा प्राप्त किसी भी विषय संस्थान के आम सदस्य स्नाकोत्तर शिक्षा प्राप्त किसी भी विषय एवं भाषा के नियोजित . अनियोजित कार्यरत , अवकाश प्राप्त सरकारी या गैर सरकारी किसी भी प्रकार से जुड़े युवा पुरुष या महिला विधिवत बनाये जा सकते है ।
इस प्रगत वैज्ञानिक चिकित्सीय एवं साहित्यिक शोध न्यास ( Progressiv Scientific Medical and Library Research Foundation ) के अध्यक्ष डा ० जी ० भक्त , चिकित्सक ( होमियोपैथ ) अपनी बहुआयामी सोच एवं निजी अनुभव एवं चिन्तनों को विश्व के पटल पर साझा करने का व्रत लेकर बढ़ना प्रारंभ किया है । अपनी लेखन कला के प्रयोग द्वारा इस समाहरण में व्यवस्थित शोध की प्रेरणा जागृत करना एवं राष्ट्रीय विचार मंच तैयार कर सफल जनतंत्र , उर्जावान जनतंत्र एवं प्रगत जनतंत्र कि पृष्ठ भूमि तैयार करने का श्री गणेश किया है । आशा की जाती है कि राष्ट्र शिक्षित समुदाय अपना बहुमूल्य विचार देकर उस न्यास को संबल प्रदान करेंगे ।
विचारधारा ही निर्माण की ईंट बनती है जो कर्म का साथ पाकर स्वरुप ग्रहण कर लेती है । अनास्था पालने वालों की भाषा में यही तर्क आता है कि ऐसा होना असम्भव है । देखा जाय अपने ही देश में धार्मिक संगठनों , सम्प्रदायों , समूहों द्वारा अपने – अपने लक्ष्य से जुड़े कार्यक्रम राष्ट्रीय पैमाने पर तो चलते ही रहते है । उन्हें भी समर्थन है । ऐसा युगों से चला आ रहा है । उनमें भी रचनात्मकता है । सकारात्मकता है । उसमे जनास्था कूट – कूट कर भरी है । कहावत है- ” इच बन कैन टीच वन ” । इसे हमे चरितार्थ करने की लग्न चाहिए । सहयोग की भावना ही शक्ति बनती है । आलस्य मानव चेतना को समाप्त कर डालता है । अवसरवादी उस पर हावी होते है तो विषमर्ता को बढ़ने में देर नहीं लगती । विषमता का मर्ज जब दुखियों का दर्द बनता है तो संवेदना रुपी कर्ज के बल पर लोग हमदर्द बनते है । यह कोई गर्व की बात नहीं । हम सशर्त नहीं समर्पण का भाव रखकर लक्ष्य पर उतरे तो अवश्य हमें समाज का सहयोग मिलेगा और हनश अपना स्वरुप राष्ट्र को एकम के सूत्र में बाँध पायेगा । महान व्यक्तियों को साधन जुटाना नहीं पड़ता । महत्ता के साथ सामान स्वयं समर्पित हो पड़ता है ।